आयुर्वेद 6

इस पेज में क्या - क्या है --
बाँस , निसोत , करंज , आक , नाँक छीकनी , करौंदा ,हुरहुर ,लिसोड़ा ,चना ,रूद्रवंती , खस , कसौदा ,पोई , पपीता , नागदौन ,सहिजन , ग्वार पाठा

 

परधर्म | ग्रंथालय | चार नियम | चित्र प्रदर्शनी | इस्कान वेब जाल | गुरू परम्परा | दर्शन


बाँस

नाम सं - वंश ,हिं - बाँस ,बं-बाँस ,म-बेलू , गु- बाँस ,फा-कसब,अं- बम्बूकेन | विवरण - बाँस केवन जंगल और पर्वत तलहटियों  में उत्पन्न होते हैं | फूल सफेद आता है ,बाँस में वंशलोचन  निकलता है | कभी-कभी बाँस पर जौ आते हैं | उन जौ में से चावल निकलता है | उसका भात बनाया जाता है | गुण - बाँस खट्टा , कसैला ,शीतल, सारक ,स्वादिष्ट  ,छेदक ,भेदक तथा कफ ,रक्तविकार ,पित्त ,कुष्ट,शोथ्,व्रण ,मूत्र कृच्छ्र , प्रमेह ,अर्श और दाह को दूर करता है |बाँस के अँकुर - पचने में  चरपरे ,कडुवे ,रूक्ष ,खट्टे ,कसैले ,भारी,सारक, स्वादु,और शीतल हैं | ये रक्त पित्त , दाह ,मूत्र कृच्छ्र और वातादि रोगों को नष्ट करता है | बाँस के चावल - कसैले ,मधुर ,पुष्टिकारक ,बलवर्धक ,उष्ण ,सारक ,रूक्ष एवं कडुवे हैं ,कफ,पित्त ,विष ,प्रमेह ,मूत्रकृच्छ्र और मूत्र रोग नाशक है | दोनो प्रकार के बाँस - (बाँस और रंध्र बाँस ) खट्टे ,कसैले,किचिंत कडुवे,शीतल तथा मूत्रकृच्छ्र , प्रमेह ,अर्श ,पित्त दाह और रक्तविकार नाशक है | रंध्र बाँस विशेष करके अग्नी प्रदीपक ,हृदय हितकारक ,तथा शूल तथा गुल्म विनाशक है |


निसोत

 नाम -सं --त्रिवृत ,हिं- निसोत ,बं-तेरडी ,म- निशोत्तर,गु-नसोतर,फा- निसोथ,अं- तुरबुद,टरबीथ रूट | विवरण - निसोथ के कई भेद होते हैं -सफेद निसोथ,श्याम निसोथ और लाल निसोथ |
1- सफेद निसोथ की बेली जंगल में होती है | इसमें सफेद फूल आते हैं | गोल -गोल फल आते हैं | उनमें चार -चार बीज आते हैं | पत्ते नोक दार गोल होते हैं | इसकी बेली की लकडी में तीन धारें होती हैं | सफेद निसोथ सबसे उत्तम होता है | 2- काले निसोथ की भी लता होती है | फूल काला पन लिये बैंगनी रंगा का होता है | पत्ते गोल-गोल नोकदार होते हैं | परंतु फल तथा पत्ते सफेद निसोथ से कुछ छोटे होते हैं | और सब आकार मिलता है | 3- लाल निसोथ भी इसी प्रकार का होता है | लालपन लिये पत्ते होते हैं | मात्रा - सफेद निसोथ की 2 मासे से 4|| मासे तक  मात्रा है | काले की मात्रा 1से  3 मासे तक है और लाल की 3 मासे से 6 मासे तक मात्रा है | गुण -निसोथ कडुआ ,चरपरा ,गरम ,रेचक ,रूक्ष ,तीक्ष्ण ,तिक्त,रसान्वित  और कटु पाकी है | इसका जुलाब हितकारी है | यह मल स्तम्भक ,ग्रहणी,उदर, कृमी,कफ,पाण्डु,प्लीहा ,ज्वर,पित्त ,वात रक्त,उदावर्त,उदावर्त,शोथ तथा कुष्ठ ,कण्डु, व्रण , तथा हृदय रोग  नाशक है  |  सफेद निसोथ - रेचक ,स्वादिष्ट ,गरम ,वातनाशक,है | यह सोथ ,पीत्त ,कफ ,ज्वर तथा उदर रोगों को दूर करने वाला है | काला निसोथ - सफेद निसोथ की अपेक्षा हिन गुण वाला किंतु इसमें विरेचन गुण अति तीव्र है तथा मूर्छा ,दाह,मद, भ्रांती नाशक एवं कण्ठ उत्कर्षण करने वाला है | लाल निसोथ - मधुर ,कसैला,मृदुरेची,रूक्ष , चरपरा है | इससे कफ,संग्रहणी और मल विष्टम्भ का नाश होता है | |
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                                                                     करँज

नाम सं- करँज,हिं-करँज,बं- डहर,म- चपडा,करँज,अं-स्मूथलिब्ड षोन गोमिया | विवरण - करँज के वृक्ष बहुत बडे -बडे होते हैं | जो अधिकतर वनों में होते हैं | पत्ते पाकर पत्तों के समान गोल होते हैं | और उपर के भाग में चमकदार होते हैं | इसके फूल आसमानी रंग के होते हैं | और फल भी नीले-नीले झुमकेदार होते हैं | पत्तों में दुर्गंध आती है | गुण - करँज पचने में चरपरी ,नेत्र हितकारी ,गरम ,कडुवी ,कसैली तथा उदावर्त, वात योनी रोग,वात गुल्म ,अर्श, व्रण , कण्डू , कफ ,विष ,कुष्ठ,पित्त,कृमि,चर्मरोग,उदररोग ,प्रमेह ,प्लीहा को दूर करती है | करँज के फल - गरम ,हल्के तथा शिरोरोग ,वात,कफ ,कृमि,कुष्ठ,अर्श और प्रमेह को नष्ट करते हैं | पत्ते - पचने में चरपरे ,गरम, भेदक ,पित्तजनक ,हल्के तथा वात ,कफ,अर्श ,कृमि,घाव तथा शोथ रोग नाशक है | फूल - ऊष्ण ,वीर्य तथा त्रिदोष नाशक है | अँकुर - रस एवं पचने में चरपरे ,अग्निदीपक ,पाचक ,वात , कफ,अर्श , कुष्ठ ,कृमि,विष ,शोथ रोग को नष्ट करता है | करँज तेल - तीक्ष्ण ,गरम , कृमिनाशक ,रक्तपित्तकारक ,तथा नेत्र रोग ,वात पीडा,कुष्ठ, कण्डू , व्रण तथा खुजली को नष्ट करता है | इसके लेप से त्वचा विकार दूर होते हैं घृत करँज - चरपरा गर्म तथा व्रण ,वात ,सर्व प्रकार के त्वचा रोग ,अर्श रोग ,तथा कुष्ठ रोग को नष्ट करता है | उपर | आगे | घर


                                                                    आक (मदार)

नाम - सं - श्वेतार्क , अलर्क , राजार्क , हिं - लाल आक ,सफेद आक , मंदार | बं - आकन्द ,श्वेत आकन्द ,म- रूई ,पाण्डरी रूई , गु - आकडा ,भोलो आकडी , अं - जाईजैटिकस्वैलोवर्ट ,फा- खुक दूध | विवरण - आक को मदार और अकौआ भी कहते हैं | इसका वृक्ष छोटा और छत्ता दार होता है | और पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं | हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं | इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है | फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं | आम के तुल्य होते हैं ,फल में रूई होती है | आक की शाखाओं में दूध निकलता है | वह दूध विष का काम देता है | आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है | चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है | यह वृक्ष दो प्रकार का होता है | एक बडा सफेद फूल वाला अच्छा होता है | दूसरा लाल फूल वाला होता है | आक पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है | बहरापन दूर होता है | दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है | आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है | तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है | एवं पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है | तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है | कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है | कोमल पत्ते खाय तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है | आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है | सूजन दूर हो जाती है | आक के फूल को जीरा ,काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है | दूध पीते बालक को माता अपनी  दूध में देवे तथा मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है | आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय 9 दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है | परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खावे | आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है | बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं | बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता | चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है | जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं | तलुओं पर लगाने से महिने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है | आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा सीधा हो जाता है | आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है | तथा आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है | एवं आक की जड को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है | तथा आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है | एवं आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है | बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है | तथा आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है | तथा आक की जड पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग जाता रहता है | तथा आक की जड के छाल के चूर्ण में अदरक का अर्क और काली मिर्च पीसकर मिलावे और 2-2 रत्ती भर की गोलियाँ बनावे इन गोलियों से हैजा रोग दूर होता है | आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खिजली अच्छी हो जाती है | आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धूँआ जोर से खींचे शिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है | आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है | आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी ) रोग अच्छा हो जाता है | उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये | आक ही के काडे से घाव धोवे | आक की जड के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है | आक की जड की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता | आक की जड का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है | आक की जड का चूर्ण 1 तोला ,पुराना गुड 4 तोला ,दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है | आक की जड पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है | आक की जड का धूँआ पीने से आतशक (सुजाक ) रोग ठीक हो जाता है | इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिये | और नमक छोड देना चाहिये | आक की जड और पीपल की छाल का भष्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है | आक की जड का चूर्ण का धूँआ पीकर उपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है | आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं | आक की जड का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन ) अच्छा हो जाता है | आक की जड 5 तोला ,असगंध 5 तोला ,बीजबंध 5 तोला ,सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर उपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है | आक की जड की काडे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला ले मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है | जिनको दूध नहीं पचता वे इसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं | आक की पत्ती और चौथाई सेंधा नमक एक में कूट कर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे | बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी ,दमा, प्लीहा रोग शाँत हो जाता है | आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है | | उपर | घर  | आगे


नाक छिकनी

नाम- सं - छिकनी ,अथवा उग्रगंधा ,हिं - नाक छिकनी , बं - छिक्कनीया , हाँचुटी , म- नाकशिकणी गु- नाकछिकणी ,फा- बेर गाउजवाँ , अरबी - उफर कुकुदुश | विवरण - नाकछिकनी का क्षुप होता है | पत्ते छोटे होते हैं | इसके नीचे कन्द होता है | इसके पत्ते तथा डंण्ठल को सूँघने से छिंकें आने लगती हैं | गुण - नाक छिकनी चरपरी , तीक्ष्ण , रूक्ष , एवं गरम है | यह वात - रक्त , कुष्ट ,कृमि , वात , कफ , रूधिर त्वचा ,- दोष , ग्रहपीड़ा ,भूतबाधा , और दृष्ट्दोष को नष्ट करती है | तथा पित्त एवं अग्निवर्धक ,रूधिर कारक , हल्की ,कसैली , और तीव्र गंधयुक्त है | नाक छिंकनी का चूर्ण सूँघने से शिर की पीड़ा दूर होती है | और शिर हल्का हो जाता है |


करौंद

नाम- सं - करमर्दक , हिं - करौन्दा ,करौन्दी , बं - करमूचा ,म- गोडाकडूकरबंधा , गु करदी ,करमदां , अं - जास्मिएफलावड़ कोरसा | विवरण - करौंदा वृक्ष दो प्रकार का होता है -- जंगली और देशी | जंगली करौंदा छोटा और काला मतर के बराबर होता है | इनको बालक बहुत खाते हैं | और देशी करौंदा बड़े होते हैं | वह कच्चे हरे होते हैं | और पकने पर सुर्खी लिये होते हैं | इनकी खट्टाई बनाई जाती है | कच्चे करौंदा की लुगदी से मूँगा भष्म किया जाता है | करौंदा के फल का नास सूँघने से पीनस रोग दूर होता है | करौंदा की जड़ को पानी में पीसकर पीलाने से अन्दर विष रहने पर वमन नही होता | नहीं तो वमन हो जाता है | करौंदे की चटनी अरूचि को दूर करती है | कड़ुवे करौन्दे की जड़ पानी में पीसकर खुजली सर्प - दंश में लगाना चाहिए और शोथादर में पीना चाहिए इससे बहुत लाभ होता है | | उपर | घर  | आगे


हुरहुर

नाम - सं - हिलमोचिका , हिं - हुरहुर ,बं - हिंचेशाक ,म - तिलवसा , कंनरकपाला फोड़ी , गु - कान फोंड़ी , अं - सनफ्लावर , और क्लेम विसकोस | विवरण - यह प्रायः चौमासे में और गीली जमीन में होता है | इसका पेड़ दो हाँथ तक ऊँचा होता है | चकबड़ की तरह 8 अँगुल तक का फल होता है | गुण - ' शोथं कुष्ठं कफं पित्तं हरते हिलमोचिका |" (भा. प्र.) हुरहुर का शाक - शोथ ,कुष्ठ ,कफ और पित्त को नष्ट करता है | विशेष उपयोग - कर्णरोग में हुरहुर के पत्तों का रस दिन में तीन बार छोड़ने से कर्ण शूल और कान बहना अच्छा हो जाता है | बिच्छू का विष - जिस तरफ बिच्छू ने डंक मारा हो उसी तरफ के कान में हुरहुर के पत्ते का रस छोड़ने से पीड़ा तत्काल दूर होती है | पेट के दर्द में - हुरहुर के पत्ते का रस सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए | शीत ज्वर में - हुरहुर के पत्तों का अर्क ज्वर आने के पहले दोनों कानों में छोड़ना चाहिए | सूजन - हुरहुर के पत्तों के रस में लोहे का मुर्चा मिलाकर लगाने से सूजन जल्दी दूर होती है | उपर | आगे | घर


लिसोड़

नाम- सं - श्लेष्मातक , भूकर्बुदार , हिं - लिसोड़ा ,निसोरे ,लमेरा , बं - बहुयार , चालता गाछ , बहोरी ,म- भोंखर शेलवट , भोंकरा गोधणी , अं - नेरोलिव्ड सेपिस्टन , फा - सिपिस्तान | विवरण - लिसोड़ा को लहसोड़ा भी कहते हैं | लहसोड़े का वृक्ष बड़ा होता है | उसके फल पके हुए लाकर कपड़े में रक्खे और सत्त निकाल ले और जितना सत हो उससे दूना गेंहूँ का आटा ले , फिर दोनों को मन्द-मन्द आँच पर घी देकर भूने और पाव भर खोवा तथा बराबर शक्कर उसमें छोड़े | फिर कुछ घी डाल कर भूने , फिर इलायची ,बंशलोचन , पीसकर मिलावे और घी डाल कर लड्डू बनावे | एक लड्डू सबेरे खाय तो धातु पुष्ट होवे और बढ़े तथा कच्चे लिसोड़े सुखा लेवे | फिर उसमें से तोला भर लेकर के डेड़ पाव गौदुग्ध के साथ पीवे तो धातु पुष्ट हो जाय बल बढ़े | लिसोड़ा की पत्ती और काली मिर्च का काढ़ा मिश्री डाल कर पीने से जुकाम , गला बैठना और खाँसी अच्छी हो जाती है | लिसोड़ा की छाल पानी में पीसकर पीने से अतिसार अच्छा हो जाता है | उपर | आगे | घर


चन

नाम - सं- हरिमंथ, हिं - चना , बं - छोला , म - हरबरा , गु- चणया , तै- चंगालु , क्र - और ता - कडले ,फा - नखुद , अं - ग्राम , ले- सीसर व्रीटीनम | विशेष विवरण - चना प्रायः भारत के सभी स्थानों में होता है | यह प्रायः कुवार मास में बोया जाता है | और माघ फागुन में पैदा होता है | इसका पेड़ प्रायः डेढ़ हाँथ ऊँचा होता है | प्रत्येक पेढ़ में 50 -60 फल्लियाँ होती हैं | हरेक फल्ली में दो तीन दाने होते हैं | इसका शाक भी खाया जाता है | इसके पेड़ में एक प्रकार का क्षार होता है | इसे चणक क्षार कहते हैं | यह बड़ा ही उपयोगी है |

गुण -

 चणकः शीतलो रूक्षः रक्तपित्तकफापहः |
लघुः कषायो विष्टम्भी वातलो ज्वर नाशकः ||
स चाङ्गारेण संभृष्टस्तैलभृष्टश्च तदगुणः |
आर्द्रभृष्टो बलकरो रोचनश्च प्रकीर्तितः ||
शुष्कभृष्टोअतिरूक्षश्च वातकुष्ठप्रकोपनः |
स्विन्नः पित्तकफ हन्यात सूपः क्षोभकरो मतः ||
आर्द्रोअतिकोमलो रूच्यः पित्त शुक्रहरो हिम |
कषायो वातलो ग्राही कफपित्तहरो लघु ||

चना - शीतल ,रूखा , रक्तपित्त तथा कफनाशक ,हल्का ,कसैला ,विष्टम्भी ,वातकारक और ज्वर नाशक है | अँगारे और तेल में भूनें हुए भी उपर्युक्त गुणों वाले होते हैं | गीला भूना हुआ चना अत्यंत रूखा ,वात और कुष्ठ कारक है | उबाला हुआ चना पित्त और कफनाशक है | चने की दाल पेट में खराबी पैदा करती है | गीला चना अत्यंत कोमल ,रूचिकारक ,पित्त शुक्रनाशक ,ठण्डा , कसैला ,वातकारक ,ग्राही , कफपित्तनाशक और हल्का होता है | विशेष उपयोग - 1) पाण्डुरोग - चना की दाल जल में भिगो कर और उसी के बराबर गुड़ मिला कर तीन दिनों तक खाने से पाण्डुरोग दूर होता है | प्यास लगने पर उसी दाल का पानी पीना चाहिए | 2) पसीना - भूना हुआ चना अजवाईन और बच का महीन चूर्ण बनाकर धूरा करने से पसीने का अधिक निकलना बन्द हो जाता है | 3) मस्तक वायु पर - चने का बेशन आधा सेर , राई की भूसी आधा सेर ,दोनों को चणकक्षार में मिला कर मस्तक पर लेप करने से वायु का प्रकोप कम होता है | 4) जुकाम में - भूना चना खाना चाहिए ,किंतु ऊपर से पानी नहीं पीना चाहिए | 5) धातु पुष्टि - चने की दाल और शक्कर एक में मिलाकर रात में सोते समय खाने से वीर्य पुष्ट होता है | किंतु उसे खाकर पानी नहीं पीना चहिए | 6) उदर शूल - एक तोला चणकक्षार में एक माशा सेंधा नमक मिलाकर पीने से सब प्रकार के उदर शूल नष्ट हो जाते हैं | 7) उन्माद और वमन पर - चने की दाल का पानी पीना चाहिए | 8) रक्तविकार में - चने की रोटी बिना नमक के और बिना घी के साथ खाना चाहिए | 9) कब्ज में - चने का बेशन गरम कर सूखा ही पेट पर मलने से कब्ज दूर होता है | उपर | आगे | घर


रूद्रवंत

रूद्रवंती बूटी पृथ्वी पर बेलदार लम्बी फैलती है | इसकी डण्डी लाल होती है | दो - दो अंगुल पर चने के समान पत्ते होते हैं | फूल नहीं होते | पत्ते के पास जड़ निकल कर पृथ्वी में गड़ जाती है | और एक प्रकार की रूद्रवंती पीले फूल वाली होती है | चिकने के कारण इसके नीचे चिंटियाँ रेंगती रहती हैं | इसकी ठंडाई पीने से कुष्ट रोग शाँत होता है | रूद्रवंती बूटी खाने से पेट के रोग को हरती है | शहद के साथ खाने से शरीर को मोटा करती है | उपर | आगे | घर


खस

 नाम - सं - उशीर , हिं - खस,गांडर ,म- व्याणार मूल ,बं - कालावाला ,गु- कालोबालो | विवरण - खस गांडर घास की जड़ है , इसको उशीर भी कहते हैं | गुण - उशीर शीतल, कड़ुवा , मधुर तथा हल्का है | दाह ,परिश्रम, पसीना को नष्ट करने वाला  है | विसर्प ,मूत्रकृच्छ्र  , व्रण , कफ ,मदात्यय ,वमन को दूर करता है | यह रक्त विकार में अधिक लाभ करता है | और रक्त शोधक पाचक  तथा स्तम्भक है | ठण्डक के लिए गर्मी के दिनों में इसकी टट्टियाँ दरवाजों में लगाकर उस पर पानी छिड़कते हैं | खस का चूरा ,पिड़ोर मिट्टी , और कपूर एक एक कपड़े की पोटली में रख कर गुलाब जल में भिगो कर सूँघने से शिर की गरमी ,चक्कर ,,ओकाई ,और दिल की घबराहट  दूर होती है | खस ,धनिया ,नागर मोथा ,लाल चन्दन  और सोंठ  का काढ़ा  मिश्री और शहद  के साथ पीने से तिजारी बुखार दूर होता है |   उपर | आगे | घर


कसौद

नाम - सं - कासमर्द , हिं- कसौंदी , बं - कालका सुन्मदा ,म - रानकासबन्दी , गु- कासोदरी , क- कासवदी फरहुल कसाद ,ते - गुर्र पुताढ्यम ,अं - राउण्ड पोडेड कसिया , लै - केशिया सोफरा | इसका पेड़ दो तीन फिट ऊँचा होता है | इसकी पत्तियाँ जामुन की पत्ती से कुछ हे छोटी होती हैं | फूल पीला होता है | इसकी फली चिपटी और लम्बी होती है | भीतर बीज चपटा होता है | अवध में इसे "बड़ा चकबड़ " कहते हैं |
कासमर्ददलं रूच्यं वृष्यं कालविषार्शनुत |
मधुरं कफवातघ्नं पाचन कण्ठशोधनम ||
विशेषतः कासहरं पित्तघ्नं ग्राहकं लघु (भा / प्र)

कसौन्दी की पत्तियों का शाक रूचिकारक , कफ,वीर्यवर्धक , अर्शनाशक , मधुर , कफवात नाशक , कण्ठशोधन , पित्तनाशक ,मलरोधक हल्का और खाँसी की खास दवा है | विशेष प्रयोग --
दाह में - कसौन्दी की जड़ पानी में पीसकर लेप करना चहिए | शोथ में कसौन्दी के पत्ते बकरी के दूध में पीसकर लेप करना चाहिए | हिचकी और खाँसी में कसौन्दी के पत्तों का काढ़ा बना कर पीना चाहिए | आँख की पीड़ा में कसौन्दी की पत्ती कारस छोड़े और और पलक पर उसकी पत्ती बाँधे | खुजली और कुष्ट में - कसौन्दी की पत्ती पीसकर लगाना चाहिए | स्वरभंग रोग में - कसौंदी की पत्ती घी में भून कर खाना चाहिए | बालक के पाँसूली चलने पर - कसौंदी की पत्ती का रस 1 माशा पिलाना चाहिए | भिलवा का विष - कसौंदी की पत्ती पीसकर लगाने से शाँत होता है |
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पोई

नाम - सं - उपोदकी , हिं - पोई , बं - पुईशाक , म- मायालु , गु- पोथी , अं - मलावर नाईटशेड और लै- बसेलारूब्राँ ,बसेला अल्बा | विशेष विवरण - इसकी एक प्रकार की लता होती है | यह कई प्रकार की होती है | इसमें से एक को नेवाल कहते हैं | इसे यदि बराबर पानी मिलता रहे तो , 50-60 हाँथ तक बढ़ सकती है | इसकी पत्तियाँ पान के समान बड़ी और मोटी होती हैं | इसके किसी अंश का टुकड़ा लेकर कहीं भी लगाया जा सकता है | दूसरी को गंगावली कहते हैं | यह लाल और सफेद 2 प्रकार का होता है | इसकी पत्तियाँ छोटी बथुआ के समान होती हैं | इसकी एक लता एक वर्ष से अधिक नहीं चलती है | इसमें मिर्च के बराबर फल भी होते हैं | उसका भीतरी रंग जामुन के रंग का होता है | इसे लाल स्याही बनाने के काम में लाते हैं |                                                         गुण - पोतकी शीतल स्निग्धा श्लेष्मला वातपित्तनुत |
                                                                                                     अकण्ठया पिच्छला निद्रा - शुक्रदा रक्तपित्तनुत ||
                                                                                                      बलदा रूचिकृत पथ्या वृंहणी तृप्तीकारिणी |

पोई का शाक - शीतल, चिकना , कफकारक ,वातपित्त नाशक , बलवर्द्धक ,रूचिकारक ,कण्ठ को अहितकारी , पिच्छल , निद्राजनक , शुक्रजनक , रक्तपित्त , नाशक , पथ्य , पुष्टिकारक और तृप्तीजनक है | विशेष उपयोग - अर्बुद रोग पर पोई और काँजी मट्ठे में पीसकर तथा थोड़ा नमक मिला कर लेप करना चाहिए | अनिद्रा रोग में - पोई का रस भैंस के दूध में मिला कर पीना चाहिए |
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पपीत

नाम सं - वात कुम्भ फल , एरण्ड खरबुज , हिं - पपीता , बं - वाता विलेखु , म- पोपेया , गु - पापेयो ,एरण्ड ,कामकड़ी ,तै- पोपड़ चेद्रु , त - पसाई , अं - पपाव ट्री , लै - कारिका पापैया | इसका पेड़ सभी जगह होता है | पेड़ बीस - पचीस फीट लम्बा होता है | पत्ते इसके रेंड़ की तरह होते हैं | छाल सफेद रंग की होती है | फल पत्तों के बीच नीचे की ओर लटके रहते हैं | फल अक्सर लम्बा होता है | कच्चे फल का रंग हरा होता है | पकने पर बाहर भीतर दोनो तरफ पीला हो जाता है | कच्चे फल की तरकारी होती है | पका फल मीठा होता है | और छील कर खाया जाता है | इसके बीज काले रंग के होते हैं | इसके कच्चे फल डंठल और फल में से दूध निकलता है | इसके दूध को इकट्ठा कर " पपेन " नाम की दवा तैयार की जाती है | जो मन्दाग्नी में विशेष लाभ दायक है |                                वातकुम्भफलं ग्राहि कफवातप्रकोपनम |
                                                                                                                  तत्पक्वं मधुरं रूच्यं पित्तनाशकरं गुरू ||

कच्चा पपीता मल को रोकने वाला , कफ-वात करता है | पका पपीता स्वाद में मधुर ,रूचिकारक ,पित्तनाशक और देर में पचने वाला है | विशेष उपयोग - बवासीर में कच्चे पपीता का रस लगाने से 3-4 दिनों में मस्सा मुरझा कर गिर जाता है | दाद में कच्चे पपीता का रस लगाने से बहुत जल्दी फायदा करता है | प्लीहा और यकृत रोग में यह अधिक लाभदायक है | पपीता का रस एक चम्मच भर चीनी मिला कर पीना चाहिए | तरकारी भी खाई जाती है | इन रोगों में कच्चा पपीताअ का टुकड़ा 3 दिनों तक सिरका में भिगोकर खाया जाता है | और पुल्टिस भी बाँधी जाती है |

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नागदौन

नाम - सं - नागदानी , हिं - नागदमन अथवा नागदौन , बं - नाग दमन , म- नागदवणी , गु - नागडमण | विवरण - नागदौन को ही वैद्य लोग " मुर्वा " का करते हैं | गुण - नागदौन चरपरी , कड़वी , हल्की ,तीक्ष्ण , एवं गरम है | यह कफ , मूत्र कृच्छ्र , व्रण ,विष ,उदर, रोग , वमन ,जाल गर्दभ , प्रमेह, कास, कृमि , गलगण्ड ,,शूल -गुल्म , ज्वर ,रूधिर विकार , आध्यमान , और ग्रह पीड़ा , एवं सर्व प्रकार की ग्रहों की शाँती करने वाली है | विशेषकर विषनाशक एवं कोठे को शुद्ध करने वाली मकड़ी तथा सर्व विष और योनी दोष नाशक है |

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सहिजन 

नाम - सं- शिग्रु , हिं - सहिजन , म- शेवगा ,गु- सरगाव , तै - मुलंग , ता- मोरंग , अं - हार्स राडिस , और ले - मोरिंगा टेरिगोस्पर्मा | विशेष विवरण - सहिजन का पेड़  बहुत बड़ा होता है | इसकी पत्ती छोटी होती है | इसके फूल गोल और गुच्छे दार होते हैं | इसका फल लम्बा और चिपटा होता है | इसका बीज सफेद और तीकोना होता है | इसके  कोमल पत्ते ,फूल और फल की तरकारी बनाई जाती है | यह औषध के काम में आता है | गुण - सौभाञ्जंफलं स्वादु कषायं कफपित्तनुत |   शूलकुष्ठक्षयश्वासगुल्महृद्दीपनं  परम || सहिजन की फल्लियाँ - स्वादिष्ट ,कसैली ,कफपित्त नाशक , तथा शूल ,कुष्ठ , क्षय, श्वास और गुल्मनाशक और अत्यंत दीपन  है | गुण - शिग्रुपत्र भवं शाकं रूच्यं वातकफापहम |  कटुष्णं दीपनं पथ्यं कृमिघ्नं पाचनं परम || (भा . प्र) सहिजन की पत्ती - रूचिकारक ,वातकफनाशक , कड़ुवी ,गरम, दीपन ,पथ्य ,कृमिनाशक , अत्यंत पाचक है | विशेष उपयोग - सिर दर्द में - सहिजन का बीज पानी में घीसकर नाश लेना चहिए | नेत्र रोगों में - सहिजन के पत्ते का रस शहद में मिलाकर अंजन करने से तिमिरादिक सभी रोग नष्ट  हो जाते हैं |   सर्पविष पर - सहिजन की छाल , कड़वी तरोई , और रीठा पीसकर रस निकाल ले और थोड़ा काली जीरी का चूर्ण मिलाकर  पिला दे तथा काटे हुए स्थान पर लगा दे | हिचकी में - सहिजन की छाल का काढ़ा पीना चहिए | कानों का बहना - सहिजन के सूखे फलों का चूर्ण छोड़ने से बन्द होता है | मलमूत्र की कमी - सहिजन के पत्तों के एक पाव रस में एक तोला सेंधा नमक मिला कर पीने से दूर होती है | गण्डमाला पर - सहिजन का दूध , सफेद गुले बाँस की जड़ , और काली मिर्च  पानी में पीसकर लेप करना चाहिए | नहरूंआ पर - सहिजन का दूध ,सफेद गुलेबांस की जड़ ,काला मिर्च पानी में पीसकर लेप करना चहिए | वायु में - सहिजन  की छाल का रस दो तोला ,आदि का रस 1 तोला इन सबको मिलाकर 6 मासे तक पानी के साथ 7 दिनों तक पीना चाहिए | शीघ्र प्रसव के लिए - सहिजन के जड़ का रस और पानी एक में पकाकर पैर के तलुओं पर मलना चहिए |  बालक का पेट बढ़ जाने पर - जङ्गली सहिजन का  छाल का रस और घी समभाग चम्मचभर  तीन दिनों तक पिलाना चहिए | संखिया के विष में - 2 तोले सहिजन की छाल का रस आधा सेर दूध में मिलाकर पीना चाहिए | प्लीहा में - सहिजन के छाल के काढ़े में छोटी पीपर और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए | कमर की पीड़ा में - सहिजन की छाल पीसकर और गरम करके बाँधना चाहिए | सब प्रकार के वायु पर - जङगली सहिजन के जड़ का रस पीना और सहिजन की पट्टी बाँधना चाहिए | आँखों के आने पर - सहिजन की पत्ती का रस शहद मिलाकर लगाना चाहिए | अंतर्विद्रधि में - सहिजन के काड़े में भूनी हींग का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए | विषम ज्वर - काले सहिजन का चूर्ण जल के साथ सेवन करना चाहिए | पथरी में - सहिजन का काढ़ा पीना चाहिए | सिर दर्द में - सहिजन के पत्तों के रस में काली मिर्च पीसकर लेप करना चाहिए | फोड़ों पर - सहिजन की छाल घीस कर लेप करे | बवासीर में - सहिजन के पत्तों का रस  पीयें | उपर | आगे | घर


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