इस्कॉन
के चार नियम 1
परस्त्री गमन नहीं करना
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समाज को सबसे अधिक दुशित करने वाला
है परस्त्री गमन अर्थात् अपनी स्त्री को छोड़कर पराई स्त्री के साथ समागम करना | एक
स्त्री स्वाभाविक रूप से दो परिवारों से जुड़ी होती है | माता-पिता और दूसरा पति के
सबंध से पति के सारे सबंधि |इस प्रकार एक स्त्री के द्वारा पाप और पुण्य के भागी
दोनों परिवारों को होना पड़ता है | यदि स्त्री पाप करती है तो दोनों कुलों को नरक
में ले जाती हैं अर्थात् उसके पाप के कारण दोनों पितृ कुल और पति कुल को नरक जाना
पड़ता है | इसलिए एक स्त्री की रक्षा सर्वदा मानव समाज के लिए बहुत ही
महत्वपूर्ण है | कोई भी पूरूष ये न सोचें कि जो भी सामने स्त्री है बस मेरे लिए ही
है | जीव वास्तव में न स्त्री है न पुरूष फिर भी व्यवहार चलाने के लिए भगवान् ने एक
समुचित समाजिक सुव्यवस्था हेतु स्त्री -पुरूष की रचना करके बहुत बड़ा दान दिया है
| हमें भगवान् की इस सुनियोजित व्यवस्था पर बलिहारी जानी चाहिए | चाणक्य पण्डित कहते
हैं कि ' अपने स्त्री को छोड़कर बाकि सब स्त्रियाँ माँ के समान हैं जिस प्रकार माँ
माता लक्ष्मी या माँ दुर्गा देवी के समान पूजनियाँ हैं उसी प्रकार जो भी स्त्री है
माँ का ही स्वरूप है | इसलिए अपने पत्नी के अलावा सबको माँ की भाँति देखना चाहिए |'
कितना भी दुराचारी कोई हो उसे भी माँ का अपमान सहन नहीं करना चहिए अर्थात् अपने
स्त्री के अलावा माँ कहे जाने वाले स्त्री की भी रक्षा की जानी चाहिए | अन्यथा पाप
का फल बहुत ही कठोर होगा | | उसकी रक्षा समाज का हर व्यक्ति का कर्तव्य है | जहाँ
भी स्त्री प्रसंग होगा वहाँ अनाचार फैलने की आशंका होगा | स्त्री को कभी भी ये सोचने
का अधिकार नहीं दिया जाना चहिए कि वह स्वतंत्र है | वह हमेशा अपने को अपने स्वजनों
के ही सरक्षण में सुरक्षित करे | यहाँ पर हमने परस्त्री गमन का शीर्षक दिया है
लेकिन इसका अर्थ दोनों है अर्थात् एक पुरूष को जिस तरह पराई स्त्री के समागम से बचना
चाहिए उसी तरह से एक स्त्री को भी पर पुरूष गमन से बचना चाहिए यह समझना चाहिए | इस
प्रकार कोई भी भगवान् कृष्ण के भक्ति का पथिक है उसे यत्न पूर्वक इन चारों नियमों
का अर्थात् माँस , मदिरा,हिंसा,द्युत का कड़ी से कड़ी प्रयत्न के साथ पालन करना चाहिए
| अन्यथा समाज में उत्पात का कारण निश्चित है | और हमारे तथाकथित भक्ति करने का साधु
होने का कोई अर्थ नहीं यदि हम इन नियमों का उल्लंघन करते हैं | यदि हम इस
प्रकार के पापों में लिप्त रहते हैं और साथ में भक्ति भी करते हैं तो इस संसार में
तो दण्ड और निन्दा का पात्र बनेंगे ही बाद में घोर नरक में जाना होगा ऐसे पापों के
लिए | हम किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हो यदि इन चारों महापापों को कर रहे
हैं तो निश्चित है कि हमारे तथाकथित धर्म मात्र छलावा अर्थात् अपने को छलना मात्र
है | वास्तविक धर्म जहाँ होगा वहाँ अवश्य इन पापों के लिए जगह नहीं होगा | कहने
अर्थ यह है कि हमारे सदाचार के बिना धर्म पालन करना अधर्म का ही पालन करना हुआ | हमें
परस्त्री गमन से बचने के लिए अनेक उपाय करना होगा जैसे - सुन्दर स्त्री का मुख की
ओर बारंबार न देखना , टीवी न देखना ,फिल्म न देखना | स्त्री के विषय में कामुक
चार्चा नहीं करना | ऐसे लोग जो हमेशा स्त्रियों के विषय या संसार के कामुक विषयों
पर चर्चा करते रहते हैं उनका संग नहीं करना | सोते वक्त भागवत जैसे शुद्ध सात्विक
ग्रंथों का अध्ययन कर सोना | अपने को सारा दिन भगवान् से सबंधित कार्यो में व्यस्त
रखना | अधिक नहीं सोना और अधिक नहीं जगना , रात को देर तक नहीं खाना | ये सब कुछ
अपने को स्त्री संग से बचाये रखने में सहायक हो सकते हैं | प्रयास तो यही होना
चाहिए कि एक अच्छे चरित्र वाला साधु से भक्त से लगातार सम्पर्क में रहें |
हरे कृष्ण !
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अंतरजाल प्रणेताः brajgovinddas@yahoo.com
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