आयुर्वेद 3

 

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पेज में क्या-क्या हैं-- ?

 (1)चमेली, (2)राल,(3)पानडी,(4)गुलदाउदी पिले फूल वाली, (5)गुलदाउदी लाल फूल वाली,(6)बेर ,(7) कद्दू , (8)इलायची ,(9)अमरूद , (10)  सीताफल , (11)काली मिर्च , (12)अनार , (13) नीबू

 


चमेली

सं.- जाती, हि. - चमेली , बं . - चमेली , म. - चमेली , गु. - चमेली , अं . - स्पविश जासमीन ,फा. - यासमाने |   चमेली का वृक्ष छोटा होता है | चमेली के फूल सफेद होते हैं | चमेली के फूल और अत्तर सूंघने से मस्तक पीडा हृदय की जलन और शरीर की गरमी शांत होती है | परंतु सर्दी से जो सिर दुखता हो तो चमेली का फूल और अत्तर न सूंघे | चमेली के पत्ते पानी में औटा कर उस पानी से कुल्ली करने से मुख के छाले अच्छे हो जाते हैं | चमेली के पतों का अर्क पीने से मूत्र रोग अच्छा हो जाता है | चमेली के पत्ते एक तोला ,काली मिर्च सात , छोटी इलायची के दाने छः मासे , मिश्री एक तोला , इनको घोट छान कर पीवे तो छाले अच्छे हो जाते हैं |


राल

सं. - सर्जरस , हि. - राल , बं. - धूना ,मराठी में - राल पीवली , गु. - राल , फा. - राल मगरेवी , अरबी - किकहर , अंग्रेजी में - यल्लेरिझन |         विवरण - राल का वृक्ष देहरादून में होता है | शाल वृक्ष नाम से प्रसीद्ध है | उसके गोंध को राल कहते हैं |   गुण- शीतल ,कडुवा कसैला है | विसर्प रोग, व्रणादि रोग , कण्डू , अतिसार को दूर करता है | राल में मिश्री मिला कर खाने से अतिसार रोग दूर हो जाता है , इसके लेप से और इसको पीने से प्रदर रोग दूर हो जाता है | यह रूधिर दोष को भी दूर करने वाला इसके तेल को तारपीन क तेल कहते हैं जो कोड ,पामा ,कृमि और विस्फोट तथा घाव व कफ को नष्ट करने वाला है | तारपीन का तेल निमोनिया (पांसुली के दर्द ) में बहुत लाभकारी है |


पानडी

     पानडी का वृक्ष छोटा होता है , इसका अतर सूंघने से मस्तक पीडा दूर हो जाती है , अतर को गरम कर दिन में चार बार मस्तक पर लगाने से शिर की पीडा शांत हो जाती है | पानडी का अकेला अतर अथवा उसमें जायफल घिस कर मिलावे और दो तीन बार सूंघै तो सरसाम रोग शांत हो जाता है |


गुलदाउदी पीले फूल वाली

 पीले फूल की  गुलदाउदी के पत्ते पीस कर गाय के मठा में उबालें और उसको जहर बाद के उपर बांधे तो पांच छः दिन में फोडा अच्छा हो जाता है , अथवा अकेले पत्ते बिना पीसे हुए, मट्ठे में उबाल कर बांधने से रोग शांत हो  जाता है |


गुलदाउदी सफेद फूल वाली

सफेद फूल वाली दाउदी के फूल अथवा फूलों का अतर सूंघने से पींस रोग शांत हो जाता है | तथा दाउदी के पत्तों क र्स निकाल कर उसमें अजमोद जलाकर मिलावे और घोट कर बेवची पर लगावे तो बेवची रोग दूर हो जाता है |


बेर

सं .- कर्कधू , काल , सौवीर हस्तिकला | हि.- बेर , पैमदी बेर , बडे बेर | बं- बडकुल गाछ , बरूई  , शियाकुल | म. बोरिच , झाढ बोर , रायबोर | गु.- मोटी बोरडी | अं. - जुजब | फ - कुनार | बेर का वृक्ष कुछ बडा होता है | बेर वृक्ष की डालियों में पत्तियों के मेल में कांटे होते हैं | बेर खटे और मीठे होते हैं | बहुत मीठे बेरों में अनेक गुण हैं | मीठे बेर के खाने से बल बडता है , शरिर में रूधिर शुद्ध होता है | प्यास शांत हो जाती है | खटे बेर खांसी को उत्पन्न करते हैं | यदि फोते सूज गये हों तो बेर वृक्ष की छाल पीस कर फोतों पर लेप करने से सूजन दूर हो जाती है | तलवों में जलन हो तो बेर की पत्ती चार तोला , इलायचि सफेद चार , मिश्री दो तोला इनको घोंट कर पीवे  और पत्ती जल में पीस कर झाग उठा कर पांव के तलवे पर लेप करें तो जलन दूर हो जाती है | बेर की गुठली की मिंगी पानी में पीस कर पीने से भष्मक रोग दूर हो जाता है | बेर के पत्ते को पीस कर पेडू पर लेप करने से बन्द पेसाब उतरता है | बेर की पेड की जड मुखमें रख कर चूसने से स्वर भंग दूर हो जाता है | बेर की पत्ती का लेप बलतोड को दूर  करता है | बेर की मिंगी , छोटी इलायची ,सफेद चन्दन और धान की खील , सम भाग का चूर्ण खाने से वमन दूर हो जाता है | बेर का सत्त पेचिस को दूर करता है | बेर की पत्ती पीस कर घी में भून कर ठोडा सा नमक मिलाकर खाने से स्वर भेद और कास (खांसी ) दूर हो जाती है | पका बेर और जीरा मूत्रकृछ्र को दूर करता है | ये गुण देशी बेर के हैं |   


कद्दू

कद्दू को बंगाल में गंगाफल कहते है | कद्दू अर्थात लौकी का बेल चढता है कद्दू के फूल पीले होते हैं , बेसन में लपेट कर भूने जाते हैं | इनकी तरकारी स्वादिष्ठ बनती है | उडद की पीठी के साथ मसाला डाल कर घी अथवा तेल में गुल-गुलों की भांती भून कर बनाने  से बडे स्वादिष्ठ होते हैं | लौकी की तरकारी में मेथी की छौंक लगती है | खटाई मीठा डाल कर भलीभांती भून कर बनाने से बहुत स्वादिष्ठ तरकारी बनती है | कोई - कोई गंगाफल पक्का सात सेर तक होता है इसके बीज पाग कर फलाहार में खाये जाते हैं | इसके बीज के तेल में अनेक गुण हैं | दाह ,जलन,मस्तक पीडा आदि रोग इससे दूर हो जाते हैं | जब बालक मूत्र नही उतरता है तब इसके फल डंठल घीस कर नाभि पर लगाने से बालक का मूत्र उतरता है | लौकी के पत्तों का रस लगाने से बवासीर का कष्ठ दूर होता है | यह अरूची और हृदय रोग में भी हितकारी है |


लायची

    नाम - सूक्ष्मैला | हि. छोटी इलायची ,गुजरती इलायची | बं - गुजराती एलायची | मं- वेलची | गु.- एलची कागदी | फा. हैल | करडमन | अरबी में - शिलीसर | विवरण- छोटी इलायची का पेड होता है | फल सफेद और लाल इलायची के समान होता है | इसके बीज काले और रसभरे होते हैं | इसकी मात्रा एक माशा की है | गुण- कफ , श्वास ,कास,अर्श,मूत्रकृछ्र आदि रोगों को नष्ट करती है | रस में चरपरी ,शीतल,तथा हल्की और वात विनाशक है | छोटी इलायची सुगंध,कडवी ,पित्तजनक ,मुख की विरसता को हरने वाली ,गर्भ को गिराने वाली तथा छय , विषविकार ,वातरोग और शिरोरोग , अश्मरा रोग ,और खुजली तथा घाव इत्यादी को दूर करती है | बडी इलायची का चूर्ण शहद के साथ प्रमेह को दूर करता है | इलायची से पीत्त की खांसी अच्छी हो जाती है | इलायची ,कत्था ,शीतल चीनी और हंशराज की पत्त्ती का चूर्ण मुखरोग नाशक है | मूत्रकृछ्र में इलायची का चूर्ण शहद के साथ खाने से विशेष लाभ होता है | वमन पर - इलायची के छिलके की राख शहद के साथ चाटे |


अमरूद

सं- पेरूक ,अमृतफल | हि. - सफेद सफरी, लाल सफरी,बीह, अमरूद | म.- पांडरे पेरू , तांबडे (गुलाबी) पेरू,| गु.- जामफल ,पेर | अं. ग्वावा | फा.- अमरूत | अमरूद के वृक्ष मंझोले होते हैं | प्रायः गृहस्तो के घर इसके वृक्ष होते हैं | बगीचों में इसके वृक्ष बहुत होते हैं | इसका कच्चा फल ताजा लेकर पीसे और उसमें मिश्री मिला कर खाने से दस्त बन्द हो जाते हैं | अमरूद को आग में भून कर नमक मिलाकर खाने से खाँसी शांत हो जाती है | अमरूद का मीठा फल बल को बडाता है | अमरूद के पत्तों की लुगदी से बंगभस्म हो जाता है | पका अमरूद खाने से दस्त साफ होता है | अमरूद फल और पीसी हुई पत्ती खाने से भांग का नसा उतर जाता है | अमरूद की पत्ती औटा कर कुल्ला करने से दंत का दर्द दूर होता है | अमरूद के पत्ते और कत्था लगाने से मुंह के छाले अच्छे हो जाते है |


सीताफल (शरीफा)

सं- आतृप्य | हि.- शरीफा,सीताफल | बं- आता | मं- सीताफल | अं.- कस्टर्डएप्प्ल | फा- काज |सीताफल का वृक्ष बडा होता है | इसके पत्ते घोंट कर पीलाने से नसा उतर जाता है | इसका फल बादी और ठंण्डा होता है , कीडे पड गये हों तो इसके पत्ते लगाने से कीडे जाते रहते हैं | इसके पत्ते पानी में पीस कर पीने से दाह और गर्मी शांत हो जाती है | शरीफा के बीज पीस कर लेप करने से मस्तक पीडा शांत हो जाती है | और बीजों के तेल से जुआ मर जाते हैं | मूत्राघात रोग में शरीफा की जड पीस कर पानी में घोल कर तथा छान कर पीना चाहिये |


काली मिर्च

नाम- सं.- मरीच, सीत मरीच | हि.-काली मरिच | बं.- मरिच ,गोल मरिच | म.- मिरी | गु. - मरी, तीखा | फा.- पिलपिले ,अं .- ब्लैक पीपर | विवरण- मिर्च लता है | दक्षिण देश के कोंकण मालाबार आदि की उपजाउ भूमि में अधिकता से उत्पन्न होती है | वहां के रहने वाले इस लता के छोटे-छोटे टुकडे करके बडे - बडे वृक्षों की जड में लगा देते हैं | तीन वर्ष में लता पर फल आता है | फल पक कर लाल हो जाते हैं ,परंतु सुख जाने पर काले हो जाते हैं शाक इत्यादि में काली मिर्च मसाला के साथ डाली जाती हैं | काली मिर्च के गुण - काली मिर्च चरपरी, तीक्ष्ण,रूक्ष ,किंचित उष्ण , पाक में मधुर ,हलकी,छेदक ,शोषक तथा अग्निवर्धक है | यह कफ,वात नाशक तथा पित्त जनक है | इससे श्वास, शूल,कृमि,हृदय रोग ,प्रमेह,अर्श रोग और शिरोरोग नष्ट हो जाते हैं | कच्ची मिर्च का सेवन करने से सूजन दूर हो जाती है | गाय के घी के साथ पीसी हुई मिर्च का सेवन करने से अर्श रोग का नाश होता है | एक मिर्च को सूई की नोक से बेध कर उसको अग्नि अथवा दिपक लो पर जलावे ,उसका धुंवा सूघने से हिक्का और शिर की पीडा शांत हो जाती है | मिर्च में घी मिश्रीत कर खाने से अनेक प्रकार के नेत्र रोग दूर हो जाते हैं | मिर्च का चूर्ण घी और शक्कर के साथ स्वर भंग को दूर करता है | मिर्च और मदार की जड की छाल की अदरक के रस में बनी गोली हैजा की खास दवा है | मिर्च और बताशा का कडा जुकाम को दूर करता है | खुजली में - मिर्च अंवलासार ,गंधक बराबर दूने घी में लगावे और धूप में बैठे | शीत पीत में - घी और मिर्च का चूर्ण मिला कर लगावे और खाय | खांसी में - मिर्च का चूर्ण शहद घी और चीनी के साथ चाटे | मिर्च का चूर्ण तुलसी या हरिसींगार अथवा गूमा के रस के साथ पीने से मलेरिया बुखार दूर होता है | घोडे की लार में काली मिर्च घिस कर आंख में आंजने से अतिनिद्रा रोग दूर होता है | अपनी लार में मिर्च घिस कर थोडी सी कस्तुरी मिलाकर आंजने से निद्रा आती है | मिर्च के लेप से उठता हुआ फोडा बैठ जाता जाता है | काली मिर्च के क्वाथ से कुल्ला करने से मसूडों का फूलना दूर होता है | ककडी या खीरे के बीजों के साथ कालीमिर्च पीने से मूत्र उतरता है |


अनार

 नाम- सं . - दाडिम | हिन्दी - अनार | बं . दडिम,डालिम | म.- डालिंव गु. दाडयम | अं . - पामग्रेनेट | फा. - अनार , तुरस,अनार सीरीं | अनार खटा - मीठा भेद से दो प्रकार का होता है | दो तोला तक इसकी मात्रा होती है | खटे अनार के छिलके का अर्क खांसी जाती रहती है | और मीठे अनार को खाने से रूधिर बढता है | अनार का छिलका दस्त ,ऎठन ,संग्रहणी , कांच निकल आना और बवासीर ,इन रोगों को दूर करता है | उसका प्रयोग इस प्रकार है - अनार के छिलके का अर्क दो तोला उसमें सेंधा नमक मिलाकर गरम करके पीये | अनार का अर्क शक्कर अथवा सेंधा नमक मिला कर पीने से खांसी और स्वास रोग नष्ट होता है | अनार का छिलका और माजूफर लगाने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं | अनार के छाल का चूर्ण उपदंश के घाव को दूर करता है |


नीबू

नाम - सं .- नीबूक, जम्बीर | हि . - नीबू , कगजी नीबू , जम्बीरी नीबू , बिहारी नीबू मीठा नीबू | बं - कागजी लेम्बू , जामीर लेंबू , पातो लेंबू , कमला लेंबू | म.- कागदी लिंबू , ईद लिंबू,मीठे ईद लिंबू , साखर लिंबू | अं . - लेमन | फा. - लिमुने तुर्ष , लिमुनेशिरों | नीबू दो प्रकार का होता है 1 बडा 2 छोटा | बडे नीबू कई प्रकार के होते हैं | खटे - मीठे , गल गल और छोटा नीबू कागजी कहलाता है | खटा नीबू को खटाईयों में निचोडते हैं | और मीठा नीबू दाह और प्यास को शांत करता है | मेदा को बल देने वाला होता है | रूधिर की तीक्ष्णता को रोकता है | अन्य भी अनेक गुण नीबू में हैं | कगजी नीबू भी प्यास और दाह को शांत करता है | रूधिर विकार को दूर करता है | छोटे-छोटे किडों के विष को हरता है | दो कागजी नीबू लेकर एक में एक रत्ती भर पीसा हुआ चूना और कच्ची खांड भरे , दूसरे में स्याह मीर्च , सोंचर नमक ,पीस कर भरे , और गरम करे ,पहले चूना खांड भर हुआ नीबू चूसे ,फिर मिर्च नमक वाला चूसे | कागजी नीबू को चाकू से काटकर धोवे , फिर उस पर स्याह मिर्च ,सेंधा नमक पीस कर डाले और आंच पर फदका कर चूसे | चीनी के शर्बत में नीबू का रस डाल कर अजीर्ण और पेट का भारी पन दूर होती है | नीबू का रस एक तोला ,जवाखार 3 मासा ,शहद 6 मासा मिलाकर पीने से पंसुली , ह्र्दय और पेट का दर्द अच्छा होता है | नीबू के रस में चीनी और सुहागा मिला कर मुख पर मलने से मुख के झाई और दाग मिटते हैं | गरम दूध में नीबू का रस मिलाकर हिलाने से मक्खन की तरह झाग पैदा होते हैं ,उस झाग को मुख पर मलने से दाग ,झाई,वगैरह दूर होते हैं और कांती बढती है | नीबू के रस में अफीम मिलाकर लोहे के बर्तन में घोटे और आंख के पलकों पर लगावे तो आंखों की सूजन ,लाली , पीडा , और खुजली आदि रोग दूर होते हैं | पुदीना का अर्क नीबू की सिकंजबीन डाल कर पीने से पित्त जनित दाह और वमन शांत होता है | कगजी नीबू फदका कर सोंचर पीपर पीसकर गरम करके चूसने से ज्वर शांत हो जाता है | कगजी नीबू की खट्टाई खांसी और दमा को छोड कर सब रोगों में खाने योग्य है | नीबू हैजा, अजीर्ण , और अम्लपित्त रोगों को दूर करता है | आगे


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जाल शिक्षकःbrajgovinddas@yahoo.com

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