भगवान्  श्रीकृष्ण

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61. अद्भुत कार्यकलापी   

    वृहद् वामन-पुराण में भगवान् कहते हैं -" यद्यपि मेरी अनेक मनोहारी लीलायें हैं , किंतु जब मैं गोपियों के संग रची जाने वाली रासलीला के बारे में सोचता हूँ तो पुन: करने के लिए उत्सुक हो उठता हूँ ।"

   एक भक्त ने कहा है , "मैं लक्ष्मीपति नारायण को जानता हूँ और भगवान् के अन्य अनेक अवतारों से भी परिचित हूँ । इन सारे अवतारों की समस्त लीलाएँ निश्चय ही मेरे मन को उत्कण्ठित करती हैं , किंतु तो भी भगवान् कृष्ण  द्वारा सम्पन्न रास लीला मेरे दिव्य आनन्द को अद्भुत रुप से वर्धित कर रही है । "

62. प्रिय भक्तों से घिरे रहने वाले कृष्ण   

जब हम कृष्ण के बारे में कुछ कहते हैं तो वे अकेले नहीं होते । " कृष्ण " का अर्थ है उनका नाम ,गुण ,यश ,उनके मित्र,साज -सामान,तथा उनके पार्षद । जब हम राजा की बात करते हैं तो यह समझना चाहिए कि वह मंत्रियों ,सचिवों ,सेना संचालकों तथा अन्य अनेक लोगों से घिरा हुआ है । इसी प्रकार कृष्ण निराकार नहीं हैं । विशेषतया वृंदावन लीला के समय वे गोपियों ,गोपों ,अपने पिता ,अपनी माता तथा सभी वृन्दावन वासियों से घिरे  होते हैं ।

     श्रीमद्भागवत (10.31..15) में गोपियाँ विलाप करती हैं , " हे कृष्ण !  दिन में जब आप अपनी गायों के साथ वृन्दावन के जंगल में चले जाते हैं तो हर क्षण युग के समान प्रतीत होता है । और हमारे लिए समय काट पाना कठिन हो जाता है । और जब संध्या समय आप घर लौटते हैं तो आपके सुंदर मुख को देखते अघाते नहीं । बीच-बीच में जब हमारी पलकें झपक जाती हैं तो हम ब्रह्मा को मूर्ख कह कर दुत्कारती हैं , क्योंकि उन्हें भी ज्ञात नहीं कि किस तरह पूर्ण नेत्रों की रचना की जाती है " दूसरे शब्दों में , पलकें झपकने से गोपियों को बाधा पहुँचती थी क्योंकि जितनी देर के लिए पलकें झपकती थीं वे कृष्ण का दर्शन नहीं कर पाती थीं । इसका अर्थ यह हुआ कि कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम इतना अगाध एवं रागमय था कि वे उनकी क्षणिक अनुपस्थिति से भी विचलित हो उठती थीं । और जब वे कृष्ण का दर्शन करतीं तब भी विचलित हो जाती थीं । यह एक विरोधाभास है ।

    एक गोपी कृष्ण से अपने भाव व्यक्त करती कहती है , जब हम रात में आपसे मिलती हैं तो रात की अवधि बहुत छोटी जान पड़ती है। और इस रात की ही बात क्यों ? यदि हमें ब्रह्मा की रात मिलती ( ब्रह्मा की एक रात  4,30.00,00,00 सौर वर्षों के तुल्य ) तो भी हम उसे अत्यल्प समय मानतीं " ब्रह्मा के एक दिन का अनुमान भगवद्गीता के (8.17) इस कथन से लग सकता है , मानवी गणना के अनुसार एक हजार चतुर्युग मिलकर ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होते हैं । और यही बात उनकी रात पर भी लागू होती है ।" गोपियाँ कहती हैं कि यदि हमें ब्रह्मा की रात जैसी अवधि मिल जाती है तो भी कृष्ण -मिलन के लिए वह पर्याप्त न होती ।

63.  कृष्ण की मोहक बंशी   

         श्रीमद्भागवत (10.35.15) में गोपियाँ माता यशोदा से कहती हैं , जब आपका बेटा बंशी बजाता है तो शिव ,ब्रह्मा तथा इन्द्र भी जो परम विद्वान एवं महान हैं मोहित हो जाते हैं । वे कृष्ण की बंशी की ध्वनि सुनकर नतमस्तक हो जाते हैं और ध्वनि का मनन करके गम्भीर हो जाते हैं ।" श्रील रुप गोस्वामी अपनी पुस्तक विदग्ध माधव नाटक में कृष्ण की बंशी -ध्वनि का वर्णन इस प्रकार करते हैं , " कृष्ण की बंशी की ध्वनि ने आश्चर्यजनक रूप से शिव को अपना डिंडिम डमरू बजाने से रोक दिया और उसी बंशी की ध्वनि ने कुमारों को ध्यान से विचलित कर दिया । सृष्टि करने के लिए कमलपुष्प पर आसीन ब्रह्मा चकित रह गये । और समस्त लोकों को अपने फनों पर धारण करने वाले अनंतदेव झूमने लगे । कृष्ण की उसी बंशी की ध्वनि इस ब्रह्माण्ड के आवरणों को भेद कर बैकुण्ठ जगत में जा पहुँची ।" 

64.  कृष्ण का अतिशय सौन्दर्य   

   श्रीमद्भागवत (3.2.12) में उद्धव विदुर से कहते हैं , महोदय ! जब कृष्ण इस धराधाम में थे तो उनका स्वरूप अतीव अद्भुत था और उससे उनकी अंतरंगा शक्ति प्रकट होती थी । इस लोक में उनकी लीलाओं के समय उनका स्वरूप आश्चर्यजनक प्रकार से आकर्षक था और उन्होंने अपनी अंतरगा शक्ति से अपना ऐश्वर्य प्रकट किया जो हर एक को आकर्षित करने वाला है । उनका शारीरिक सौंदर्य इतना अधिक था कि उन्हें आभूषण धारण करने की आवश्यकता नहीं थी । वस्तुत: आभूषण कृष्ण को विभूषित नहीं कर रहे थे ,अपितु कृष्ण के सौन्दर्य से आभूषण विभूषित होते थे । " कृष्ण के शारीरिक सौन्दर्य की आकर्षकता एवं उनकी बंशी की ध्वनि के विषय में श्रीमद्भागवत (10.29.40) में गोपियाँ कृष्ण को इस प्रकार सम्बोधित करती हैं , " यद्यपि आपके प्रति हमारा झुकाव जार (उपपति) के प्रेम-व्यापार जैसा लगता है , किंतु हमें आश्चर्य होता है कि आपकी बंशी की ध्वनि सुनकर कोई स्त्री किस प्रकार अपने सतीत्व को धारण किये रह सक्ती हैं ? केवल स्त्रियाँ ही नहीं अपितु कठोर से कठोर हृदय पुरूष भी आपकी बंशी की ध्वनि सुनकर  अपने स्थान से च्युत हो जाते हैं । वस्तुत: हमने देखा है कि वृन्दावन की गौवें ,मृग,पक्षी,वृक्ष- सभी आपकी बंशी की मधुर ध्वनि एवं आपके आकर्षक सौंदर्य के द्वारा मोहित  हो चुके हैं ।"

   रूप गोस्वामी कृत ललित माधव में कहा गया है ," एक दिन कृष्ण ने मणिजड़ित आँगन में अपने सुन्दर स्वरूप की परछाई देखी । इस शारीरिक प्रतिबिम्ब को देखकर उन्होंने अपने भाव व्यक्त किय्रे ' कितनी विचित्र बात है कि मैंने ऐसे सुन्दर स्वरूप को कभी देखा भी नहीं । यद्यपि यह मेरा ही स्वरूप है फिर भी मैं राधारानी के समान इस स्वरूप का आलिंगन करके दिव्य आनन्द भोगना चाहता हूँ ।" इस कथन से पता चलता है कि कृष्ण तथा उनकी छाया एक हैं । न तो उन दोनों में कोई अंतर है ,न कृष्ण तथा उनके चित्र में अंतर है । यही कृष्ण की दिव्य स्थिति है ।

      उपर्युक्त कथनों से कृष्ण के भीतर कतिपय विचित्र आनन्द-स्रोतों एवं उनके दिव्य गुणों का पता चलता है । कृष्ण के दिव्य गुणों की तुलना सागर से की जाती है , क्योंकि सागर की लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुमान नहीं लगाया जा सकता । किंतु जिस तरह सागर के एक बूँद की परीक्षा करके सागर में निहित वस्तुओं को जाना जा सकता है उसी प्रकार इन कथनों से कृष्ण की दिव्य स्थिति एवं गुणों का कुछ-कुछ पता चलेगा ।

      श्रीमद्भागवत ( 10,14.7) में ब्रह्माजी कहते हैं , " हे प्रभु ! आपने इस धरालोक में अपनी अपस्थिति से जिन अचिंत्य गुणों ,लीलाओं ,एवं सौंदर्यों को प्रकट किया उनकी गणना किसी भी भौतिक माप से नहीं की जा सकती । यदि कोई यह कल्पना करे कि कृष्ण ऐसे हो सकते हैं तो वह भी असम्भव है । ऐसा दिन तो आ सकता है जब भौतिक विज्ञानी अनेकानेक जन्मों या अनेकानेक वर्षों बाद सम्पूर्ण जगत की परमाणु-सरंचना का अनुमान लगा सकें या अकाश में व्याप्त कणों को गिन सकें या इस ब्रह्माण्ड के समस्त परमाणुओं का अनुमान लगा सकें , किंतु तो भी दिव्य आनन्द के सागर आपके दिव्य गुणों की गणना नहीं कर पाएँगे । "

 इस प्रकार से कृष्ण के हमारे भगवान् श्रीकृष्ण के अद्भुत गुण हैं जीवों के आश्रय हैं जीवों के पालक हैं , जीवों के सब कुछ हैं । जीवों को जब कृष्ण उद्धार करना चाहते हैं तो उन्हें मार्ग दर्शन के लिए आध्यात्मिक गुरु भेज देते हैं यह उनकी करूणा है ।

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