आयुर्वेद  2 

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पेज में क्या-क्या है --

गुलाब , मोंगरा ,कुचिला , बाकुचि , हींग , खाटी भाजी , गोभी , मकोय , अदरक ,सोवा , माल तुलसी , चौलाई ,बिछवा ,बड़ी दुद्धी ,विषखपरा , जायफल , पेठा , आम , केवड़ा

  गुलाब

सं- तरूंणी,शतपत्री,कुब्ज,हि-सेवती गुलाबगुजा,सदा गुलाब,बं-सेउबी,गोलाप,कूजा,श्वेतगुलाब,म-गुलाबचा फूल,सेवती,काटे सेवती,गु-शेवतीगुलाब,मोसमीगुलाब,अं-कैबेज रोज गुलकंद,फा-गुलेगुलमुख,गजेसुशधी | सेवती क वृक्ष छोटा और सुन्दर होता है | इसका फूल और अत्तर सूंघने से गरमी से दुखता हुआ मस्तक अच्छा हो जाता है | और हृदय की जलना और शरीर की गरमी दूर हो जाती है | जल के साथ सेवती का गुलकंद उपरोक्त दोष को शांत करता है ,और सेवती का फूल तोलाभर सफेद इलायची के दाने चाररत्ती भर ,कालीमिर्च सात ,मिश्री तोला भर लेकर घोट कर पीने से जो गरमी से माथा दुखता हो तो तत्काल पीडा दूर हो जाती है |


मोंगरा   

वार्षिकी,मल्लिका,मुदगर,हि-बेला,मोतिया,घुघुरूमोतिया, बन मोंगरा,बं-बेलफलगाछ,मल्लिका,फुलरगाह,मल्लिका भेद | गु-बेल्य डालर जंगला,चिखलयो राजमोगरी | म-मोंगरी,रान मोंगरी ,साटई मोगरा | जस्मिन प्युवीसेंस | मोंगरा भी देख्नेने में अच्छा लगता है | इसके पत्ते को पीस कर लुगदी को घी में छोंके , उस लुगदी को गरम कर फुडिया पर रख कर बांध देवे तो उसी समय पीडा जाती रहती है | तीन बार बांधने से फुडीया अच्छी हो जाती है ,तथा मोगरा के पत्ते एक तोला भर गूगल दो माशा भर लेकर टिकिया बनाय एक तोला भर घी में जला कर उस घी में मोम मिलाय मलहम बना लेवे | इस मलहम से असाध्य फोडा भी अच्छा हो जाता है | मोंगरा का अत्तर सुंघे तो शिर में तरावट बनी रहती है | मोंगरा के भी अनेक गुण हैं |उपर | घर  | आगे


कुचिल

नाम सं - कारस्कार ,हिं -कुचला ,बं - कुचिंले ,म - काजरा अथवा कारस्कार या कुचला ,गु- ओंचला,अरबी - कातिलुलकल्क फ्लूजमाही ,फा- इफराकी ,अं - पोयजन नट | विवरण -  कुचले के वृक्ष मध्यम आकार के होते हैं  | प्रायः वन अधिकतर देखे जाते हैं | पत्ते पान के समान और फल नारंगी की तरह सुंदर -सुन्दर होते हैं | इसके बीज को कुचला कहते हैं | गुण - कुच्ला अत्यंत कडुवा,चरपरा ,गरम ,रूक्ष ,हल्का ,कसैला मदकारक ,मलरोधक एवं भेदक है | इससे कुष्ठ ,वात ,रूधिर  दोष ,कण्डू ,कफ कार्श्य , अर्श ,व्रण , पाण्डुरोग , ज्वर और विष विकार दूर होते हैं| इसका कच्चा फल मल रोधक कसैला ,वात कारक ,हल्का तथा शीतल है | पका फल विषद(रूक्ष ) भारी , पाक में मधुर ,तथा कफ ,वायु,प्रमेह ,पित्त एवं रक्तदोष निवारक है | उपर | घर  | आगे


बाकुचि 

नाम -सं - सोमराजी ,हिं बाकुचि ,बकुचि,बं- हाकुच सामराल,,मं - बावचि,गु- बावचि, अं - एसक्लूलंटल्फाकुर्शा | विवरण - बाकुचि का क्षुप होता है | पत्ते ग्वार के समान होते हैं | फूल काला होता है | फल गुच्छों में लगते हैं| उनमें से काले दाने निकलते हैं|  और उसमें दुर्गंध आती आती है | व्यवहार - बीज तथा डण्ठल की मात्रा डेड माशा  की है | गुन - बाकुचि मधुर  ,कडुवी ,पचने में चरपरी ,हल्की ,  रसायन, शीतल,सारक ,रूक्ष कसैली तथा ,ग्राही है | विष्टम्भ को दूर करती है | रक्तपित्त तथा कफ को नष्ट करती है | हृदय को हितकर ,कास ,श्वास ,कुष्ठ प्रमेह ,ज्वर ,कृमि विनाशक ,पित्त जनक ,चर्मरोग , नाशक ,,कफघ्न ,वातकारक ,मेधाजनक ,कांतीकारक एवं अग्नी प्रदीपक है ,और विष कण्डु ,खुजली , ,,शोथ ,अर्श , पाण्डु, मूत्र कृच्छ्र ,आमवात ,व्रण तथा त्वचा विकार को दूर करती है | बाकुचि का एक भेद श्वित्रारी है | यह  कोढ ,त्रिदोष ,रक्त विकार ,वातविकार ,वत रक्त ,सिध्म ,और श्वित्र को नष्ट करती  है |  


हींग

नाम सं - हींगु , हिं - हींग ,बं-हिंगु ,म - हिंग ,गु-बघारणी ,फा- अंगुझ दर्खते अगुझ खालीस ,अरबी- हिलसीत,अं -असफोटिडा | विवरण- हींग वृक्ष ईरान और गंधार आदि देशों होते हैं | पत्ते और छाल में चीरा देने से दूध निकलता है | वह रखने से गोन्द के समान जम जाता है | उसको पत्तों में सुखा लेते हैं - उसी को हिंग कहते हैं | यह कई प्रकार की होती है | पर्ंतु उसमें सबसे उत्तम हीरा हींग होती है | उसी को वैद्य लोग काम में लाते हैं | हींग प्रायः पठान लोग काबुल ,हिरात और खुरासान से बेचने को लाते हैं | कोई-कोई धूर्त चने और लहसून का चूर्ण मिला कर उसमें हींग पानी डाल कर नकली हींग बनाते हैं| उसको लहसुनियाँ हींग कहते हैं| शाकादि में इस प्रकार के हींग को डालने से कोई स्वाद नहीं होता है | और भी कई प्रकार से नकली हींग बनाई जाती है | गुण - हींग हल्की ,गरम,चरपरी,स्निग्ध ,दस्तावर ,दीपन ,तीक्ष्ण ,और ,पाचक ,,कफवात को नष्ट करने वाली तथा पित्त को कुपित करने वाली है | इससे शूल ,आमवात ,अजीर्ण,कृमि ,आध्मान,गुल्म ,और ,विबंध ,रोग दूर होते हैं | नेत्र तथा हृदय को हितकारी है | अनाह रोग ,उदर रोग ,तथा अजीर्ण रोग में विशेष लाभ कर है | और श्वास ,कास ,मलस्तम्भ ,मन्दाग्नि ,तथा भूत बाधा का नाश करने वाली है | उपर | घर  | आगे


खाटी भाजी

खाटी भाजी को मरसे की साग कहते हैं | खाटी भाजी का रस 1 छटाँक मूली के पत्तों का रस 1 छटाँक दोनों मिला कर पीवे ,शरीर पर मालिश करे ,खाटी भाजी और मूली की साग खाय तो शिंगरफ खाने से जो देह में निकली हो वह अच्छी हो जाती है | लाल मरसा की डण्ठल का राख चूना और शहद मिलाकर लगाने से फोडा अच्छा होता है | मरसा के डण्ठल के रस से शराब का नशा उतरता है | मरसा का साग रक्तपित्त को दूर करता है |


गोभ

गोभी चार प्रकार की होती है | फूल गोभी , पात गोभी , गाँठ  गोभी और बन गोभी | फूल गोभी रूधिर विकार ,पित्त और मूत्राघात  से उत्पन्न प्रमेह को हरती है | शरीर में शक्ति को बढाती  है | फोडा-फुँसी और खाँसी  को दूर करती है | इस प्रकार बन गोभी के पत्ते पानी में पीसकर रखने से खून का आना बन्द होता है | बन गोभी  के पत्तों के काढे की धार  से गठिया रोग दूर होता है | जड सहित बन गोभी उखाड कर 1 तोला काली मिर्च साथ पीस कर आधा पाव पानी में मिलाकर पीने से कठोदर और कच्छू रोग रोग जाता रहता है | बन गोभी के पत्ते का  स्वरस आँख में डालने से उठी आँख अच्छी होती  है | बन गोभी की जड पीस कर पानी में पीने से सर्प विष दूर होता है | बन गोभी का रस पीस कर काली मिर्च के चूर्ण के साथ पीने से शीत ज्वर  नष्ट करता है | उपर | घर  | आगे


मकोय

मकोय का वृक्ष सवा हाँथ उँचा होता है | फूल सफेद और छोटे होते हैं | इसका फल गुच्छों में लगता है | यह भूमि की तराई में होता है | मकोय तीन प्रकार की होती है | एक के उपर अ सफेद रंग का छिल्का रहता है , उसके भीतर लाली लिये पीले रंग का फल होता है | यह खाने के कामे में आता है | लखनाऊ में इसे रसभरी कहते हैं | दूसरी काली रंग की और तीसरी लाल रंग की होती है | इसे झुमकुईया भी कहते हैं | मकोय की पत्ती क अर्क गरम करके सूजन पर लेप करने से सूजन दूर होती है | मकोय की साग गरम मसाला और नमक डाल कर खाने से 7 दिन अथवा दस दिन में तापतिली जाती रहती है | और सोंठ मिलाकर खाने से सूजन पचक जाती है | मकोय का अर्क पीने से भी सूजन दूर हो जाती है | मकोय की पत्ती का अर्क निकाल कर गरम दिया में छौंक दे ,बाद में रस के फट जाने पर छान कर पीने से यकृत वृद्धी दूर होती है | मकोय की पत्ती कारस पीने से अफिम का विष दूर होता है | मकोय की पत्ती का अर्क कान में डालने से भीतर कोई जानवर चला गया हो निकल जाता है | मकोय की पत्ती पीस कर लगाने से योनि का निनवाँ दूर होता है |


अदरख

अदरख को आदि भी कहते हैं | यह रेतिली भूमि में जल के समीप बहुत होती है , भोजन से पहले नमक के साथ खाना हितकारी है | इसका रस चरपरा ,रूखा ,गरम ,और भारी होता है | यह कुष्ठ , दाह ,पाण्डु ,रक्त पित्त ,ज्वर , सहित व्रण ,इन रोगों में वर्जित है | इसका अवगुण शहद ,कपूर और तेल से दूर होता है | यह नहीं मिले तो इसके बदले में सोंठ लें ,गरम स्वभाव वाले को अवगुण करती है | अच्छी नवीन अदरख एक सेर लेकर उबाले ,फिर छिल कर पीसे ,फिर उत्तम हल्दी आधा पाव पीस कर घी में भून कर अदरख में मिलाये उसमें सेर भर पुराना गुड भी मिलावे और एक अमृतवान में रखे | फिर प्रतिदिन बलानुसार 1 तोला से 2 तोला तक खाय तो खाँसी ,मंदाग्नि और दमा रोग जाता रहता है - परंतु परहेज करे | नाभि में अदरख का रस भर देने से अतिसार रोग नष्ट हो जाता है | आदि का रस और शहद जुकाम ,खाँसी ,और दमा को दूर करता है | आदि ,नीबू ,और सेंधा नमक से मंदाग्नि दूर होती है |  उपर | घर  | आगे


सोव

सोवा का साग प्रायः लोग बडे प्रेम से खाते हैं | सोवा के बीज ढाई माशा मिश्री 3 माशा पीस कर फंकी बनाकर गर्भवती स्त्री  सबेरा होते ही फाँके  तो बादी रोग शाँत हो जाता है | सोवा का साग खाने से मशाने और गुरदा के रोग जाते हैं | परंतु परहेज से रहे | सोवा के रस से प्यास दूर होती है | सोवा साग मिला कर नमक मिलाकर बाँधने से गुल्म  मुलायम होता है |


माल तुलसी

माल तुलसी की पत्ती कुछ नोकदार होती है | माल तुलसी के दल सवा तोला भर लेकर शाम को भिगोवे और सबेरे छान कर 1 तोला मिश्री पीसकर मिलावे और खाय तो दस दिन में सुजाक और प्रमेह  तथा गरमी रोग चला जाता है | परंतु गेंहूँ की रोटी और मूँग की दाल ,भिण्डी का साग खाय ,बहुत मुलायम कच्ची भिण्डी  खाय ,घी अधिक खाये ,गुड तेल खट्टाई ,लाल मिर्च नहीं खाय |  उपर | घर  | आगे


चौलाई

चौलाई के साग की तरकारी खाई जाती है | चौलाई के साग और रस से कई रोग अच्छे हो जाते हैं | चौलाई के साग को कुचल कर तीन तोला अथवा चार तोला अर्क निकाल लेवे ,फिर उसमें छे रत्ती भर सुहागा पीसकर छोडे और हिलाकर पी लेवे | अथवा चौलाई की साग बनाकर 2 माशा पाँचों नमक पीसकर मिलावे फिर उसे बिना कुछ खाये ही खाय तो उदर विकार से जिसका पेट भरा रहता है अथवा पेट में भारी पन और गुडगुडाहट होती है , ये रोग शाँत हो जाते हैं | चौलाई की जड पीसकर चावल के धोवन के साथ पीने से रक्त प्रदर दूर होता है | चौलाई के रस में शक्कर मिलाकर पीने से बिच्छू और संखिया का विष दूर होता है | चौलाई का रस लगाने से आग जलने से उत्पन्न पीडा दूर होती है |चौलाई का रस और शक्कर घुमची के जहर को दूर करता है | चलाई की जड और बराबर काली मिर्च चावल के धोवन के साथ पीने से सर्प - विष को नष्ट करता है | चौलाई की जड चावल के धोवन के साथ सेवन करने से बंध्यापन दूर होता है |  उपर | घर  | आगे


बिछव

बिछव का पत्ता बडा होता है , बिछवा से हरताल और संखिया भष्म होती है | बिछवा पीपर अथवा इमली की छाल की राख करे , फिर बिछवा के पत्तों की लुगदी पौन पाव पीसे ,फिर हरताल अथवा संखिया दो तोला लेवे ,आधी हाँडी में खूब दाब कर भरे और उसमें लुगदी रक्खे अनंतर आधी हाँडी को राख से भरे ,पुलकी नहीं रहे राख से कस जावे तब चूल्हे पर चढाकर साढे पाँच प्रहर आँच देवे , जब धातु भष्म हो जाय और स्वाँग शीतल हो जावे तो उतार ले | संखिया का रस उत्तम वैद्य से पूछ कर खाय और हरताल रस चावल भर लेके पान में रखकर दश ग्यारह दिन सबेरे खाय तो कुष्ठ ,दमा ,स्वांग रोग को दूर करती है |


बडी दुद्धी

नाम - सं - दुग्धिका ,दुग्धफेनी ,नागार्जुनी , हिं- दुद्धी ,दुधिया , दुधी कलब , बं - दुधि ,दुध्या ,दुदूले क्षरई खिरूई ,म- लघुदुधी,थोर ,दुधी , गु- दुधेली मोटी थोर  दुधी | विवरण - पारा साढे चार तोला , शोधा हुआ राँगा साढे पाँच तोला ,राँगे को चढा कर उस पर पारा डाले , फिर उतार कर आध सेर  दुद्धी पीसे ,उसमें से आधा सकोरा  में धरे , फिर उस पर पिसा हुआ राँगा धर कर बाकी लुगदी धरे और दूसरा सकोरा औंधा कर कपड मिट्टी करके गजपुट की आँच देवे , जब बंग भष्म  हो जाय तब उतार कर रस छोडे | निर्बल मनुष्य  बल के अनुसार दो रत्ती अथवा 1 रत्ती भर गौ के नैनू अथवा खोवा में रख कर प्रतिदिन खाय ग्यारह दिन में बल बढेगा | परहेज करे | उपर | घर  | आगे


विषखपर

नाम - सं - पुननवा , श्वेत पुनर्नवा ,रक्त पुनर्नवा , नील पुनर्नवा , हिं - विषखपरा , साँठ ,गदहपूर्णा ,नीलीसाँठ ,गदहपुरेना ,बं - श्वेतगांदाव , श्वेतपुण्य गदापुण्या , नीलागाँदावंत , राँगा गादावंते ,म - घेंटुली पोंडरी खरपन्यो , गु- साटाडी 4 छे , खेतरी लांबा पननी गताफूलने निचेघोला कन्द डोला पानने चौमासानी , अं - स्प्रेडिंगहोगूनोड | विवरण - विषखपरा का वृक्ष और पत्ती छोटी होती है , फूल गुलाबी ,जड सफेद और मोटी होती है | चौमासे और सर्दी के दिनों में मार्ग पर खेतों में प्रायः होती है , इसे ' गदहपूर्ना ' भी कहते हैं | यह तीन तरह की होती है | काला ,सफेद और लाल | काला और सफेद कम मिलती है , लाल सर्वत्र मिलती है | विषखपरा पुराना हो तो उसकी छाल में उसी की जड घीस कर आँख की फूली पर लगावे | शहद में घीस कर लगाने से अधिक आँसू गिरना रूक जाते हैं| बकरी के दूध में घीस कर लगाने से आँख के केश (बरौनी) गिरना बन्द हो जाता है | फिर केश उग आते हैं | जड को भंगरा के रस में घीस कर लगाने से (मोतियाबिन्द ) शांत रहती है | पहले हर्रे घिसे फिर विषखपरा की जड उसमें घिस कर लगाने से रोग (मोतियाबिन्द ) शाँत होती है | साँप काटा हो तो विषखपरा का रस तुरंत पीवे तो चिकित्सा करने का समय मिलता है | इसके पत्ते नमक मिलाकर खाने से वायगोला अच्छा हो जाता है | गदहपूर्ना की जड और हल्दी काढा पीने से खूनी बवासीर दूर होती है | गदहपूर्ना का पँचाग और सेंधा नमक का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन करने से गुल्म और प्लीहा रोग शाँत होते हैं | गदहपूर्ना का चूर्ण शहद के साथ कामला रोग को नष्ट करता है | गदहपूर्णा की जड घिस कर लगाने से बिच्छू का विष दूर होता है | गदहपूर्ना की जड दूध में पीसकर पीने से या पान में खाने से अथवा कच्चे धागे में बाँध देने से चौथिया ज्वर जाता रहता है | गदहपूर्ना की जड , देवदार ,सोंठ का काढा सूजन को दूर करता है | गदहपूर्णा का रस पीने से कुत्ते का विष दूर होता है | गदहपूर्ना की जड , कुटकी , चिरायता और सोंठ का काढा सर्वांग शोथ को दूर करता है | गदहपूर्ना का साग खाने से मन्दाग्नि दूर होती है | उपर | घर  | आगे


जायफल

नाम सं - जयफल ,हिं- जमालगोटा ,हिं -जैपाल ,म- जैपाल ,ग- नेपालो , अरबी - हबुससलातीन ,फा - तुममेंबेंद ,जीर खताई ,अं -पार्जिंग ब्रोटन | विवरण - जमालगोटा का क्षुप होता है | पत्ते गूल्लर के समान होते हैं | फूल महुए की तरह होते हैं | इसका फल जमालगोटा है | बडी दंती का बडा वृक्ष होता है | फल अण्डे की तरह होते हैं | उनमें से अण्डों की तरह बीज निकलते हैं | उन बीजों का जुलाब होता है | तथा इसका दूध का भी थूहर के समान जुलाब दिया जाता है | गुण - जायफल चरपरा ,गरम ,रेचक ,दीपन ,भारी ,स्निग्ध ,तीक्ष्ण , क्लेदकारक ,कृमिकारक ,कफ, वात निवारक तथा उदरामय शोधक है | बीज शोधन विधि - 1 ) बुद्धिमान वैद्य वक्कल रहित जमालगोटे के दो भाग करके इसके बीज के मध्य में पत्ते की समान जो वस्तु है उसको निकाल डाले और जमालगोटे की दाल में अष्टमांश सुहागे का चूर्ण मिलाकर केशयंत्र द्वारा भावना दे , फिर दूध में भिगो कर मिलावे ,इस प्रकार तीन बार करने से जमालगोटा अमृत-सदृश हो जाता है | 2) जमालगोटे को गोबर के जल में अथवा दूध में भिगो कर कोमल कपडे में भूने | जब उसमें चिकनाई न रहे तब शुद्ध हो जाता है | जमालगोटे का तेल - अत्युग्ररेचक ,अनाह ,उदर रोग ,संन्यास शिरोरोग,धनुस्तम्भ ,ज्वर उन्माद , एकांगवात ,आमवात ,शोथ ,रोग एवं मर्दन करने से कास रोग को नष्ट करता है | दंतपीडा में - जमालगोटे को पानी में पीस कर लगावे और लार टपकावे और तुरंत कुल्ला कर डाले | उसका कुछ भी हिस्सा मुख के अन्दर न जाने पावे | शीर की पीडा में - 2 जमालगोटे को पानी में पीस कर माथा में लगावे और (तुरंत लगाने केदो मिनट बाद ) पोछ डाले और बाद घी लगा दे इससे पीडा तुरंत शाँत होती है | बिच्छू के डँक मारने पर - जमालगोटा पीस कर लगाने से पीडा तुरंत शाँत हो जाती है | उपर | घर  | आगे


पेठ

नाम - कूष्माण्ड ,हिं- पेठा ,कुम्हडा ,कोहडा , बं - कुमडा गाछ , म- कोहोला ,गु- भुरु कोलु ,अं - पकोम ,फा- भुराकुदु | विवरण - पेठा का पाक उपदंश और रसकपूर से देह फूट बहने को शाँत करता है | पेठे का पाक बनाने के निमित्त उसको उबालकर ठीक कतरा करे | शक्कर की चाशनी बनाय सालम ,इलायची , बंशलोचन ,गोखरू , विदारीकन्द ,दक्खिनी अनुमान से डाल कर खाय तो गरमी रोग चला जाय | तथा जँगली बकरी का दूध ,पेठा का पानी एक छटाँग मिला कर 2 सप्ताह पीवे तो गरमी रोग जाय किंतु परहेज करे | पेठे का रस पीने से विष का असर कम होता है | मूलेठी के चूर्ण के साथ पेठे का रस पीने से मूर्छा और उन्माद रोग दूर होता है | पेठा की पत्ती हल्दी का चूर्ण दही के साथ खाने से 1 सप्ताह में कामला रोग नष्ट होता है | पेठा का रस मिश्री के साथ अम्लपित्त को दूर करता है | पेठा का रस जवाखार के साथ पथरी और शर्करा रोग को दूर करता है | पेठा का रस मिश्री के साथ पीने से तृषा शाँत होती है | पेठा का मुरब्बा से गरमी शाँत होती है | और बल बढता है | उपर | घर  | आगे


आम

नाम - सं - आम्र ,रसाल ,चूत ,हिं - आम ,बं - आम ,म-आवा ,गु -आवा ,अं- मैंगो ट्री ,फा - आवा | आम का वृक्ष बडा होता है | इसके वृक्ष सर्वत्र होते हैं | इसका एक बडा भारी मेवा है | परंतु आज कल आम के वृक्षों की सेवा नहीं होती ,इस कारण इस देश में आम की फसल शीघ्र नहीं बढती | इस समय यज्ञ न होने के कारण ईश्वरीय कोप के कारण हम आम खाने के आनन्द से रहित हो जाते हैं | आम के फल से भष्मक रोग और दाद अच्छी हो जाती है | आम का औटा हुआ एक पाव रस ,गौ अथवा भैंस का औटा हुआ पाव भर दूध , भैंस का पाव भर घी ,आधा पाव शक्कर डालकर मिलावे और सबेरे शाम 2 -2 तोला खाय ,अथवा आधा पाव औटा हुआ दूध आधा पाव आम का रस (शक्कर एक छटाँक घी आधी छटाँक इन सबको मिलाकर ) दस दिन तक खावे तो अच्छी हो जाय | आम की गुठली का चूर्ण पेट के कीडों को नष्ट करता है | इसी चूर्ण से गर्भिणी का अतिसार रोग भी दूर हो जाता है | इसी चूर्ण से रक्तार्श और रक्त प्रदर रोग भी अच्छा होता है | आम की गुठली भून कर चूर्ण कर सूखा ही शरीर में मलने से अधिक पसीनों का आना बन्द होता है | आम की पत्ती तोडने पर पत्ती की जड में जो रस लगा रहता है उसके लगाने से बिलनी अच्छी होती है | आम की अंतर छाल को दही में पीस कर नाभि के चारों तरफ लेप करने से दस्त बन्द हो जाते है | आम की छाल का रस अथवा काढा बकरी के दूध के साथ पेने से उपदंश रोग अच्छा हो जाता है | आम के पत्तों का काढा शहद डाल कर पीने से स्वर भंग दूर होता है | कच्चे आम का पन्ना नमक और भूना जीरा डालकर पीने से ,तथा सिर्फ पन्ना शरीर में लगाने से लू लगने पर उत्पन्न तकलीफ दूर होती है | आम की बौर डाल कर पकाया हुआ रेडी के तेल छोडने से कान की पीडा दूर होती है | आम की गुठली और छोटी हर्रे पीस कर लेप करने से शिरका दारुण नामक रोग अच्छा हो जाता है | उपर | घर  | आगे


केवड़ा (केतकी)

नाम - सं - केतकी ,हिं -केतकी अथवा केवडा ,बं- कयागाछ ,म - केतकी, गु- केवडा ,फा- करज ,अरबी - कादी | विवरण - केवडे के वृक्ष बाग और जल अके निक्ट अधिकता से होते हैं | वृक्ष के भितर बारीक काँटे और पत्ते लम्बे होते हैं | पत्ते के कोने पर काँटे होते हैं इसी का एक और भेद स्वर्ण केतकी भी है | उसका क्षुप पीला और विशेष सुगंध वाला होता है | केवडा का फूल बडा सुगंधित होता है | गुण - केतकी चरपरी ,स्वादिष्ट ,,हल्की,कडुवी ,,कफनाशक ,और उत्तम है | इसका पुष्प हल्का ,चरपरा ,कडुवी ,कांती कारक ,गरम,तथा वात कफ और बालों की दुर्गंध को दूर करने वाला है | इसकी केसर सिध्म (नेत्र रोग) और कण्डुनाशक है तथ कुछ गरम है | केवडा तंद्रा - निद्रा उत्पन्न करने वाला है | स्वर्ण केतकी -कडवी ,नेत्रहितकारी ,हल्की ,चरपरी ,मधुर ,विष विकार ,और कफ विनाशक  है | फूल सुखकारी ,कामोद्दीपक ,किञ्चित गरम ,चरपरा,कडुवा ,नेत्रहितकर एवं सुगंधित है | इसके स्तन अत्यंत शीतल ,देह को दृढ करने वाले ,बलकारी ,नमकीन रसायन,तथा पित्त कफनाशक है | इसके फल और केसर के गुण केवडे की तरह होते हैं | उपर | घर  | आगे


 

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जाल प्रणेता- brajgovinddas@yahoo.com

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