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गुरू परम्परा | दर्शन
कलिकाले नामरूपे कृष्ण अवतार
| नाम हैते हय सर्व जगत निस्तार
|| (चै . च . आ . 17/22)
कलिकाल में भगवान श्रीकृष्ण ही , कृपापूर्वक नाम रूप से अवतीर्ण
हुए हैं | इसलिए
श्रीकृष्ण नाम , साक्षात श्रीकृष्ण ही हैं |
इस श्रीकृष्ण नाम संकिर्तन द्वारा , जगत के लोग , संसार से
उद्धार पाकर , श्रीकृष्ण को पाकर के , हमेशा के लिए सुखी हो सकते हैं
| कलियुग पावन अवतारी
श्रीचैतन्य महाप्रभु ने श्रीनाम संकिर्तन को ही सर्वश्रेष्ठ साधन कहा है
| व्यासदेव का सर्व शेष समाधि
से प्राप्त वस्तु ,पुराणरत्न श्रीमद भागवत के आदि -मध्य -अंत में श्री नाम संकिर्तन
की प्रचुर महिमा गाई गई है |
श्री देवर्षि नारद ने श्रीब्रह्मा के चतुर्मुख और श्रीशिव के पंच
वदन से निगम आगम श्रवण करते हुए , इस श्रीहरीनाम संकिर्तन को ही सर्वश्रेष्ठ और परम
गति कहा है | गौर पार्षद
प्रवर श्रील सनातन गोस्वामी पाद अपने श्रीवृहदभागवतामृत में लिखते हैं कि - "
कृष्णस्य नानाविध किर्तनेषु तन्नाम्संकिर्तनमेव मुख्यम
| तत्प्रेमसम्पज्जनने स्वयं
द्राक्रा शक्तं ततः श्रेष्ठतमं मतम तत || "
अर्थात वेदपुराण आदि शास्त्र पाठ , कथा , गीत और स्तुति
इत्यादि के भेद से , श्रीकृष्ण के बहु प्रकार कीर्तन के मध्य में उनका नाम संकिर्तन
ही मुख्य है | कारण उसके
द्वारा , शीघ्र ही श्रीकृष्ण पेम सम्पद का आविर्भाव होता है
| इसलिए सर्वविध साधन भक्त्यांग
के बीच में इसको ही मुख्य बलिष्ठ एवं श्रेष्ठ साधन कहा है
|
अतः हमें हरे कृष्ण महामंत्र का मनोयोग से संकिर्तन या जाप करना
चहिए
|
मेरे जीवन का अब
तक के तीन घटना
गौ सेवा द्वारा कृष्ण की कृपा
जब मैं इस्कॉन मुम्बई में 16मई सन 1991 में
आजीवन भक्त बनने के लिए पहुंच गया | तो दूसरे दिन मुझे एक भक्त
के कहने से मैं कर्जत नामक जिला अंतर्गत नसरापुर गाँव में
इस्कॉन का कृषिफार्म में भेजा गया | वहाँ पर हमने 8 महिना तक
सेवा किया था | शूरु में हमें गायों को चराने का सुअवसर मिला
मुझे तो गाय चराना आता ही था क्योंकि बचपन से हमने गाय का
देखभाल किया था | परंतु अब भक्त बनने के बाद गाय पहली बार चरा
रहा था अतः इस गाय चराने और बचपन के गाय चराने में बहुत अंतर
था | अब मैं पूरी तरह से यह सोचकर गाय चराता था कि ये कृष्ण की
अत्यंत प्यारी पशु हैं | और मैं गाय चराते समय यह भी सोचा करता
थ कि किस तरह से भगवान्
कृष्ण आज से 5000 साल पहले जब आये थे तो गायों चराने वृन्दावन
में ले जाते थे | और नाना प्रकार की लीलाएँ करते थे | दिन भर
उस नदी किनारा यही सोचता हुआ मन में अपार एक प्रकार का आनन्द
का अनुभव करता था | और कभी-कभी देखता था कि जब गाय चर कर पूर्ण
संतुष्ट हो जाती थीं तो दुध देने वाली गौ तक उच्छलते -कुदते थे
मैदान में और यह भी कई बार मैने देखा कि जब दूध देने वाली गाय
पेटभर कर चर लेती थी तो गायों के थन से दूध झरता जाता था और इस
तरह से घास गीला हो जाता था | यह मैं आँखों से कई बार देखा मुझे
यह देखकर बड़ा ही सुख मिलता था यह सोचकर कि भगवान भी जब
वृन्दावन में गाय चराते थे तो ऐसा ही दूध झरता था | वह स्थान
आज भी है बड़ा ही रमणिय नदी किनारा है बढ़िया साफ पानी है | हम
लोग प्रायः शुरू में नदी के उस पार गायों को चराने ले जाते थे
| और 12 बजे वापस नदी के इस पार घर ले आते थे | एक बार की बात
है बारीश का मौसम था फिर हमने उस पार सुबह नदी पार करके गायों
को लेकर गया आज हम अकेला था | हमने लगभग 12 बजे तक गायों को
चराकर वापिस इस पार घर ले आया | परंतु दुर्भाग्य से एक काला
बैल उधर ही रह गया चूँकि 12 बजे लगभग बारीश आना चालू हो गया था
इस लिए उसको लाने के सोचा मगर ला नहीं पाया क्योंकि तब तक बाढ़
भी नदी में बढ़ गया था | लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा था कि बैल
उधर ही न रह जाय | मैं शाम तक देखता रहा कि बैल उस पार ही और
चर रहा है और बारीश में भीगा हुआ भी | मैं एक भक्त से बताया था
कि बैल एक आया नहीं है तो उसने कहा कि कोई बात नहीं अपने आप आ
जायेगा | लेकिन मैने देखा कि शाम तक बहुत अधिक बाढ़ नदी में आ
गया जिसका पार गाय बैल भी नहीं कर सकता और वह बहुत ही ढालू है
जिससे पानी का वेग बहुत ज्यादा हो गया था | जब तक हमने पूरा
अंधेरा नहीं छाया बैल को देखता रहा मगर बैल उसीपार चरते हुए
दिखाई दिया | मुझे तो भय लग रहा था कि इसके कारण मुझे लोग
डाँटेंगे | रात गया 11 बजे हमने फिर एक बार गोशाला में चक्कर
लगाया फिर भी आया नहीं | उस दिन बारीश बहुत जोर से बरश रहा था
नदी का पानी बढ़ता ही गया रात 11 बजे भी हमने देखा तो बारीश गिर
रहा था | मैं 11 बजे गोशाला से वापिस आकर सो गया परंतु मुझे डर
के कारण नींद आया सब सो गये लेकिन मैं सारी रात जगा ही रहा |
रात बिता हुआ लगभग 3 बज रहा होगा उसी समय मुझे थोड़ा सा झपकी आ
गया और उसी झपकी में भगवान कृष्ण साक्षात रूप में मतलब त्रीभंग
ललीत खड़े एक दम श्याम सुन्दर रूप कमर में बांसुरी खोसे हुए ,
पीला धोती पहने , और गर्दन में पीताम्बर लटका था , और शिर में
हल्का मोर मुकुट शोभा पा रहा था | मेरी ओर मुस्काये और बोले "
बैल आ गया है " मैं यह श्याम शरीर देखकर चकित तो था हि मेरे
आँखों ने मुझे फिर बाधा डाल दिया पूरा आँसू आँख मे भर आये उस
सोये अवस्था में ही आँखों से आँसू झर रहे थे मैने पूरा
रोमांचित होकर जगा तो देखा कि मेरा बदन आँसू से भीगा हुआ है |
अब भी मुझे वह श्याम सुन्दर रूप मेरे मानस पटल में चित्र की
भाँती स्थिर हो गई है | मैं जल्दी से दूसरा में गया और अपने
मित्र भक्त को जगाया और बताया कि भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर कहा
है कि " बैल आ गया है " वह तो सुनकर इतना आनन्दित हुआ कि उसी
समय हम दोनो लालटेन लेकर चले गोशाला की ओर | क्या आश्चर्य देखते
हैं कि सचमुच बैल आ गया है और बँधा भी है | सबसे अदभुत बात यह
था कि हमने 11 बजे रात आकर देखा था बैल नहीं आया था उस समय और
हम प्रतिदिन की तरह उस दिन भी गोशाला का दरवाजा बँद करके ताला
लगा दिया था | हम देख रहे थे उस भक्त के साथ कि ताला भी खुला
नहीं है और बैल भी बँधा हुआ है | और तीसरा चमत्कार देखा कि जिस
बाँस की छड़ी को मैंने भगवान को पकड़े हुए देखा था वह भी गोशाला
के बीचों बीच पड़ी है मैं उस भक्त को दिखाया कि यही बाँस की छड़ी
भगवान पकड़े थे | वह भी तीन जगह मुड़ा हुआ था | अब भी मुझे
सन्देह था कि कोई बैल को लाया होगा तो हमने जो भी वहाँ काम करने
आते थे सब से पूछा तो बताये कि हमें मालुम नही | तब वे भक्त जो
साथ में थे कहे कि यह सब भगवान कृष्ण आप पर कृपा की एक
झाँकी प्रस्तुत किये हैं | तब मैंने भगवान को कोटी-कोटी
धन्यवाद करते हुए प्रणाम किया | ये सभी बात हम दोनों भक्त आपस
में भगवान की कृपा का करते -करते 4 बज गया फिर दूध दुहने वाला
आकर के फिर गोशाला में दूध दुहा | और हम लोग भी मंगल आरती के
लिए नहाना था तो चले गये नहाने |
-brajgovinddas
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