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श्रीकृष्ण 125 वर्ष 7 माह 6 दिन पृथ्वी पर रहे

भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म सातवें मंनवंतर ( वैवस्वत ) के अट्ठाईसवें द्वापर युग के अंतिम  चरण  में 8 लाख 63 हजार 874 वर्ष  4 माह 22 दिन व्यतीत हो जाने पर भाद्रकृष्ण अष्टमी रोहीणी नक्षत्र  में मध्यरात्रि को हुआ था | वे 125 वर्ष 7 माह 6 दिन तक रहे | जिस दिन श्रीकृष्ण का निज धाम प्रस्थान हुआ उसी दिन द्वापर युग का अंत और कलियुग का प्रारंभ हुआ | श्रीकृष्ण के इस धराधाम प्रस्थान से करने से अब तक यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  7 सितम्बर 2004 तक 5105 वर्ष 5 माह 22 दिन व्यतीत हो गये हैं | इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म  वर्ष 21 जुलाई 3228 ईसा पूर्व  है | 7 सितम्बर 2004 की जन्माष्टमी  के दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  के 5231 वर्ष पूर्ण होकर 5232 वां  वर्ष प्रारंभ हुआ है | जिस समय भगवान् प्रकट हुए उस समय अभिजित नामक मुहूर्त था | रोहीणी नक्षत्र का योग होने से अष्टमी की वह रात जयंती कहलाती थी और विजय नामक विशिष्ट मुहूर्त व्यतीत हो रहा था | कलियुग का आरंभ 3102 ई. पूर्व 18 फरवरी शुक्रवार को हुआ | वर्तमान ई. सन् 2004 इसी सातवें वैवस्वत मन्वंतर की अट्ठाईसवीं चतुर्युगी कलियुग का पाँच हजार एक सौ छटा वर्ष है | कलियुग का प्रारंभ होने के काल से यदि श्रीकृष्ण की आयु का वर्ष संख्या घटा दिया जाय तो भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म वर्ष 21 जुलाई , 3228 ई. पूर्व प्राप्त होता है | श्रुति- स्मृति पुराणोक्त वैदिक गणित ज्योतिष की इस अमिट काल रेखा के क्रम में विशिष्ट शोध के उपरांत प्राप्त श्रीकृष्ण निजधाम -प्रस्थान की तिथि इस प्रकार है -

श्रीकृष्ण निजधाम गमन तिथि - प्रतिपदा
माह- चैत्र
पक्ष - शुक्ल
दिन - शुक्रवार
दिनाँक - 18 फरवरी 3102 ई.पूर्व
समय - मध्याह्न
बजे - 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकेण्ड
युगाब्द - ( द्वापर ) - 8 लाख 64 हजार वर्ष
सृष्टियाब्द - 1 अरब 97 करोड़ 26 लाख 84 हजार 463 वर्ष
स्थल - प्रभाष क्षेत्र - हिरण्य नदी तट ( सौराष्ट्र ) गुजरात |

इस प्रकार श्रीकृष्ण को इस धराधाम से प्रस्थान  करने से अब तक यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 7 सितम्बर , 2004 तक 5105 वर्ष 5 माह 22 दिन व्यतीत  हो गये | ( यह वही क्षण है जब द्वापर युगीन भगवान् श्रीकृष्ण  के निज धाम प्रस्थान  के साथ ही द्वापर युग ने भी अपनी आयु 8 लाख 64 हजार  वर्ष पूर्ण कर ली  और भगवान् श्रीकृष्ण के साथ ही प्रस्थान किया | ठीक उसी दिन कलियुग का प्रवेश हुआ | )  ( श्री विष्णु पुराण चतुर्थ अंश अ. 24/108,113, पंचम अंश अ. 37/8) , श्रीमद् भागवत् प्रथम स्कंध अ. / 15/36 , महत्म्य अ. 1/66) , (मत्स्य पुराण अध्याय , 271/51,52 ) में स्पष्ट उल्लेख है | स्पष्ट है कि  जिस दिन भगवान् श्रीकृष्ण  परमधाम  को गये थे , उसी दिन कलियुग का प्रवेश हो गया था | ' चूँकि श्रीकृष्ण  जन्म के समय द्वापर युग के 8 लाख 63 हजार 874 वर्ष 4 माह 22 दिन व्यतीत हो चुके थे , तब भाद्रकृष्ण  अष्टमी - रोहिणी नक्षत्र  में मध्यरात्री 12 बजे भगवान् श्रीकृष्ण  का प्राकट्य  हुआ और सूर्योदय 23 वें  दिन का था | भगवान् श्रीकृष्ण चंद्र 125 वर्ष 7 माह 6 दिन इस धराधाम  पर रहे और सातवें दिन निज धाम प्रस्थान  किया | यदि हम इन वर्षों का योग करें तो ठीक द्वापर युग के 8 लाख 64 हजार वर्श उसी दिन पूर्ण हो जाते है | जिस दिन प्रभु श्रीकृष्ण  का निज धाम प्रस्थान हुआ | श्रीकृष्ण जन्म के दिन द्वापर युग की वर्ष आयु 8,63,874 वर्ष , 4 माह ,23 दिन श्रीकृष्ण  भोग आयु वर्ष + 125 वर्ष , 7 माह ,7 दिन कुल योग = 8,63,999 वर्ष ,11 माह 30 दिन , 11 माह 30 दिन यानी 1 वर्ष अब हम 8,63,999अ में + 1 वर्ष का  योग करें तो हमें = 8,64,000 वर्ष द्वापर युग  की पूर्ण आयु मिल जाती है | इस तरह श्री कृष्ण निज धाम प्रस्थान  के दिन ही द्वापर युग  की वर्ष आयु 8लाख 64 हजार वर्ष भी पूर्ण हुई  और कलि का प्रवेश हो गया | श्रीविष्णुपुराण पँचम अंश के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण को इस धराधाम पर जिस दिन 125 वर्ष 7 माह पूर्ण हुए थे , उसी दिन उन्हें स्वधाम पधारने के लिये देवताओं ने प्रार्थना की थी | भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए ठीक 7 सातवे दिन स्वधाम पहुँचने का संकल्प पूर्ण आश्वासन दिया | निज-धाम प्रस्थान हेतु प्रभास क्षेत्र चलने का निश्चय भी किया | ( श्रीमद्भागवत 11/6/25-35) , ( श्री विष्णुपुराण 5/37-20-23-25-30 ) में इसके प्रमाण हैं | श्रीमद्भागवत एकादश स्कन्ध अ. 7 मंत्र 2,3,4, के अनुसार भी 7 दिन की पुष्टि होती है | इस गोपनिय रहस्य को भगवान् श्रीकृष्ण ने उद्धवजी से बताया है | कि पृथ्वी पर समस्त देवकार्य मैं पूर्ण कर चुका हूँ , जिसके लिए ब्रह्माजी की प्रार्थना से मैं बलरामजी के साथ अवतीर्ण हुआ था | मेरे प्रस्थान का समय है आज के ठीक सातवे दिन समुद्र इस द्वारकापुरी को डुबो देगा |  प्यारे उद्धव जिस क्षण मैं मर्त्य लोक का परित्याग कर दूँगा ,उसी समय कलि प्रवेश हो जायेगा , परंतु मुझ अविनाशी के जन्म -कर्म की दिव्यलीला इस मृत्युलोक में मानव जगत को अमृतत्व प्रदान कराती रहेगी | " जन्मकर्म च मे दिव्यं " द्रष्ट्व्य है -(श्रीमद्भागवत 11/7-2-3-4-म , 3/55-61) एतिहासिक ग्रंथ महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण निज धाम प्रस्थान का वर्ष समय महाभारत युद्ध (कुरूक्षेत्र ) से छतीसवें वर्ष का था |

महाभारत युद्ध के पश्चात जब छत्तीसवाँ वर्ष प्रारंभ हुआ , तब महाराज युधिष्टर  और भगवान श्रीकृष्ण को एक साथ घोर अपशकुन  दिखाई देने लगे ,ठीक छत्तीस वर्ष पूर्व महाभारत  युद्ध  के समय जैसे अपशकुन और अमांगलिक योग उत्पात आरंभ थे | त्रिकाल दर्शी भगवान् श्रीकृष्ण चंद्र ने  द्वारकावासियों को प्रभास क्षेत्र तीर्थ यात्रा  करने के लिये आदेश दिए और स्वयं बलरामजी के साथ प्रभास क्षेत्र आये | स्कंध पुराण भी पुष्टी करता है | देखें - (स्कंध पुराण 7/237/5-3-7), श्रीमहाभारत मौसल पर्व अ. 1/ 1-13अ. 2/19-20-24) उपर्युक्त  एतिहासिक दृष्टांत से भी श्रीकृष्ण निजधाम प्रस्थान  का समय 125 वर्ष 7 माह 7 दिन , स्थल प्रभास  क्षेत्र  का ही पुष्ट प्रमाण मिलता है |  इस प्रकार परंपरा से प्राप्त  ग्रंथों  द्वारा सूक्ष्म  मीमांसा से यह ज्ञात होता है कि भगवान् श्रीकृष्ण की आयु के 89 वर्ष व्यतीत हो गये थे और 90 वर्ष की आयु आरंभ थी तो ठीक 2 माह 7वें दिन कुरूक्षेत्र महाभारत  का समरागंण सजने लगा था और महाभारत युद्ध के बाद 36वाँ वर्ष आरंभ होते ही द्वारका पुरी में अपशकुन एवं अमांगलिक  उत्पात  आरंभ  हो गये | इन साक्ष्यों के आधार पर यदि हम श्रीकृष्ण चंद्र के महाभारतकाल की आयु 89 वर्ष ,2 माह 7 दिन  में महाभारत युद्ध के बाद  का 36 वर्ष योग करें तो 125 वर्ष 2 माह 7 दिन ही होता है और और ठीक 5 वें माह चैत्र शुक्ल  प्रतिपदा  का वह योग होता है , जब भगवान् श्रीकृष्ण  निज धाम को प्रस्थान करते हैं | और उसी दिन कलियुग का प्रवेश हो जाता है | वर्तमान में 2004 ई. सन् कलियुग का 5106 वर्ष है | अनेक प्रकार के शास्त्री गणनांकों एवं यांत्रिक उपकरणों ,कम्प्युटर आदि से भी सिद्ध है कि कलियुग का आरंभ 18 फरवरी 3102 ई. पूर्व  शुक्रवार चैत्र शुक्ल-प्रतिपदा  को हुआ | यदिअ हम कलि आरंभ तिथि 3102 ई.पू. में 2004 ई.सन् का योग करें तो हमें 5106 वर्ष कलि सवत वर्ष प्राप्त होता है | जो वर्तमान में चल रहा है |

 

श्रीदामोदराष्टकम्( कृष्णद्वैपायन् व्यास जी के पद्मपुराण में सत्यव्रतमुनि द्वारा उक्त ) ' कार्तिक माह में भगवान् दामोदर की पूजा करनी चाहिए तथा प्रतिदिन दामोदराष्टक गानी चाहिए ,जिसे सत्यव्रत मुनि ने बताया है | और जिससे भगवान् दामोदर विशेष आकर्षित होते हैं | ''                      ( हरिभक्तिविलास - 2.16.198 )

नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं,लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं | यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं,परामृष्टमत्यंततो द्रुत्य गोप्या ||1||
रूदन्त मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं करांभोजयुगमेन् सातङ्कनेत्रम | मुहुःश्वासकंप-त्रिरेखाङ्ककण्ठ , स्थितग्रैवदामोदरं भक्तिबद्धम् || 2 ||
इतिदृक स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे ,स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् | तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं ,पुनः प्रेमतस्तं शतावृति वन्दे || 3 ||
वरं देव ! मोक्षं न मोक्षावधिं वा , न चान्यं वृणे
sं वरेशादपिह | इदं ते वपुर्नाथ ! गोपालबालं , सदा में मनस्याविरास्तां किमन्यैः ? || 4 ||
इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलैर् | वृतं कुन्तलैः स्निग्धवक्रैश्च गोप्या | मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे ,मनस्या विरास्तामलं लक्ष लाभैः || 5 ||
नामो देव ! दामोदरान्त विष्णो ! प्रसीद् प्रभो ! दुःखजालाब्धिमग्नम | कृपादृष्टि वृष्ट्यातिदीनं बतानु गृहाणेश ! मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः || 6 || कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत् त्वयामोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च | तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ , न मोक्षे ग्रहो मे
sस्ति दामोदरेह || 7 ||
नमस्ते
sस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने ,तवदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने | नमो राधिकायै ! त्वदीय प्रियायै ,नमोsन्त लीलाय देवाय तुभ्यम् || 8 ||

 1. जिनका सर्वेश्वर सच्चिदान न्द स्वरूप है , जिनके दोनों कपोलों पर मकराकृत कुण्डल हिल - डुल रहे हैं , जो गोकुल नामक दिव्य धाम में परम शोभायमान हैं , जो ( दधि बर्तन फोड़ने के कारण ) माँ यशोदा के डर से भाग रहे थे लेकिन माँ यशोदा ने किसी तरह से अखिर पकड़ ही लिया है ---- ऐसे भगवान् दामोदर को मै विनम्र प्रणाम करता हूँ |
2. ( माँ के हाँथ में लाठी देखकर ) वे रोते हुए बारम्बार अपनी आँखों को अपने दोनों हाँथों से मल रहे हैं | उनके नेत्र भय से विह्वल हैं | रूदन के आवेग से सिसकियाँ लेने के कारण उनके त्रीरेखायुक्त कण्ठ में पड़ी हुई मोतियों की माला कम्पीत हो रही है | इन परमेश्वर भगवान् दामोदर का , जिनका उदर रस्सी से नहीं अपितु माँ यशोदा के प्रगाढ़ प्रेम के बंधन से बंधा है मैं प्रणाम करता हूँ |

3. जिन्होंने इस प्रकार निज बाल लीलाओं द्वारा गोकुलवासियों को आनन्द के सागर में डुबोते रहते हैं | और अपने ऐश्वर्य ज्ञान में मग्न अपने भक्तों के प्रति " मैं भक्तों से पराजित होता हूँ " ऐसा भाव प्रकट किया है | मैं पुनः बार-बार प्रेम पूर्वक उन ईश्वर की शत-शत बार वन्दना करता हूँ |
4. हे देव ! सर्वविध वर प्रदान करने में समर्थ ,आपके निकट से मोक्ष ,मोक्षावधि बैकुण्ठलोक ,किं वा अन्य कुछ भी वर लेने का इच्छुक मैं नहीं हूँ | हे नाथ ! मेरे मन में इस प्रकार वर्णित भवदीय बालगोपालमूर्ति साक्षात् भाव से सर्वदा जागरित रहे , इसके अलावा अन्य मोक्षादि की आवश्यकता ही क्या है ?
5. हे नाथ ! स्निग्ध,अत्यंत श्यामल कुञ्चित अलकावली वेष्टित,बारम्बार माँ यशोदा द्वारा चुम्बित एवं बिम्बरक्ताधर शोभित वदनकमल सदा मेरे मन में प्रकाशित रहे | अन्य किसी प्रकार लक्ष लाभ की मुझको आवश्यकता नहीं है |
6. हे देव ! हे दामोदर ! हे अनन्त ! हे विष्णो ! मुझ पर प्रसन्न हो ओ | हे प्रभो ! हे ईश ! मैं दुःखसागर में निमग्न हूँ मैं अज्ञ हूँ | करूणा दृष्टि रूप वर्षा द्वारा मेरी रक्षा किजिये | और मेरे नयन पथ में प्रकट होईये |
7. आपने जिस प्रकार उलूखल में पाशबद्ध होकर भी नलकुँवर - मणिग्रीव नामक कुबेर के पुत्र द्वय को मुक्त किया , और भक्ति का अधिकारी किया , मुझको भी उसी प्रकार प्रेम भक्ति प्रदान किजिये | इसमें ही मेरा आग्रह है | मोक्ष में मेरा आग्रह नहीं है |
8. निखिल प्रकाशमान तेज का आश्रय भवदीय उदर बन्धन महापाश को एवं विश्व के आधार स्वरूप आपके उदर को मैं प्रणाम करता हूँ | आपकी प्रियतमा श्रीमती राधाजी को भी मैं प्रणाम करता हूँ | हे अनन्त लीलामय देव ! आपको प्राणाम करता हूँ |

इस्कॉन के भक्त का फिर से जन्म

 

 

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