आयुर्वेद 7
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ग्वार पाठा ( एलोवेरा aloe vera) नाम - सं - घृतकुमारी, हिं - घीकुवार , ग्वारपाड़ा ,कुवारपाड़ा ,बं - घृतकुमारी , म - कोरफड़ ,कोरफाटा , गु - कुवार बर्बडों , झून्नालोझू , फा - दरख्त सिन्न ,अं - एलोवेरा | घीक्वार का पाठा सफेद गूदा वाला होता है | इसका लेप आमा हल्दी के साथ करने से सूजन दूर होती है | घीक्वार पाठा का अर्क नेत्र में टपकाने से नेत्र पीड़ा दूर होती है | इसके गूदे का हल्वा पित्त विकार और कफ को दूर करता है | प्लीहा और पेट के विकार को हरता है | भोजन को पचाता है और भूख को बढ़ाता है | पाठा का अर्क कान में टपकाने से कान की पीड़ा दूर होती है | आँवा हल्दी और ग्वार पाठा पीसकर बादी से दुखती हुई आँख पर बाँधने से पीड़ा दूर होती है | तथा आटा के साथ इसको गूँथकर रोटी बनावे  , फिर इसमें घी ,गुड़ मिलाकर  ग्यारह दिन खाने से बादी रोग शाँत होता है | पाठा का अर्क अजवाईन में भिगोकर  खाने से तिलि रोग अच्छा हो जाता है | यह प्लीहा और यकृत की खास दवा है | और आजकल सारी दुनियाँ में एलोवेरा प्रोडक्ट के नाम से एक कम्पनी ने इसका प्रचुर दवाई के रूप में और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में कर रहा है | आप भी इसका भर पूर फायदा उठा सकते हैं  | आप चाहें तो घर बैठे ऑनलाईन इंटरनेट के जरिये मंगा सकते हैं | और इसका सदस्य भी बन सकते हैं | यदि आप मँगाना चाहते हैं ऑनलाईन के द्वारा तो कृपया आप इसमें क्लिक किजिए (चूहा चापिये )  -- http://www.foreverliving.com   more about aloe vera    उपरघर | आगे ---


मुनक्का विवरण - मुनक्का रूधिर विकार को दूर करता है | प्यास को शाँत करता है | आधा पाव मुनक्का ,जीरा छे माशा ,छोटी पीपरी ,काली मिर्च छे-छे माशा ,सेंधा साभर नमक तोलाभर ,पहले मुनक्का के बीज , निकाले फिर सबको कूट्-पीसकर आँच पर सेंक कर झरबेरी के बराबर गोलियाँ बनाए | दिन में तीन बार एक -एक गोली खाय तो पित्तज्वर और गरमी से उत्पन्न हुई खाँसी दूर होती है | मुनक्का और मुलेठी के काढ़ा से प्यास शाँत होती है | मुनक्का रात को जल में भिगो दे ,प्रातःकाल मल कर छान ले ,जीरा का चूर्ण मिलाकर पिये तो रूका हुआ मूत्र साफ होता है | मुनक्का ,हर्रा का छिलका और अरूस की पत्ती का काढ़ा मिश्री मिलाकर पिने से रक्तपित्त(खून का गिरना ) बन्द हो जाता है | मुनक्का एक पाव , ताजा गो घृत एक पाव ,शहद एक छटांक मिलाकर मिट्टी के बरतन में रख कर धान के ढेर में गाढ़ दे | 15 दिन या एक महिने बाद निकाल कर सुबह शाम 2 तोला तक खाने से क्षतोत्पन्न खाँसी दूर होती है | मुनक्का 12 दाना काली मिर्च छे दाना और मिश्री दो तोला आधा पाव पानी में सुबह - शाम पिने से मंन्द ज्वर दूर होता है | मुनक्का सेंककर नमक मिर्च के साथ खाने से खाँसी और श्वास रोग दूर होता है | मुनक्के का द्राक्षासव भी बनता है | जो कि मन्दाग्नि ,कब्ज ,यक्ष्मा ,,ज्वर , खाँसी ,श्वास , मूर्छा ,तृषा ,जुकाम ,और बवासीर को दूर करता है | और शरीर में बल बढ़ाता है | इसे किसी अच्छे वैद्य से ही पूछ कर लेना चाहिए | नहीं तो घातक भी बन सकता है | मुनक्का और आँवला की गोली मुँह में रखकर चूसने से मुँह का सूखना बन्द हो जाता है |  |   उपरघर | आगे ---


अँगूर नाम - सं - द्राक्षा , हिं - दाख ,काली दाख,किसमिस ,अँगूर ,भरीदाख ,बं - किसमिस ,मुनक्का ,अँगूर ,बेदाना,म- काले द्राक्ष ,बेदाणा,किसमिस ,गु - दराख ,काली दराख , किसमिस ,अं - ग्रेप्स,फा- अँगूर ,मुनक्क दाने ,मबीज | विवरण - अँगूर का भी मुरब्बा बनता है | यह भी गरम होता है | अँगूर खाने से खून शुद्ध होकर बढ़ता है | अँगूर का सिरका पीने से अथवा अँगूर खाने से सुजाक (उपदंश) रोग दूर होता है | अँगूर को ही सुखाकर मुनक्का ,किसमिस ,और आबजोश बनाया जाता है | किसमिस वाले अँगूर नहीं होता | मुनक्का वाला अँगूर बीजदार ,काला और बड़ा होता है | अँगूर का सिरका दूध के साथ पीने से धतूरा का विष दूर होता है | अँगूर, चीनी ,शहद और छोटी पीपर का चूर्ण मिलाकर खाने से धातुक्षय दूर होता है | अँगूर और आँवले का काढ़ा शहद डाल कर पीने से मूर्छा दूर होती है | अँगूर और अमलतास के काढ़े से पित्त ज्वर दूर होता है | अँगूर छोटी हर्रे समभाग और दोनों के बराबर चीनी मिलाकर पीने से अम्लपित्त ,कलेजे की जलन ,तृषा ,मन्दाग्नि और आमवात , रोग नष्ट हो जाते हैं | मात्रा 1 तोला है | अँगूर और अडूसा के काढ़े से शूल होना दूर होता है |उपरघर | आगे ---


हंसराज नाम - सं - हंसपदी ,हिं- हंसराज | विवरण - हंसराज बूटी की पत्ती छोटी होती है | इसकी पत्ती हंस के पैर की भाँती होती है और डंण्डी काली होती है | हंसराज तोलाभर ,गुर्च का सत तथा सफेद इलायची के दाने एक-एक माशा , मुलहटी तीन माशा ,मिश्री तोलाभर लेकर पीसे , और नैनू में मिला कर दस दिन खाने से नाक का मल दूर होकर नकसीर रोग अच्छा हो जाता है | हंसराज की पत्ती ,कत्था ,शीतल चीनी ,छोटी इलायची का चूर्ण निनावा को दूर करता है | इसे उबाल कर बाँधने से अण्डकोष की शूजन दूर होती है | इसकी पत्ती का लेप शिर के गँजेपन को दूर करता है |


बनगोभी विवरण - जँगली गोभी का छत्ता फैला होता है | फूल पीले होते हैं | जँगली गोभी की जड़ 2 तोला ,तथा काली मिर्च सात घोटकर 8 दिन पीये अलोनी रोटी बहुत घी के साथ खाये तो सुजाक आतसक रोग दूर होता है |उपरघर | आगे ---


अंजीर नाम - सं - अंजीर ,हिं- अंजीर ,बं- आँजीर पियारा , म - अंजीर ,गु- अंजीर ,अं - फिग, फा- तीन | विवरण - अंजीर का मुरब्बा बनाया जाता है | अंजीर का फल गरम होता है | और रूधिर को शुद्ध करता है | अंजीर का पका फल खाने से सर्दी दूर होती है | अच्छी तरह खुजलाकर दाद पर अंजीर का दूध लगाने से दाद अच्छी हो जाती है | अंजीर के काढ़ा से गला और जीभ की सूजन दूर होती है | रात को सोने के पहले तीन-चार अंजीर खाकर दूध पीने से सबेरे दस्त  साफ होता है | अंजीर परवर की पत्ती ,अडूसा की पत्ती और मुनक्का का काढ़ा पित्त ज्वर को दूर करता है | अंजीर की लकड़ी जलाकर सिरका में बुझाकर वरम जिगर (यकृत शोथ ) पर लगाये  तो बहुत फायदा होता है |


 साँतव सोंठ विवरण - सोंठ तोला भर ,गुड़ चार तोला मिलाकर खाने से बादी रोग दूर जाता है | सोंठ तोलाभर पीसकर नमक मिलाय टिकिया बनाय घी में तल कर खाने से बादी रोग जाता रहता है | सोंठ में अनेक गुण हैं |उपरघर | आगे ---


शतावरी नाम - सं - शतावरी , महाशतावरी ,हिं - सतावर , बड़ी सतावर , बं - शतमूली ,म - लघुशतावरी ,शतमूली आसवली ,,बड़ी शतावरी ,सहस्त्रमूली , गु- शतावरी ,अं - एकलकण्टी एरू पंगस रेसिमासेस , फा-गुजदस्ती | शतावरी का रस घाव पर लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है | इसकी लकड़ी घीसकर लगाने से चोट अच्छी हो जाती है | और कण्ठमाला रोग दूर होता है | शतावरी की जाड़ नित्य खाने से संखिया का विकार शाँत होता है |


कदम्ब नाम - सं - कदम्बकम , हिं - गु-ता-कदम्ब , बं - कदमगाछ ,म- कलंब , तै - कडिमिचेटडु , अं- वाइल्डसिनकोना ,लै - थोसिफलस केडंम्बा | कदम्ब का पेड़ सभी स्थानों में होता है | इसका पत्ता महुआ के पत्ता से मिलता -जुलता है | इसमें गोल-गोल पीले रंग के अन्नीदार फूल  लगते हैं |  पीला फूल झड़ जाने पर हरे रंग का फल रह जाता है | पकने पर इसका रंग लाल हो जाता है | स्वाद में यह खट्टा-मिट्ठा होता है | इसकी चटनी और आचार बनाकर लोग खाते हैं | गुण - चरपरा ,कड़ुवा , कसैला , मीठा , नमकीन , वीर्यवर्धक , शीतल ,गुरूपाकी ,मलरोधक ,रूखा ,दूध पैदा करने वाला ,वर्णकारक , योनीरोग ,खून की खराबी , मूत्रकृच्छ्र ,वातपित्त , कफ ,व्रण ,दाह , और विषविनाशक है | कदम्ब का अँकुवा कसैला , ठण्डा , अग्निदीपक ,लघुपाकी तथा अरूचि ,रक्तपित और अतिसार नाशक है | कदम्ब का फल रूचिकारक ,गुरू पाकी ,उष्णवीर्य , और कफकारक है | पका फल कफपित्त कारक और वात नाशक है | कदम्ब की छाल और नीबू के रस में थोड़ी सी अफिम , और फिटकरी मिलाकर  पलकों पर लगाने से आँख की पीड़ा शाँत होती है | कदम्ब की छाल को उबाल कर कुल्ला करने से मुख रोग दूर  होता है | कदम्ब की चटनी से अरूचि दूर होती है | कदम्ब का शर्बत दाह को शाँत करता है | उपरघर | आगे ---


सफेद मुसरी विवरण - सफेद मुसरी का पाक बनता है | 2 तोला सफेद मुसरी लेकर दूध के साथ एक सप्ताह पीने से शरीर में बल बढ़ता है | धातु पुष्ट होती है | पाक इस प्रकार बनावे कि पहले सवा सेर दूध कड़ाही में चढ़ावे ,फिर उसमें चार तोला मुसरी पीसकर डाले अनंतर उसमें पीसी हुई बादाम की मिंगी ,मिश्री ,इलायची ,केसर रत्ती भर और घी छोड़े | जब खोवा हो जाय तब उतार कर रखे | यह पाक खाने से निर्बल मनुष्य बलवान हो जाता है | उपरघर | आगे ---


राई नाम - सं - राजिका , राजसर्षप ,हिं - राई ,बं - राईसब ,कालसर्षे ,रालसर्षा,रिषा ,म- मोहरी ,रापी ,गु- राई ,जुम्बसरी अनेदेशी,अं - मस्टर्ड सीड्स | विवरण - राई को लेकर भलीभाँति पीसे और मठा में अथवा दही में डाले और काली मिर्च और नमक पीसकर उसमें छोड़े | उसको एक हाँड़ी में भर कर उसको मुँह बन्द कर देवे और तीन दिन एकांत में रख छोड़े तो काँजी हो जाती है | वह उदर व्याधि वाले को नित्य सबेरे देवे | इससे कच्छू रोग और जलोदर रोग भी जाता रहता है | राई को पीसकर कसक और चोट पर लगाने से पीड़ा शाँत होती है | वायु द्वारा जकड़े हुए अंगों पर राई पीसकर गरम कर लेप करने से जकड़न दूर होती है | राई का चूर्ण 3 माशा गरम पानी के साथ खाने से उदर शूल और अजीर्ण में फायदा होता है | राई के चूर्ण का धूरा करने से हाँथ पैर का ठण्डक दूर होता है | राई और सेंधा नमक का चूर्ण 6 माशा गोमूत्र के साथ सेवन करने से यकृत की वृद्धि दूर होती है | राई के तेल के मालीश से अर्द्धांगवात दूर होता है | राई और हिंग का समभाग चूर्ण काँजी के साथ खाने से गर्भ में मरा हुआ बालक बाहर आ जाता है | राई का चूर्ण दही के साथ खाने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं | राई और काला नमक के लेप से सूजन दूर होती है | राई ,गुड़ और गुगल पानी में पीसकर गरम कर लेप करने से कखौरी फूट जाती है | उपरघर | आगे ---


छुईमुई लाल फूल की  विवरण - लाल फूल वाली छुईमुई के पत्तों की लुगदी में सिंगरफ भष्म होता है | परंतु बकरी के दस सेर लेंड़ी में आँच देवे और मूँगा भी भष्म होता है | परंतु उसमें उपलों की आँच देवे | यह भष्म अर्द्धांग रोग को दूर करती है |


खैर नाम- सं- खदिर ,श्वेतखदिर , हिं - खैर ,सफेद खैर ,पपरिया खैर , कत्था | विवरण - पुराने वृक्ष का कत्था 2 तोला हल्दी 6 माशा ,नमक लहौरी 6 माशा इनको पीसकर गुनगुना कर तीएन दिन पीने से वायुगोला का दर्द दूर होता है | 1 तोला खैर सार पीसक्र अडूसा के पत्तों के रस में अथवा अदरख के रस में गोलियाँ बाँधे | सबेरे साम 1 गोली खाने से कफ और खाँसी शाँत हो जाती है | कत्था चार तोला ,अफिम 1 माशा गो घृत 1|| छटांक , मोम आधि छटांक संगजराहत पत्थर का चूर्ण 2 तोला ,पहले घी और मोम को आग पर पिघला कर फिर बाद में सब दवाईयों का चूर्ण मिलाये , इस मलहम से सब पुराने बवासीर ,गुदाभ्रंश रक्तश्राव आदि रोग दूर होता है | कत्था का चूर्ण ,सुपारी की राख ,सङ्गजराहत मिलाकर उपदंश(गरमी ) के रोग के घावों पर पहले नैनू लगाकर बाद में इसे छिड़क दे ,इससे गर्मी के जख्म बहुत जल्दी दूर होते हैं | कत्था और काली मिर्च बराबर मात्रा में चूर्ण कर गोली बना ले | इस गोली को मुँह में रख कर चूसने से हर तरह की खाँसी दूर होती है | कत्था, हिंग , अफिम तीनों को मूँग बराबर पानी के साथ गोलियाँ बना ले इस गोली से पतला दस्त और आँव दूर होता है | कत्था से काम वासना कम होती है | कत्था चूर्ण सब प्रकार की कुष्ठ की खास दवा है | उपरघर | आगे ---


कसेरू नाम सं - कशेरूकम ,हिं - कसेरू , बं - केशुर , म - कचरा , गु - कचरो , क- सेकिनगड्डे , तै - इहिकोती , अं - सिर्पस सग्रोस | यह तालाबों में 2 -3 हाँथ नीचे कीचड़ में होता है | इसका छिलका काला होता है | और उपर रोवाँ होता है | यह छिलका छील कर खाया जाता है | गुण - कसेरू ठंण्डा, मीठा ,कुछ कसैला , देर में हज्म होने वाला ,रक्त-पित्त ,दाह , नेत्र रोगा का नाशक ,मलरोधक , वीर्य वर्द्धक ,वात कफकारक , रूचि और स्तनों में दूध पैदा करता है | विशेष लाभ - कसेरू का रस दूध और चीनी मिलाकर पीने से बल और वीर्य की वृद्धि होती है और दूध सोम रोग और प्रदर रोग को दूर करता है | उपरघर | आगे ---


बबूर नाम - सं- बबूर ,बब्बूर ,हिं - बबूर , बं - बावलागाछ , म-बाभूल , बाझली ,गु - बावला , अं - एकाश्या ट्री , फा - मुतिला | विवरण - बबूल का वृक्ष काँटेदार और बड़ा होता है | इसकी पत्ती छोटी और लम्बी होती है | बबूल की दातून करने से दाँत मजबूत होते हैं | बबूल की पती गेन्दा की पत्ती पीसकर अलग- अलग लुगदी पानी में घोल एक हाँड़ी में रख कर मन्दी आँच पर चढ़ाय उसका बफारा लेने से बवासीर रोग शाँत होता है | बबूल की छाल को पीसकर पानी भरे हुए घड़े पर लगा दे फिर थोड़ी देर बाद आँखों पर बाँध कर सो जाय ,और सबेरे उठ कर धो डाले तीने दिन इस प्रकार बाँधने से आँखों का दर्द जाता रहता है | बबूल की छाल साँझ को भिगोये सबेरे कुल्ली करे तो मुँह का फोड़ा अच्छा हो जाता है | बबूल की गोन्द 2 तोला गाय का मठा पावभर मिलाकर बारह दिन पिवे तो प्रमेह और सुजाक रोग दूर हो जाता है | तथा बबूल की भितरी छाल संध्या समय भिगो देवे सबेरे उसी पानी से कुल्ली करे तो दाँतों से खून का गिरना बन्द हो जाता है | उपरघर | आगे ---


जामुन नाम - सं - जम्बू , हिं - जामुन , बं - जामगाछ , म- जामगाछ ,गु- जाम्बु , क- नरले ,तै- जंबुनाबल ,अं - जांबल ट्री ,ले- युजिनिया जाम्बोलेना | विवरण - जामुन का पेड़ बहुत ऊँचा होता है | इसका छाल सफेद होता है | वैशाख में इसमें मंजरी लगती है | बाद में फल लगते हैं | बरसात के आरंम्भ में फल पकने लगते हैं | जामुन कई तरह के होते हैं | जंगली जामुन का फल खट्टा और छोटा होता है | बाग में लगे हुए जामुन बड़ा और मीठा होता है | जामुन के अधिक खाने से पेट में बादी हो जाती है | जामुन की लकड़ी पानी में जल्दी नहीं सड़ती | गुण - जम्बूवृक्षस्तु तुवरो ग्राही मधुर पाचकः | मलस्तम्भकरीरूक्षो रूचिकृत्पित्तदाहहा || अम्लः कण्ठ्यः कृमिश्वासशोषातीसारकोसहा | रक्तदोषं कफं चैव व्रण चैव विनाशयेत || जाम्बवं गुरू विष्टम्भि कषायं स्वादु शीतलम | अग्निसंदूषणं रूक्षं वातलं कफपित्तजित || तन्मज्जा मधुरोग्राही विशेषान्मधुमेहहा | तदंकुरा हिमा रूक्षा ग्राहकाध्मानकारकः || जामुन के पेड़ की छाल कसैली ,मलरोधक ,पाक में मधुर ,रूखी रूचिकारक ,पित्तदाह नाशक ,खट्टी ,कण्ठरोग नाशक ,कृमि , श्वास , शोष , अतिसार ,खाँसी , रक्तविकार ,कफ , और व्रण नाशक होती है | जामुन का फल भारी ,मलरोधक ,कसैला , मीठा , ठण्डा , मन्दाग्नि कारक ,रूखा ,बादी और कफपित्तनाशक है | जामुन की गिरि मीठी , ग्राही और आध्मान करने वाली होती है | विशेष प्रयोग - जामुन का बीज पानी में घीसकर लगाने से गरमी से उत्पन्न फुँसियाँ दूर होती है | जामुन की पत्ती का रस में दूध ,शहद और शहद का आधा घी मिलाकर पीने से रक्तातिसार अच्छा होता है | जामुन की पत्ती का रस लगाने से बिच्छू का दंश दूर होता है | मधुमेह - जामुन की छाल या बीज का चूर्ण खाने से बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है | जामुन की छाल का रस पीने से अतिसार को नाश करता है | वमन में - जामुन की छाल जलाकर उसकी राख शहद के साथ चाटनी चाहिए | मधुमेह में - (पेसाब में शक्कर आने पर ) जामुन के बीज या गुड़मार की पत्ती का चूर्ण ठण्डे जल के साथ खाना चाहिए | अरूचि - जामुन का फल नमक मिर्च के साथ खाना चाहिए | जामुन के शिरका से लौह बहुत जल्दी भष्म हो जाती है | जामुन का शिरका गुल्म , अतिसार , पेट की पीड़ा और प्लीहा नाशक है | उपरघर | आगे ---


जावदी हल्द विवरण - हल्दी नित्य खाने के काम में आती है | आधा पाव जावदी पीसकर ढाई सेर गौदुग्ध में औटावे खोवा हो जाने पर शक्कर मिश्री मिलाकर 22 लड्डू बाँधे  एक-एक लड्डू सबेरे साम खाने से बादी रोग  जाता रहता है हल्दी  में अनेक गुण हैं | जल से उत्पन्न विकार को शाँत करने वाली है | हल्दी अवश्य प्रतिदिन सेवन करना चाहिए | 5 तोला पारा मूली के 40 तोले रस में एक दिन भिगो दे बाद एक पाव खड़ी  हल्दी डाल कर आँच दे ,रस सूख जाने पर फिर 40 तोला रस डाले ,इसके भी सूख जाने पर फिर 40 तोला मूली रस डाले और पकावे | इस बार हल्दी काली हो जाती है | इस हल्दी का  चूर्ण कर इसी के बराबर मैनसिल और आम के गोन्द का चूर्ण मिलाकर रख दे इस चूर्ण को नीबू के रस में मिलाकर लगाने से 18 प्रकार के कुष्ठ रोग जाते रहते हैं | हल्दी भूनकर दाँत के नीचे दबाने से दाँत का दर्द जाता रहता है | और दाँत के कीड़े मर जाते  हैं | हल्दी का चूर्ण और चूना मिलाकर गरम कर लेप करने से चोट का दर्द और सूजन नष्ट होती है | भूनी हल्दी , सोंठ ,चीनी मिलाकर फाँकने से जोड़ों का दर्द दूर होता है | हल्दी के लेप से आँख की रोशनी बढ़ती है |    उपरघर | आगे ---


दारू हल्दी नाम - सं - दारूहरिद्रा ,हिं - दारू हल्दी , बं - दारूहरिद्रा , म- दारूहलद , गु - दारूहलदर , फा- दारबोच ,अं - टर्मरिक | विवरण - दारू हल्दी , सज्जी ,तिल , कारीजीरी ,कूट इनको पीसकर मार की चोट अथवा सूजन पर लगावे तो चोट अच्छी हो जाती है | और सूजन पचक जाता है | तथा दारूहल्दी छटांक भर , भूकटेरी के बीज एक छटांक , मदार के फूल के मिंगी आधी छटांक ,पाँचों नमक एक छटांक इनको पीसकर कूचड़ में भर बन्द करके आँच में धरे तो भष्म होवे एक माशा मात्रा गरम पानी के साथ पीवे तो दमा -खाँसी रोग दूर हो जाय |


लाजवंतनाम - सं - लज्जावती , हिं - छुई-मुई , शर्मानी , लाज लज्जाध्लुवतौ ,बं - लाजुक ,लज्जावंती , म- लजालु , लाजरी ,सकोरणी , गु - रिशोमणी | लाजवंती का पौधा छूने से मूरझा जाता है | लाजवंती को रविवार को ले आवे और छल्ला बनाकर कमर में बाँधे तो नाभि ठिकाने में आ जाती है | लाजवंती बूटी की लुगदी में रखकर सिंगरफ फूँका जाता है |


छुई-मुई पीले फूल की नाम - सं - लज्जालु , हिं - लज्जवंती , छुई-मुई ,शर्मानी ,लाजवंती , बं - लाजुक ,लज्जावती ,म- लजारू लाजरी ,सकोरणी ,गु - रिशोमणी | पीले फूल की छुई-मुई के पत्तों के रस में आठ दिन हरताल घोट कर टिकिया बाँध पत्तों की लुगदी में रखकर हाँड़ी में नीचे -उपर बालू के साथ हाँड़ी में धरे और कपड़ मीट्टी कर चूल्हे पर चढ़ा कर 5 प्रहर आँच देवे | यह रस तिजारी और कुष्ठ रोग को हरता है | इसी प्रकार मैनसील भी भष्म होता है | उपरघर | आगे ---


पान नाम - सं - ताम्बूलवल्ली , ताम्बूली , हिं - नागरबेल ,पान , बं - पान , म- नागवेली ,गु- नागरवेल्य ,पान ,अं - बिटलल्लीव , फा- वर्गत बाल | विवरण - नागरबेल के पान , अथवा कपूरी पान पर चना ,कत्था,लगाकर उस पर जावित्री ,दालचीनी ,इलायची ,सुपारी  दोहरे रखकर  बीड़ा बनाकर खाने से मुख  की दुर्गंधि जाती रहती है | कफ दूर होता है | पान में बहुत गुण हैं |


दूब नाम - सं - दूर्वा ,नील दूर्वा , हिं - दूब ,हरी दूब ,बं - दूर्वा ,नील दूर्वा , सादा दूर्वा , म - दूर्वा , नील ,श्वेत, हरली , गु- ध्रोलीला , ध्रोधाली | विवरण - दूब हरी होती है नदी अथवा जलाशय के समीप की दूब लेकर उसको एक मिट्टी के पात्र में थोड़े से पानी के साथ आँच पर चढ़ा कर बफारा लेने से खूनी बवासीर की पीड़ा शाँत होती है | दूब में भी सफेद दूब के समान ही गुण हैं | उपरघर | आगे ---


सौंफ बरियारी नाम - सं - मधुरिक , शतपुष्पा ,मिश्रेया ,हिं - सौंफ , बं - मारी , म- बड़ी शोफ, गु- बरियाली , अं - फेनलसीड ,फा- बादियान | विवरण - सौंफ को बरियारी कहते हैं | सौंफ का अर्क अजीर्ण को शाँत करता है | पोदिना और सौंफ का अर्क वमन और आमवात को दूर करता है | ठंडाई और अचार में सौंफ का चूर्ण डाला जाता है | सौंफ का चूर्ण बिना कुछ खाये  सबेरे खाय तो मुख के छाले अच्छे हो जाते हैं | और आतशक (गरमी) की बीमारी  अच्छी  होती है |


सूरन विवरण - सूरन का पेड़ चार हाँथ ऊँचा होता है | गुण - सूरन अग्नि को बढ़ाने वाला है | रूखा , कसैला ,खुजली लाने वाला ,चरपरा ,कब्ज और रूचिकारक ,कफनाशक ,बवासीर ,में लाभदायक ,प्लीहा, और गुल्म नाशक है | दाह ,दाद ,रक्तपित्त और कोढ़ रोग में हानि करने वाला है | सूरन को घी में भून कर चीनी मिलाकर खाने से आँव बन्द होता है | जँगली सूरन का लेप कर्ण मूल को दूर करता है | सूरन को कँडे के  भौंरा में पकाकर रस निचोडें बाद में तील का तेल और सेंधानमक मिलाकर पीने से बवासीर दूर हो जाती है | सूरन को कतरकर इमली की पत्ती या हर्रा ,आँवला,बहेरा के साथ उबालकर खाने से गला नहीं काटता | उपरघर | आगे ---


सफेद जीरा नाम सं - जीरक , सितजीरक ,हिं -जीरा ,सफेद जीरा , बं -  जीरे , सादा जीरे , म - जीरे पांढरे , गु - शकुन जारू , अं - क्युमिनसीड  , फा - जीरा | विवरण - सफेद जीरा चार माशा , इलायची चार , धनिया चार  माशा कलिमिर्च सात , घोटकर पीने से गरमी (आतशक ) और चिनरोग  शाँत होता है | सेंधानमक और सफेद जीरा पीसकर मंजन करने से दाँतों की बादी दूर होती है | सफेद जीरा अनेक चूर्णों में पड़ता है | दाल और तरकारियों में इसकी छौंक दी जाती है | जीरा में भी सफेद जीरा के समान ही गुण हैं | बादी से पेट चलना , वायुगोला ,अतिसार ,वमन इन रोगों को जीरा हरता है | इसकी मात्रा दो माशे की है | जीरा को पीसकर पुलटीश बनाकर बाँधने से बाहर निकले हुए मस्से और बहुत दाह  करने वाली बवासीर जाती रहती है | जीरे से बहुत मूत्र उतरता है | स्तनों में दूध बढ़ता है | ( चरक में जीरे को ) शूल नाशक माना है | और शुश्रुत में (वातकफनाशक ) माना है | जीरा अरूचि नाशक ,सूजन शूल और आम को दूर करता है |   उपरघर | आगे ---


सफेद दूब  नाम - सं - दूर्वा ,नील दूर्वा ,श्वेत दूर्वा ,गण्द दूर्वा ,हिं - दूब , हरी दूब , सफेद दूब ,गांडर दूब , बं - दूर्वा ,नील दूर्वा , सादा दूर्वा ,गेटे दूर्वा ,म - दूर्वा ,नील ,श्वेत,हरली,गण्डूर दूर्वा ,गाठी हरली ,गु- ध्रोलीला ध्रो ,गंडूर ध्रो , अं - क्रोपिंग साई गोडन | विवरण - सफेद दूब चार माशा , काली मिर्च 5  सफेद इलायची तीन माशा ,जेठी मधु 4 माशा - इन सबको घोटकर पीवे तो सात दिन में बवासीर  रोग चला जाय | तथा सफेद दूब 4 माशा  घिसा हुआ सफेद चन्दन  छे माशा , मिश्री 1 तोला पीसकर चावल के पानी के साथ पीवे तो दस्त बन्द हो जाय |  उपरघर | आगे ---


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