इस्कॉन के चार नियम 2        
नशा नहीं करना

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 र्म  के चार पैरों में से यह एक चरण का नाशक है | वह है तप , एक तो मनुष्य ऐसे ही भगवान् को न जानने के कारण नाना प्रकार के अशुभ क्रियाओं में फंसा हुआ है | और नान प्रकार के पंथ के कारण भगवान् समझ नहीं आते | उसमें भी फिर नशा आदि करके कोई भगवान् को जानना चाहता है तो कैसे जान पायेगा ? अतः हमें तपस्या का मार्ग अपनाना चाहिये | तपस्या का अर्थ है इंद्रियों को उनकी इच्छित वस्तु न देकर भगवद् सम्बधि वस्तु प्रदान करना | हम इंद्रियों को रोक नहीं पायेंगे मगर उनको सही वस्तु देकर उसका उपचार कर सकते हैं | जैसे कि आँख यदि कहता है कि सुँदर स्त्री का मुख देखने चलचित्र देखने चलो तो हमें बुद्धि के द्वारा उसे यह कह कर टाल दें कि जायेंगॆ मगर आज तो मन्दिर ही चलो भगवान् श्री श्री राधामाधव का दर्शन करने | तो इस तरह से हम प्रत्येक इंद्रीय को भगवद सम्बधि वस्तु देकर नियमन में रख सकते हैं | यहाँ हमें तपस्या इतना ही करना है कि आज से हम भगवान् के लिए तम्बाकू, बीड़ी ,सिगरेट ,गाँजा ,पान , पान मशाला , गुड़ाखू , छींदरस , ताड़ी -माड़ी , शराब , अफिम , चरस , भाँग , और भी जो नशीली दवायें हैं या पदार्थ होंगे यहाँ तक कि चाय भी मना है | दवा के तौर पर बिमारी दूर करने के लिए उपरोक्त ग्रहण कि जा सकती हैं मगर इससे हानि भी उठाना पड़ सकता फायदा कम हानि अधिक है | इसलिए बेहतर यही है कि इनको दूर से ही छोड़ दिया जाय | नशा करने का अर्थ है कि आप बिमारी को हरदम अपने शरीर के नौ द्वारों से निमंत्रण देने जा रहे हैं | ये आप पक्का जान लें कि इस प्रकार का लत आपके शरीर को नुकशान ही पहुँचायेगा | इसलिए जो भी भाई और बहन इस पड़े वह जरूर इसका अमल करें हम ये नहीं कहते कि आप ये छोड़कर भजन में ही लग जाँय लगना तो चाहिये किंतु इसमें हमारा कोई फोर्स नहीं है | परंतु इन सबका सेवन शरीरिक स्वास्थ्य की दृष्टी से भी उचित नहीं है | दूसरा क्या कारण है इसे छोड़ने का ? वह यह कि घोर कलियुग का वास इन्हीं सब व्यसनों में निवास करता है | यदि हम कलियुग से बचना चहते हैं इस घोर कलियुग के राज्य में भी तो हमें इसका परित्याग ही करना चाहिए | तीसरा कारण है घोर नरक का रास्ता | भागवतम शास्त्र कहता है कि जो व्यक्ति शराब पीता है उसे नरक लेजाकर यमराज के दूत पीघलाया हुआ लोहा जबरदस्ती मुँह से डालते हैं | और यह हजारों वर्ष तक इस तरह से जीव को तड़पाया जाता है | अतः बंधुओं जो भी इस प्रकार के व्यसन में पड़े हैं उसे छोड़ने की कोशिस करनी चाहिए | हरे कृष्ण !

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अंतरजाल प्रणेताः brajgovinddas@yahoo.com

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