आयुर्वेद 8 //\\ यंत्र

आयुर्वेद में नाना प्रकार के रस शोधन करने के यंत्र हैं | कुछ का वर्णन यहाँ किया जा रहा है --

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 अधोमुख पाताल यंत्र   विवरण - एक हण्डी लेकर उसमें दूध या औषधि का रस जिसके साथ दवा पकाना हो  भर दे | हण्डी के उपर एक लोहे की छड़ या पतली लकड़ी रख दे उसी में पोटली में रखी हुई दवा बाँध कर लटका दें जिससे दवा हण्डी के भीतर द्रव पदार्थ में लटकती रहे | किंतु हण्डी के पेंदी में छू न जाय बाद में हण्डी  को चूल्हे पर चढा कर नीचे आँच देवे | इसे दोला यंत्र कहते हैं | इस यंत्र में पारा ,हरताल , विष , आदि का संशोधन किया जाता है |

 

 अर्क निकालने का यंत्र विवरण - इस नीचे चूल्हे में आँच दी जाती है | इससे जायफल लौंग , जावित्री , इलायची , इनका अर्क भी निकाला जाता है | जिसका अर्क निकालना चाहे उसको एक तसले में रक्खे , तसले के बीच में प्याला रक्खे और तसले पर तवा रख चारों  ओर मुद्रा करे , तवा में जल भर देवे  | उपलों  की आँच चूल्हे में देवे , जो अर्क प्याला में  आवे उसको रख देवे | जिसका अर्क निकालना  हो वह जिस रोग का हितकारी हो उस रोग में पान में रखकर खाय | इनका अर्क शिर में लगाने से भी चित्त प्रसन्न रहता है | उपर | घर  | आगे

 छप्पै यंत्र  विवरण - एक छटाँक चीनियाँ कपूर , मिश्री एक तोला , चन्दन एक तोला , कपूर कचरी , टेटी की जड़ ,खस आठ -आठ माशा , पुनर्नवा , शोरा लोबान , इलायची , केशर ,कबाब  चीनी ,हर्रे तीन-तीन माशे , इनको पीस केला के अर्क में घोट हाँडी में भर देवे और हांडी  के मुँह पर कटोरा रक्खे और आटा की मुद्रा देवे  | जो उड़कर कटोरे में आ लगे उसे ही बरास कपूर जाने | उपर | घर  | आगे

 

   गिरदगिल यंत्र विवरण - गिरदगिल यंत्र से कसीस,नौसादर ,शोरा , फिटकरी आदि क्षारों का तेजाब निकाला जाता है |  

    रससिन्दूर साधक बालुका यंत्र   विवरण -   इस यंत्र से रस सिन्दूर बनाया जाता है | उसकी विधि इस प्रकार है - शुद्ध पारा चार भाग , शुद्ध गंधक चार भाग दोनों को एक खरल में 6 पहर तक घोटे | घोटते घोटते दोनों मिलकर काले हो जाते हैं  इसे ' कज्जली ' कहते हैं | इस कज्जली को सात बार कपड़ मिट्टी की हुई शीशी में रख कर बालू भरी नाद में रखे | बालू शीशी के गले तक रहनी चाहिए | नाँद की पेन्दी में पहले कानी अँगुली लाने लायक एक छेद भी कर देना चाहिए और छेद पर एक ठिकरा रख दे बाद में नाद चूल्हे पर चाढ़ा कर दो दिनों तक निरंतर आँच देता रहे और एक लोहे की सलाका शीशी में डाल कर 3-3 घण्टे में चलाता रहे जब शलाका निकालने पर और आग के डालने पर न जले तब शीशी में डाट लगाकर थोड़ी देर और आँच लगावे ,तेज लगाने से शीशी फूटने का डर रहता है | बाद ठण्डा होने पर अलग करके शीशी फोड़ कर उपर की तरफ लगा हुआ रस सिन्दूर  निकाल ले |

मृगांक चाँदी कृष्ण वर्ण विवरण - हरताल ,मनाशल ,शिंगरफ ,पारा और आँवला सार गंधक , नौसादर 1-1 तोला लेकर पीसे | फिर एक शीशी पर कपड़मिट्टी कर सुखा लेवे और पीसे हुए द्रव्यों को शीशी में भर कर रक्खे ,परंतु शीशी का मुँह खुला रहने दें | फिर एक खपड़े को ले जो इतना गहरा हो कि उसमें बालू भर कर बीच में शीशी को गले पर्यंत गाड़ दे और चूल्हा में चढा कर दो प्रहर तक आँच दे | जब धुँआ बन्द हो जाय तब उतार कर फिर शीशी मे से दवा निकाल ले पाँच तोला चाँदी में सवा तोला औषध डालकर गलावे और प्याला बनावे , कृष्ण वर्ण चाँदी हो जायेगा | तो उस प्याला में दूध पीने से बल बढ़ता है | उपर | घर  | आगे

कूर्म आतिश यंत्र  विवरण - कूर्म आतिश यंत्र कछुआ के आकार वाला होता है | इसमें जावित्री ,जायफल का तेल मिलाकर लौंग का चोवा निकाले , लौंग का चौवा खाने से शिर की पीड़ा शाँत होती है | और नरेली के चोवा से दाद जाता रहता है |

मृगांक विधि यंत्र  विवरण - राँग ,आँवला , गंधक , पारा , नौसादर 1-1 तोला भर लेवे | पहले राँग को खलावे ,फिर उसमें पार छोड़े | बाद में उतार कर उसमें गंधक ,नौसादर डालकर सबको पीसकर शीशी में भर मृगांक बनावे | चाँदी के कही हुई रिति से मृगांक रस तैयार हो जाता है | इसका रंग सोने के समान होता है पान में खावे , मात्रा दो रत्ती है | एक सप्ताह के सेवन से कफ ,दमा, और श्वास के रोगी को अच्छा करता है |उपर | घर  | आगे

गज कुम्भाक्ष यंत्र(1 )  विवरण - गज कुम्भाक्ष यंत्र से शंख द्रव्य  तैयार किया जाता है | सुहागा ,जवाखार ,फिटकरी ,पाँचो नमक  और चूना यह  सब 1- 1 छटांक  अथवा आधा पाव लेकर एक हाँड़ी में भर कर हाँड़ी का मुँह और कुच्चड़ को  इस प्र्कार घिसे कि दोनों  का मुख एक मेल हो जाय , तब मुद्रा देकर आँच दे | एक शीशी को पानी में रक्खे , उसमें यंत्र की नली अलगे  - जिससे शंखद्रव उतर आये | गज कुम्भाक्ष यंत्र विवरण - गज कुम्भाक्ष यंत्र से शंख द्रव्य तैयार किया जाता है | सुहागा ,जवाखार ,फिटकरी ,पाँचो नमक और चूना यह सब 1- 1 छटांक अथवा आधा पाव लेकर एक हाँड़ी में भर कर हाँड़ी का मुँह और कुच्चड़ को इस प्रकार घिसे कि दोनों का मुख एक मेल हो जाय , तब मुद्रा देकर आँच दे | एक शीशी को पानी में रक्खे , उसमें यंत्र की नली अलगे - जिससे शंखद्रव उतर आये उपर | घर  | आगे

  गज कुम्भाक्ष यंत्र(2 )  विवरण - ओंगा का खार ,जवाखार ,पपरिया खार ,नौसादर ,चूना , चनाखार , पाँचों नमक , इन सबका समान भाग लेकर मिट्टी के पुराने और साफ घड़े में भरे | फिर उस पर एक कुच्चड़ रखकर कपड़ मिट्टी कर कुच्चड़ में छेद कर शीशी के मुख को मिलावे जिससे द्राव उतरे | इस द्रव को भी वैद्य से पूछ कर काम में लावे |

शिंगरफ से पारा निकालने का यंत्र    विवरण - शिंगरफ पावभर लेकर घीक्वार के ,नीबू या नीम की पत्ती के रस में एक पहर तक घोटकर टिक्की बनाये और हाँड़ी में रक्खे ,फिर एक और हाँड़ी लेकर उसका मुँह घिस कर मिला दे | अनंतर मुद्रा देकर आँच पर चढाये और उपर वाला हाँड़ी में पानी का पोता फेरे | इस प्रकार पारा उपर की हाँड़ी में लग जाता है |  उपर | घर  | आगे

  शंखिया का फूल उतारने का यंत्र विवरण - गाय के मूत्र में आधा पाव शंखिया लेकर  भिगो दे | फिर जल पारा के रस में एक दिन  भर घोट कर घीक्वार  के पाठा के रस में घोटे  बाद में हाँड़ी में  भर दे  और दूसरी  हाँड़ी  ले दोनों का मुख मिला दे मुद्रा देकर आँच पर चढ़ाये और अमरबेल पानी उस पर फेरता जाय तो शंखिया का फूल उड़ता है उसे लेकर बलानुसार  खाँसी श्वास  आदि रोग के रोगी को दे   अथवा वैद्य से पूछ कर सेवन करे  | उपर | घर  | आगे

बीजादिक के तेल उतारने का यंत्र  विवरण - इस यंत्र के अधो भाग में शीशी रक्खी जाती है | उसी शीशी में तेल आता है | मालकाँगनी ,धतूरे के बीज जायफल बराबर लेकर कपड़मिट्टी कर सुखाई हुई हाँड़ी में भरे और हाँड़ी के नीचे पेंदी में छेद कर शीशी के मुँह पर धरे और मन्द -मन्द आँच देवे तो तेल नीचे की शीशी में टपकेगा |उपर | घर  | आगे

लोबान के फूल उतारने का यंत्र विवरण - ऊपर कही हुई रीति के अनुसार लोबान का भी फूल उतारा जाता है | लोबान का फूल सेवन करने से खाँसी ,श्वास रोग जाता रहता है | , मस्तक पर लगाने से और सेवन करने से आलस्य दूर होता है |

राल मोम बिरोजा आदि के तेल उतारने का यंत्र  विवरण - राल, मोम , रूमी मस्तगी , सवा सेर लेकर कड़ाही में रख मन्द-मन्द आँच करे | फिर मटर के बराबर ईट का चूरा गलते हुए मोम अथवा बिरोजा में दो सेर मिलाये और हाँड़ी में भरे फिर दूसरी हाँड़ी ले , दोनों का मुँह घिसकर मिलावे और कपड़ मिट्टी कर रस्सी से दोनों हाँड़ियों को बाँध कर नली पर मिट्टी लगाय नीचे के पात्र में नली लगाये | उपर की हाँड़ी में फोता फेरता जाय तो तेल उतरता है | बताशा में भर कर यह तेल बलानुसार एक -दो व तीन बार दस दिन सेवन करने से प्रमेह सुजाक जाय | रूमी मस्तगी और बिरोजा का तेल पहले दिन पाँच बूँद दूसरे दिन दस बूँद तीसरे दिन 15 बूँद दूध में डालकर पीये | बादी को दूर करने के निमित्त मोम के तेल का मालिश करे | उपर | घर  | आगे

फिरंगयंत्र  विवरण - बादाम सन्दल का तेल भबका में देकर फूल अथवा मसाला डेग में डाले फूल से दुगुना पानी डाले और इस यंत्र से उतारे | इसमें उत्तम वैद्य की सम्मति ले ले |

नागेश्वर यंत्र  विवरण - पहले शीशे को धोकर कोरे कपड़े में रख कर आँच पर धरे ,जब शीशा गल कर लाल रंग का हो जाय ,तब नीम के सोंटे से बराबर घोटता जाय तथा पीपर और इमली छाल का राख का चूर्ण डालता रहे | जब शीशा जलकर भष्म हो जाय तब तब ठण्डा होने पर निकाल ले | यह नागेश्वर भष्म है | इसे पके केले के फल में बलानुसार रख कर खाने से कुछ ही दिन में प्रमेह ,सुजाक ,गरमी - सुस्ती रोग जाता रहता है | उपर | घर  | आगे

भष्मी सम्पुट यंत्र   विवरण - शंखिया को मदार  के दूध में भिगोवे  फिर  पीपल की रख एक कूंडे में भरे जब आधि भर जाय तब उसमें शंखिया रखकर  आधा राख भी भर दे | इस प्रकार पुष्टता से भरे  कि किसी ओर से धुँआ न निकले | क्योंकि विषैले धुँए से नेत्रों को बहुत हानि पहुँचती है | अनंतर  चूल्हे की आँच पर चार पहर की आँच देवे  | जब त्वाँग शीतल हो जाय  तब उतार दे  और वैद्य से पूछ कर इसको प्रयोग करे | उपर | घर  | आगे

हरताल भष्म करने का (भष्मी सम्पुट ) यंत्र   विवरण - हरताल का बारीक वर्क चार तोला लेकर मदार के दूध में तीन दिन भिगोवे फिर मोटे थूहर के दूध में तीन दिन भिगोवे | फिर एक हाँड़ी में इमली की छाल की राख से आधा भरे फिर उसमें हरताल रखकर फिर राख दबाकर भरे | फिर हाँड़ी का मुख बन्द कर और मुद्रा देकर आँच पर चढ़ावे और चार पहर आँच देकर उतार ले शीतल होने पर बलानुसार मात्रा तिजारी और ताप रोग में देवे | उपर | घर  | आगे

 

 दोला यंत्र  विवरण - नीचे मुख वाले पाताल यंत्र से बीजों का तेल निकाला जाता है | वह इस प्रकार कि जो बीज चिकने हों जैसे रेंड़ी ,धतूरा आदि ,यदि इनका तेल निकालना हो तो एक आतशी शीशी लें | कपड़ मिट्टी से उसको पुष्ट कर उसमें बीज रक्खे और शीशे के मुँह धर सींकों की डाट लगा दे | फिर एक कपड़े में छेद कर उसकी राह शीशी की नली निकाल कर गड्डा खोदकर उस गड्डे में एक प्याला रख कर शीशी का मुँह प्याला में कर चारों तरफ उपलों के छोटे-छोटे टुकड़े रखकर आँच दे तो नीचे तेल निकलता है |  

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