आयुर्वेद 5

इस पेज में क्या-क्या हैं--?

1-भिंडी,2-गूलर,3-रास्ना,4-सेम,5-चन्दन,6-मालकांगनी,7-सरफोंका,8-पित्त पापडा,9-रेवटचीना,10-शिवलिंगी,11-मिर्च,12-रतालू,13-बड,14-सिताव,15-शीशम,16-अनन्नास,17-महुआ,18-धतूरा,19-सहदेई , 20-कनेर सफेद और लाल फूल की ,21-कनेर पीले फूल की , 22-अडूसा वृक्ष ,23- हरफारेवडी ,24-पाढ,25-सनाय

 

परधर्म | ग्रंथालय | चार नियम | चित्र प्रदर्शनी | इस्कान वेब जाल | गुरू परम्परा | दर्शन


भिण्डी

नाम - स-भिंण्डी,हिं-भिंडी , बं- स्वनाम ख्यात फलशाक ,म- भेंडे , गु- भौंडा, फा-वामिया | भिंडी का वृक्ष छोटा होता है | भिंडी का फूल 2 तोला पीस कर पावभर गाय के मठा में मिलाकर पीने से गिरती हुई धात बन्द हो जाती है | मिश्री 1 तोला भिंडी की जड 3 तोल ,सफेद इलायची 1 माशा ,काली मिर्च 1/2 माशा घोट कर पीने से ,अथवा कच्ची भिंडी मिश्री के साथ खाने से सुजाक रोग शांत हो जाता है | भिंडी की तरकारी भंरवा और भुंजियाँ दोनों प्रकार से बहुत स्वादिष्ट बनती है  और अरूचि को दूर करती है | बनारस में इसे राम तरोई कहते हैं ,और छत्तीसगढ में इसे रामकली कहते हैं | भिंडी की जड का चूर्ण बराबर शक्कर के साथ धातुदौर्बल्य  और आमवात को दूर करता है |


गूलर

 नाम - सं-उदुम्बर,हिं- गूलर , बं- य हुमुर , म- उदुम्बर , गु-उम्बरा,अरबी-जमीझ , फा- अंजीरे आदम , अं- किगूटी विवरण - उदुम्बर अर्थात गूलर (कठूमर ) का वृक्ष बडा होता है | इस पर फूल नहीं आते , इसकी शाखाओं में से फल उत्पन्न होते हैं | फल गोल -गोल अंजीर की तरह होते हैं और इसमें से सफेद -सफेद दूध निकलता है | इसके पत्ते लभेडे के से होते हैं नदी के उदुम्बर के पत्ते और फूल गूलर के पत्तों -फल से छोटे होते हैं | कठूमर के पत्ते गूलर के पत्तों से बडे होते हैं | इसके पत्तों को छूने से आँथों में खूजली होने लगती है | और पत्तों में से दूध निकलता है | गूलर नदी उदुम्बर और कठूमर के भेद से 2 प्रकार का होता है | गुण - गूलर शीतल , गर्भसंधानकारक ,व्रणरोपक , रूक्ष , कसैला ,भारी , मधुर,अस्थिसंधान कारक एवं वर्ण को उज्ज्वल करने वाला है कफपित्त,अतिसार तथा योनि रोग को नष्ट करने वाला है | गूलर की छाल - अत्यंत शीतल ,दुग्धवर्धक ,कसैली,गर्भहितकारी और वर्णविनाशक है | इसके कोमल फल- स्तम्भक ,कसैले ,हितकारी,तथा तृषा पित्त-कफ और रूधिरदोष नाशक है | मध्यम कोमल फल - स्वादु ,शीतल , कसैले,पित्त ,तृषा,मोहकारक एवं वमन तथा प्रदर रोग विनाशक है | तरूण फल - कसैले, रूचिकारी ,अम्ल ,दीपन ,माँसवर्धक ,रूधिरदोषकारी और दोषजनक है | पका फल - कसैला,मधुर ,कृमिकारक ,जड,रूचिकारक ,अत्यंत शीतल ,,कफकारक ,तथा रक्तदोष ,पित्त,दाह,क्षुधा,तृषा,श्रम,प्रमेह शोक और मूर्छा नाशक है | नदी उदुम्बर - गूलर - गूलर कई तरह गुण वाला तथा रसवीर्य और विपाक में उससे कुछ हिन है | गूलर का एक भेद काकोदुम्बरी अथवा कठूमर है | नाम - सं - काकोदुम्बरी,हिं-कठूमर ,बं- काकडुमुर,कालाउम्बर तथा बोखाडा ,गु- टेडौम्बरो ,अरबी-तनवरि ,फा-अंजीरेदस्ती,,अं-किगूटी | गुण- कठूमर स्तम्भक ,शीतल ,कसैला,तथा पित्तकफ ,व्रण,श्वेतकुष्ट,पाण्डुरोग,अर्श,कामला ,दाह ,रक्तातिसार ,रक्तविकार ,,शोथ ,उर्ध्वश्वास एवं त्वग दोष विनाशक है | उपर | आगे | घर


रास्ना

नाम - सं- रास्ना ,हिं-रासना , बं - रास्ना ,म- नावलीच्या मुलया ,गु- रसना , अं - जंजवील शामी , फा- रासुन , अं - प्लुचियालेनसियोलेटा | विवरण- बंगदेश के प्राचीन आम्रादि वृक्षों पर उत्पन्न होती है | इसकी जड वृक्ष की छाल के उपर जमी रहती है | फूल पीला बैंगनी छिंटेदार होती है | जड सहित रास्ना का छुप लाकर सुन्दर काष्ट के उपर नारीयल की टट्टी की छाया में रखकर पानी देने से वृक्ष बढता है और फूलता है | व्यवहार -जड की मात्रा दो तोले की है | परंतु पंजाब में रायसन के छोटे -छोटे पेड होते हैं | इसके फल्लियों में मोठ जैसे बीज होते हैं | उन्हीं को रास्ना के स्थान में प्रयोग करते हैं | यह वातनाशक द्र्व्य है , पंजाबी लोग इसीको रास्ना कहते हैं | गुण - आमपाचक ,कडुवी, भारी ,गरम कफवात नाशक ,तथा सूज्न ,रक्तवात , वात शूल ,उदर रोग , कास ज्वर , और विषविकार नाशक है | उपर | आगे | घर


 सेम

नाम - खंगशिम्बी ,कोलशिम्बी ,हिं - सेम ,सुअरासेम,गोजियासेम ,बं - शेमगाछ ,म- अनाईवी सेम , गु- परबोलिया , तारपारडी | विवरण - सेम की बेल दूसरे के सहारे उपर की ओर चढती है | सेम के फल को सेमी कहते हैं | जिसको सभी लोग जानते हैं और तरकारी बनाकर खाते हैं | अचार खटटाई बनाकर खाते हैं | सेम के पत्तों की लुगदी बनाकर 1 तोला राँगा और 6 माशा पारा खूब कूट पीस कर बारीक करके धरे और संपुट कर घडे में रख कर कण्डों की आँच से मन्द -मन्द लगावे तो पारा भष्म हो जाता है | सेम के पत्तों के रस में सफेद मिश्री घिसकर लगाने से दाद अच्छा हो जाता है | सेम के पत्तों के रस में सेन्हुवाँ (सिध्म) भी अच्छा हो जाता है | सेम की पत्तों का काढा यकृत और प्लीहा रोग को दूर करता है | उपर | आगे | घर


                                                                    चन्दन
नाम - सं - श्रीखण्ड , चंद्रकांत ,भद्रसार ,हिं - चन्दन ,म- चन्दन ,गु- सुखण्ड ,अं - सेंडलवुड, फा- संदल | विवरण - चन्दन का वृक्ष बडा होता है | उसका सुगंधित काष्ठ अनेक गुणों वाला होता है | चन्दन के तेल को चार बूँद बताशा में डाल कर खाय और उपर से गाय का कच्चा दूध पीने से सुजाक रोग दूर होता है | तथा चन्दन का तेल कपूर मिलाकर मस्तक पर लगाने से कैसी भी पीडा हो शाँत हो जाता है | चन्दन का तेल लेकर उसमें नीबू मिलाकर मलने से खुजली शांत हो जाती है | चन्दन के पत्तों की लुगदी में मूंगा भष्म हो जाता है | अन्य भी अनेक गुण चन्दन में हैं | चन्दन घिस कर मधु के साथ चाटने से वमन शाँत हो जाता है |

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मालकांगनी

नाम - सं - ज्योतिष्मती,हिं-मालकांगुनी,बं- लताफटकी , म- कालकांगोणी,गु- मालकांगणी,फा- काल ,अं- स्टाफ | विवरण - इसकी बेल होती है , इसके पत्ते गोल कुछ अन्नीदार होते हैं | फलों का झुमका होता है | कच्चे फल नीले होते हैं और पकने पर पीले पड जाते हैं | उनमें से लाल बीज निकलता है , उन बीजों में से पीला तेल निकलता है | यह तेल अनेक प्रकार के वात रोगों को और खुजली दाद तथा चर्म रोग को नष्ट करने वाला है | गुण - चरपरी ,कडुवी ,रूखी, सारक ,अत्यंत गरम , तीक्ष्ण, दाह कारक तथा कसैली है | यह अग्नि को बढाने वाली एवं उदर पीडा को शाँत करने वाली है और घाव ,पाण्डुरोग तथा व्रण-विषर्प को नष्ट करती है | मालकांगनी मेधाजनक, प्र  कारक , पुष्टिदायक ,वीर्यवर्धक , वमनकारक ,कांतिवर्धक ,अग्निदीपक तथा वात -कफ विनाशक है | उपर | आगे | घर


सरफोंका

नाम - सं - शरपुंखा , हि- सरफोंका,बं- वनलील ,म-उन्हाली,अं- परपलटेफ्राझिया | विवरण - सरफोंके का क्षुप होता है , पत्ते नील के समान होते हैं | पत्ता तोडने पर उसका एक हिस्सा अन्नीदार  बाण की पोंछ की तरह ऐसा हो जाता है और दूसरा हिस्सा 7 ऐसा हो जाता है | फूल लाल और बारीक होते हैं | फल्लियों पर रूँआसे होते हैं | दूसरे प्रकार की कलियों पर रूआँसे नहीं होते हैं | सफेद सरफोंके का क्षुप पृथ्वी में फैला होता है | पत्ते लाल सरफोंके से कुछ छोटे होते हैं | फूल सफेद होता है | सरफों के जड का धूँआ पीने से श्वास - कास नष्ट होता है | सरफोंके की मात्रा 4 माशा और कण्ठपुंखे की मात्रा 4 माशे है | यह पटियाला में बहुत होता है | गुण - सरफोंका चरपरा , गरम , कडुवा , कसैला और हलका है | इसी से यकृत,प्लीहा,गुल्म,व्रण , विषविकार ,रूधिरविकार ,कास ,श्वास ,ज्वर,कृमि और वात रोग नष्ट होते हैं | तथा यह कफोदर ,हृदय रोग, गलगण्ड ,और कुष्ट रोग को नष्ट करता है | सफेद सरफोंका अधिक गुण वाला है | इसका एक भेद कण्ठपुंखा है -कण्ठपुंखा- चरपरा ,गरम ,तथा कृमि एवं शूल विनाशक है | प्रदर में सरफोंका जड पीस कर पानी के साथ पीना चाहिये | खून की खराबी में सरफोंका की पत्ते का रस पीना चाहिये | उपरआगे | घर


                                                                     पित्त पापडा 
नाम - सं - पर्पट, हिं -पित्तपापडा ,दवन पापरा , बं - क्षेतपापडा , म- सिरपर्डी,पित्तपापडा,गु- पित्तपापडो,बडसलियो ,अं- जस्टिसयाप्रोंकबेंस | विवरण - पित्त पापडा की पत्ती पीस कर गरम करके गलगण्ड पर बांधने से रोग शाँत होता है | तथा पित्त पापडा 6 माशा काली मिर्च 6 ,लौंग 6 फँकी बनाकर फाँके और उपर से गरम पानी पीये अथवा सबको घोट कर बारीक कपडे से छान कर गरम करे ,फिर उसमें कुछ नमक मिला कर पीवे तो ज्वर शाँत हो जाता है | पित्त पापडा से पित्त का वमन शाँत होता है |                                                                                                                                      उपर | आगे | घर


रेवट चीना

नाम- सं - पीतमूली,हिं - रेवटचीनी , बं- रउचीनी , म- रेवाचीनी, फा- रेवन , अरबी- रबन्, अं - रूबर्ब | विवरण - रेवटचीनी का क्षुप होता है | जड पीले रंग की होती है | इसी को रेवट चीनी कहते हैं | इसके सत्त को उसारे रेवन कहते हैं | गुण - रेवटचीनी चरपरी , कटुवी , बलकारक ,मृदुरेची तथा अजीर्ण , अतिसार ,मन्दाग्नि ,अरूचि,बिडबंध, शीतपित्त और दुष्ट व्रण को नष्ट करने वाली है | कब्ज पर - उसारे रेवन दो तोला ,मुसब्बर 2 तोला,रूमीमस्तगी 6 माशा ,सबका चूर्ण कर पानी के साथ मटर बराबर गोली बनाये ,1 गोली रात को सोते समय पानी या दूध के साथ निगल जाने पर प्रातः दस्त साफ आता है | मूत्र कारक प्रयोग - रेवट चीनी, शोरा कलमी,कबाब चीनी और इलायची सबका समान भाग लेकर इनका चूर्ण 6 माशा , 1पाव दूध और 1 पाव पानी के साथ पीना चाहिए | इस प्रयोग से पेसाब अधिक होता है | जिससे मूत्र विकार दूर होता है | यकृत पर - रेवट चीनी का चूर्ण 4 मासा , भूनी हिंग दो भाग शुद्ध हिराकसीस( नीबू के रस में घाम में सुखाया हुआ ) 1 भाग जल के साथ 6 माशा लेने से यकृत और प्लीहा रोग दूर होता है | उपर | आगे | घर


शिवलिंगी

नाम- सं- लिंगिंनी ,हिं-शिवलिंगी,बिजगरिया,ईश्वरलिंगी,बं-शिवलिंगिनी,म- शिवलिंगी,बाहुवल्ली,गु-शिवलिंगी | विवरण- शिवलिंगी का पान कई दल का होता है | इसके बीजों में अनेक गुण हैं | जिस स्त्री के पुत्र-कन्या होकर मर जाते हों उस मृत वत्सल स्त्री के निमित्त शिवलिंगी के 27 बीज लेवे और जटामासी और गज केशर 6-6 मासे लेकर दोनों को कूट -पीस कर टिकिया बनावे | और 27 बीजों के तीन भाग कर ,काली कपिला गौ के दूध में खीर बनाय उसमें गौ का घी,मिश्री मिलाय एक भाग बीज और टिकिया डाले,ऋतु होने के उपरांत जब शुद्ध स्नान कर उस दिन यह खीर खाय,सोमवार हो तो शिवजी का व्रत करे | घी का दीपदान कर शिवजी के पूजन के प्रभाव और औषधि के प्रभाव से कुछ समय में उस स्त्री के संतान होती है | उपर | आगे | घर


                                                                                                                                                   मिर्च

नाम - सं -कटुबारा ,हिं लाल मिर्चा, बं - झाल लमका , म- लालमिरचा ,अरबी-अजन्नपया ,फा-फिलफिले |  विवरण - लाल मिर्च का वृक्ष छोटा होता है | इसके फल पहले हरे होते हैं ,फिर पकने पर लाल हो जाते हैं | यह शीतविकार और बादी रोग को शाँत करता है | लाल मिर्च 1 तोला, सोंठ 1 माशा ,नमक 6 माशा ,इन तीनों को पानी में घोट छान कर कडाही में गरम कर उसमें छौंक दे ,जब आधा पानी रह जाय तब उतार ले और उसके संग रोटी खाय तो जठराग्नी प्रबल होती है | तथा शीत और बादी भी शाँत होती है | एवं लाल मिर्च को पीस कर पानी में भिगो देवे फिर उसको कपडा में रखकर तीन बूँद कान में निचोड ने से तिजारी अथवा चोथिया ज्वर जाता रहता है | जिस समय ज्वर चढा हो उस समय कान में निचोडे | मिर्चा, सेंधानमक और हिंग की गोली हैजा को दूर करती है | लाल मिर्च का चूर्ण शहद के साथ खाने से कम्पवात दूर होती है | जलोदर रोग में लाल मिर्च का चूर्ण 1 माशा घी 1 तोला  खिलाने से बहुत लाभ होता है | लाल मिर्च , हिंग और गुड के सेवन से पैर का दर्द दूर होता है | तिल्ली के तेल में लाल मिर्च जला कर घोट कर लगाने से दाद मिटती है |

                                                                                                       उपर | आगे | घर

 


बड

नाम - सं- वट ,हिं- बरगद,बं - बट ,म- बड,अं - बेनियंट्री ,फा- दरखितरेशा ,बड वाई | विवरण - बड वृक्ष को बरगद कहते हैं | यह वृक्ष सब वृक्षों से बडा होता है | इसकी जटायें भूमि पर लटक कर जम जाती हैं | तब वह जड हो जाता है | बरगद सब वृक्षों का राजा कहलाता है | बरगद का दूध 2 बताशा में भर कर प्रतिदिन प्रातः समय सात दिन खाय तो प्रमेह रोग दूर हो जाता है | तथा बरगद के कोमल पत्ते लेकर तेल चूपडे और  सेंक कर बाँधने से पेट का बादी रोग जाता रहता है | पेट में बादी होने से पेट बड जाता है | बरगद की कोंपल को पीस कर उसमें बड का दूध मिलाकर लुगदी बनाय फिर उसमें इक्कीस दिन गोमूत्र में बुझाई चाँदी को रखकर सरवों के सम्पुट में धरे और पाँच सेर बिनुआँ उपलों की आँच से फूँके | इस प्रकार इक्कीस बार फूँकने से रूप रस बन जाता है | उपर | आगे | घर

 


सिताव

नाम - सं- सदर्पष्टा, हि-सिताव , म- सताव ,गु-सताव,अ-कोमनह,फा- इस्पन्द | विवरण - सिताव वृक्ष की पत्ती छोटी होती है | सिताव की पत्ती एक तोला , काली मिर्च एक तोला ,लौंग छेः माशा लेकर कुछ सेंधा नमक मिलाकर चना बराबर गोलियाँ बनावे | 1 गोली प्रातः समय और 1 गोली संध्या समय सात दिन खाने से खाँसी दूर होती है | बालक को आधी गोली देवे | बालक के उदर में सर्दी से एक प्रकार का बादला रोग हो जाता है | उस रोग को दूर करने के निमित्त सिताव की पत्ती छेः रत्ती पीस कर उसको माता के दूध के साथ अथवा बंगला पान के रस में देवे तो बालक का रोग शाँत हो जाता है | परंतु परहेज से रहे | उपर | आगे | घर


 

शीशम

नाम - सं - शिंशपा ,श्वेतशिंशपा , हिं - शीशम , सफेद औलिपण्डर सीसो ,कपीलवर्ण सीसम ,बं - शिशुगाछ ,शादाशिशुगाछ , म- कालाशिसवा , गु- शिशम ,अं- ब्लोककम सीस्ट्री | विवरण - शीशम का वृक्ष बडा होता है | यह वन में और बागों में भी होता है | शीशम के कोमल पत्तों अथवा फलों की ठण्डाई पीने से सूजाक पथरी रोग शाँत हो जाता है | जो छाती पर घाव हो गया हो शीशम के पत्तों के काढा से घाव को धोवे और पत्तों की लुगदी बाँधे तो घाव अच्छा हो जाय | शीशम के पत्तों का अर्क लगाने और पीने से बवासीर रोग दूर हो जाता है | शीशम की छाल का अर्क डालने से नासूर रोग दूर होता है | शीशम के पत्ते और फूल 4 - 4 तोला ,इलायची 4 तोला ,मिश्री दो तोला ,काली मिर्च 16 इन सबको पीस कर पीने से स्त्री का प्रदर रोग दूर होता है | एवं शीशम का तेल खुजली को दूर करता है | शीशम के कोमल पत्ते रात को भिगो दे , सुबह मसल छान कर मिश्री के साथ पीने से धातु (वीर्य ) पुष्ट होता है | और गर्मी शाँत होती है | उपर | आगे | घर


 

अनन्नास

नाम - सं- अनन्नास, कौतुक संKक , हिं &अनन्नास ,म- अननस,गु-अनन्नास अं- पाईनएप्पल |
विवरण
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अनन्नास का पत्ता केवडा के पत्ती समान होता है | फल का रंग लाल या पिला होता है | इसकी डाल काट कर लगाने से दूसरा पेड तैयार होता है | गुण - रूचिकारक ,हृदय को हितकारी ,भारी , कफपित्तकारक ,अन्नरोचक तथा श्रम और क्लमनाशक है | पका अनन्नास स्वादिष्ट ,पित्तकारक ,तथा रस विकार एवं आतपविकार का नाश करने वाला है | इसके फल का मुरब्बा भी बनता है | इसके फल का प्रायः उपयोग होता है | इसके पत्तों की दौरी अच्छी होती है | उपवास के समय और गर्भावस्था में अनन्नास हानिकारक होता है | यकृत रोग में अनन्नास बहुत लाभकारी है | अजीर्ण में - पका अनन्नास नमक ,मिर्च के साथ खाने से विशेष लाभ होता है | यह कृमि रोग को भी दूर करता है | बहुमूत्र में -अनन्नास का रस छोटी पीपर के चूर्ण के साथ पीना चाहिये पेट में बाल के चले जाने पर अनन्नास के रस के पीने से क्लेश दूर हो जाता है | उपर | आगे | घर


 

महुआ

नाम - स- मधूक, जल मधूक ,हिं - महुआ , जल महुआ ,बं - मौल,मउल मौया जल मउल , म- मोहाचा वृक्ष ,मोह वृक्ष ,जल मोहा ,गु-महुडो , जल महुडो ,अं- इलूपाटी, फा- चका |

महुआ का वृक्ष बडा होता है | महुआ के पत्ते बडे और फूल सफेद होते हैं | फल हरा होता है | महुआ के फूल कुचिला के साथ पीस कर साँप काटे स्थान पर लगाने से  पीडा शाँत होती है | और फूल को पीस कर बिच्छू के काटे स्थान पर लगावे तो पीडा दूर होती है | महुआ के फल वीर्य और दूध को बढाते हैं | महुआ के पत्तों पर घी चुपड कर उकौता पर बाँधे तो उकौता जाय | महुआ के तेल मलने और खाने से बाई का रोग शाँत होता है | तथा महुआ ,,अजवायन ,तिल ,गोला की  गरी ,,हल्दी इन सबको कूट्-पीस कर तेल में पकावे और जगाँ झट्का लगा हो अथवा चोट लगी हो उस स्थान पर लगावे और लुगदी बाँधे तो एक सप्ताह में चोट अच्छी होती है |  तथा महुआ की छाल का काढा पीने से गठिया ,वाय जाती रहती है | महुआ 1 सेर ,तिल सेर भर ,काली मिर्च डेड छटाँक पीस कर उसमें 2 सेर पुराना गुड मिलाये और 25 लड्डू बाँधे | 1 लड्डू प्रतिदिन खाने से बल बढता है और निर्बलता दूर होती है |उपर | आगे | घर

 


धतूरा

नाम - सं - धतूर , मदन ,उन्मत्त, मातुल,हिं- धतूरा,बं-धुतुरा , म- धोत्रा,धोधरा,गु-धंतर्रा,अं-धोर्न एप्पल स्ट्रामोनियम |
धतुरा का वृक्ष कुछ ही ऊँचा होता है | यह वृक्ष काला सफेद दो रंग का होता है | और काले का फूल नीली चित्तियों वाला होता है | धतूरे के पत्तों का धूँआ दमा को शाँत करता है | तथा धतूरे के पत्तों का अर्क कान में डालने से आँख का दुखना बंद हो जाता है | धतूरे की जड सूंघे तो मृगीरोग शाँत हो जाता है | धतूरे की फल को बीच से तरास कर उसमें लौंग रखे फिर कपड मिट्टी कर भूमर में भूने जब भून जावे तब पीस कर उसका उडद बराबर गोलीयाँ बनाये सबेरे साँझ एक -एक गोली खाने से ताप और तिजारी रोग दूर हो जाय और वीर्य का बंधेज होवे | धतूरे के कोमल पत्तो पर तेल चुपडे और आग पर सेंक कर बालक के पेट पर बाँधे इससे बाल का सर्दी दूर हो जाती है | और फोडा पर बाँधने से फोडा अच्छा हो जाता है | बवासीर और भगन्दर पर धतूरे के पत्ते सेंक कर बाँधे स्त्री के प्रसूती रोग अथवा गठिया रोग होने से धतूरे के बीजों तेल मला जाता है |

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सहदेई

नाम - सं - महबला , सहदेवी ,हिं - सहदेई ,बं - पीत पुष्प ,बेडेला ,म - भांवुर्डी , गु- सहदेई |

विवरण - सहदेई की बूटी होती है | उसकी पत्ती तुलसी की पत्ती अथवा पोदिना की पत्ती के समान पतली होती है | इसका वृक्ष छत्ता सा होता है और फूल सफेद होते हैं | स्वाद इसका फीका होता है | यह रेतीली और पहाडी भूमी पर होती है | इसकी लुगदी में पारा फूँका जाता है | सहदेई के पत्ते काली मिर्च के साथ पीस कर पीने से बहुत दिन का ज्वर जाता रहता है | सहदेई की ठंडाई पिलाने से बालक का शीतला नहीं निकलती सहदेई के पत्ते उबाल कर बाँधने से मस्तक की भीतरी पीडा शाँत होती है | सफेद फूल वाली सहदेई के पत्ते का रस निकाल कर कडवी तोमडी की मिंगी और गुजराजी तम्बाकू मिलाकर घोटे सुख जावे तो सुंघने के दे तो सरसाम और मृगी रोग शाँत होता है | सफेद सहदेई के फूल और काली सहदेई का पत्ता उबाल कर शिर पर बाँधने से लकवा रोग दूर होता है सहदेई के पत्तों का काजल लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है | सहदेई के पत्ते घोट कर पीने से सब प्रकार के ज्वर और पथरी रोग जाता रहता है | अर्क पीने से वाय गोला दूर होता है | इसकी जड तेले में पीस कर घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है | इसका अर्क कान में टपकाने से मृगी रोग दूर हो जाता है | इसकी जड शिर में बाँधने से ज्वर दूर होता है | सहदेई का पंचांग पीने से रक्त प्रदर रोग दूर होता है | उपर | आगे | घर



                                                   कनेर सफेद और लाल फूल की
नाम -सं -श्वेतकरवीर , हिं - सफेद कनेर ,बं -सुभ्र करवीर , म- पाण्डरी कणेर ,ताम्बडी कणेर ,गु- धौला फूलनी कणेर ,गुलाबी फूलनी कणेर ,अं - स्वीटसेंटेड ओलिएण्डर |
विवरण - सफेद फूल वाली कनेर की जड लेकर पाँच सेर दूध में औटावे अथवा 24 तोला जड हो तो उसको बारह सेर दूध में औटावे उस दूध को जमा कर दही बनाये ,दही होने पर नैनू निकाल ले उसका घी तिला समझ कर पान में रख कर सुरती वाले को खाने को देवे ,कमजोर नसवाले को मक्खन में रखकर देवे और उसी का मालिश करे फुंसी हो गई हो तो धोया हुआ घी लगाकर उपर से पान बाँध देवे ,,जिसका अम्ल बढ गया हो उसको पान में तिला घी लगाकर खाने को देवे ,परंतु परहेज करे अर्थात खट्टा, तीखा ज्यादा तेल आदि न खाय |
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कनेर पीले फूल की

नाम - सं - पीत करवीर ,हिं - पीला कनेर , बं - करवटी ,म- पिबली कणेर ,गु- पीला फलनी कणेर ,अं - स्वीट सेंटेड ओलिएण्डर |
विवरण - पीले फूल वाली कनेर से शिंगरफ और हरताल भष्म होता है | उसकी विधि यह है कि - शिंगरफ अथवा हरताल 2 तोला लेकर पीले फूल वाली कनेर के दूध में 5 दिन पर्यंत घोटे और टिकिया बनावे फिर कनेर के पत्ते पीस कर लुगदी बनावे उस लुगदी में टिकिया धरे और इमली के छिलका की भष्म एक हाँडी में भरे | आधी हाँडी में भष्म भर जाने पर बीच में लुगदी रख कर उपर राख भर दे मुँहडे तक खूब कस दे और चूल्हे पर चढावे चार पहर तक उपलों की आँच दे तो भष्म हो जाय | यह आधे चावल भर तिजारी ,अर्धांग और कुष्ट रोग वाले को दे तो आराम हो जाय | परहेज आवश्यक है |
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                                            अडूसा वृक्ष 
नाम - सं - लासक , आठरूप, हिं - बासा ,अडूसा , विंसोटा,बं- बाकस ,छोटा बाकस , म- अडूलसा , गु- आडशो |
विवरण - अडूसा वृक्ष छोटा होता है | पत्ते हरे होते हैं , परंतु पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं | फूल सफेद होते हैं | फूल तोड कर दबाने से डण्डी से शहद के समान मीठा सफेद रस निकलता है | अडूसा का फूल तपेदिक और सफरा रोग को शाँत करता है | अडूसा का अर्क सेंधा नमक मिलाकर गरम कर पीने से खाँसी दूर हो जाए | अडूसा के पत्तों के काढे से कुल्ली करने से दाँतों का रोग और मुँह के रोग जाता रहता है | अडूसा के पत्तों के रस में अथवा अडूसा की जड के काढा में अभ्रक अथवा कांतिसार मिलाकर सेवन करने से दमा, खाँसी , कमलवाय ,प्रमेह और मूत्राघात ,कफ ज्वर दूर होता है | इसकी छेः माशे की मात्रा है | अडूसा के पके पत्ते में सेंधा नमक मिला कर कपडमिट्टी कर अन्ने कण्डों में फूँकने से भष्म होती है | उस एक रत्ती भर खाने से खाँसी शाँत होती है | अडूसा का सत्त शहद के साथ चाटने से नकसीर रोग और दमा रोग दूर होता है | अडूसा से शीशा भी भष्म हो जाता है | अडूसे का काढा नमक मिला कर पीने से पेचिश रोग दूर हो जाती है | 2 तोले अडूसे की छाल 12 तोले पानी में रत भर भिगो दे प्रातः छान कर काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीने से पित्त ज्वर दूर होता है | अडूसे के काढा से कुल्ला करने से या भाप लेने से मसूडों की सूजन और मुख के छाले दूर होते हैं | अडूसे की क्षार खाँसी ,दमा ,पेट की पीडा को दूर करता है | अडूसा की छाल , मुनक्का और हर्रा का छिलका का काढा मुँह से खून निकलने को बन्द करता है | अडूसे के पत्तों का काढा दिल की धडकन को ठीक करता है | काढा पीने के बाद एक छटाँक मुनक्का खाना चाहिये | खाने के लिये फल और दूध देना चाहिये | अडूसे की जड की लेप से विषैले कीडे की जलन दूर होती है | कई दिनों तक लेप करने से फोडा पक कर फूट जाता है | अडूसे की चाय बनाकर पीने से निद्रा आती है | अडूसे की काढा का नश्य लेने से नाक से खून का गिरना बन्द हो जाता है | अडूसे चाय 15 दिनों में शरीर की रूक्षता(खुश्की) को दूर करती है | अडूसे के 1 सेर पत्तों को कूट कर 4 सेर पानी में काढा करे 1 सेर पानी रह जाने पर छान ले बाद में 3 माशा फिटकरी ,2 माशा हर्रे का चूर्ण और 4 रत्ती अफिम मिला कर फिर पकावे जब गाढा हो जाय तो गोली बना ले , इस गोली को पानी में घीस कर लेप करने से आँखों  का दुखना ,लाली ,सूजन ,दर्द और पानी का बहना आदि रोग दूर हो जाते हैं | 
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हरफारेवडी

 नाम - सं - लवली हिं - हरफारेवडी , बं - नापाड , म- काथ आँवले या रान आँवले , गु- खाटी आँवली | विवरण - हरफारेवडी का  वृक्ष अत्यंत सुन्दर होता है | पत्ते कसौंदी की भाँति होते हैं | फल आँवला के समान शाखाओं से निकलते हैं |  गुण - हरफारेवडी रूधिर विकार ,अर्श ,कफ ,पित्त एवं मूत्रश्मरी रोग नाशक ,रूचिकारक ,प्रिय स्वादिष्ट , हलकी ,रूक्ष ,कडुवी , खट्टी ,विशद स्वादु ,वातवर्धक ,हृदय हितकारी  तथा सुगंधित  है | दस्त में - हरफारेवडी के वृक्ष की छाल या फल के रस में काली मिर्च ,बेल की पत्ती ,और लौंग का चूर्ण मिलाकर पीने से विशेष लाभ होता है | पित्ती उछलने पर इसकी पत्ती या फल का रस और काली मिर्च  मिलाकर लगाना चाहिये | नाशूर में - हरफारेवडी का रस ,इमली के छाल का रस और गाय का घी क्रमशः 2,3 और पाँच ताला मिलाकर पीने से 6-7 दिनो  में लाभ होता है | उपर | आगे | घर


पाढ

नाम - सं - पाठा , हिं - पाढ ,बं - आकनादी ,निमुक ,म- पहाड मूल ,गु- काली पाट , केरटी मूल ,अं - परेशरूट | विवरण - पाढ की बेल होती है | पत्ते कुछ गोल होते हैं | उसके कोनें में से श्वेत और सूक्ष्म मौर के समान फूल निकलता है | फल मकोय की तरह लाल रंग के होते हैं | और बांग की जड को लघु पाठा कहते हैं | तथा बांग की भी बेल होती है | पत्ती फंज की तरह होते हैं | फंजी के पत्ते उपर नीले और नीचे सफेद होते हैं | किंतु बांग के ऐसे नहीं होते | आकार गोल फंजी की तरह कुछ पिलाई लिये होते हैं | फूल सूक्ष्म और सफेद होते हैं | फल पिलु की तरह होता है | गुण - पाढ उष्ण , चरपरा , कडुवा ,तीक्ष्ण और हल्का है | यह वातघ्न , कफनाशक ,भग्नसंधान कारक , तथा शूल, ज्वर , अतिसार ,कुष्ठ ,वमन, हृदय रोग ,दाह ,कण्डू,विष ,श्वास , कृमि ,गुल्म ,उदर रोग ,व्रण ,अजीर्ण ,त्रिदोष, रक्त विकार एवं पित्त को नष्ट करता है | लघु पाढ - कडुवा ,तथा विष , कुष्ठ ,खुजली वमन ,हृदय रोग और त्रिदोषनाशक है |
विष पर - इस पाढ की जड को पानी में पीस कर लेप करना चाहिये | व्रण में भी इसकी जड का लेप व्रण का दाह को दूर करता है | गल रोग पर -पाढ की जड ,इंद्र्जव ,कुटकी ,अतीस ,देवदार ,नागर माथा का काढा कर 1 तोला शहद में मिला कर पीना चाहिये | पीनश में - इसकी पत्ती का रस नाक में टपकाना चाहिये | पाढ की क्वाथ ,बस्ती दाह ,क्षत ,रक्तातिसार , अश्मरी (पथरी) और पेचिश इन रोगों का नाश करता है |
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सनाय

नाम - सं - मार्चाडिका ,स्वर्णास्या , हिं - भुई खखसा , सनाय ,बं - कांकरोल ,भेद ,म- सोनामुखी ,गु- मीठी आबल्य ,एलैग्जैडियन सेना ,फा- सना | विवरण - सनाय के पत्ते मेंहन्दी के पत्ते से बडे होते हैं | वह कफ को छाँटता है | उदर के विकार को दूर करती है , दस्त लाती है , सनाय खाने की विधि रसराज वैद्यक के पहले भाग में लिखी है | शाम को चार तोला सनाय भिगोवे छान कर उसमें मिश्री तीन तोला पीस कर और 4 तोला शहद ,गुलाब के फूल 6 माशा मिला कर खाय उपर से पाव भर पानी पीये तो जुलाब होता है | बादी निकल जाती है | सनाय का चूर्ण नमक मिला कर खाने से अनेक रोग दूर होते हैं |

 


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