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वैष्णव कलेण्डर   ग्रंथालय    इस्कॉन के कार्य   इस्कॉन आपका भी  इस्कॉन के चार नियम   

इस पेज में क्या - क्या है -----

हर्रा , इमली , ब्रह्मदण्डी , रतनज्योती , चिरमिटी , कपिकच्छू , श्रीवास , गोजिया , अरणी , सातला , तालीसपत्र , कङ्कोल , गजपीपल , नीम गिलोय

 


कुछ ही देर में माली ने वहाँ आकर उस फल को उठा लिया और चूसने लगा जब आम चूस चूका ,थोडी देर के बाद माली मूर्छित हो गया | चेतना शक्ति मन्द हो गई | नाभी के समीप कुछ धुक-धुकी रह गई | यह दशा देख कर विष चिकित्सा करने वैद्य बुलाये गये | वैद्य जी उसको देखकर तुरंत तुलसी के पत्तों का आधा पाव रस निकाल कर उसके शरीर में मालिश कराई और मुख और नाभि में भी भरवा दिया थोडी देर बाद रोगी हिला और मुँह में भरे हुये रस को पीने की इच्छा करने लगा बाद में चार घडी बीत जाने पर माली चेतना युक्त हो गया और नेत्र खोल कर कहने लगा कि मेरी देह में जलन पड रही है | दो घडी उपरांत वह जलन भी दूर हो गई | रोगी चंगा हो गया | तो इस प्रकार से जडी -बुटियाँ काम करती हैं | इस संसार में भगवान कृष्ण ने सब ही पदार्थ प्राणीयों के उपचार हेतु बनाया है | इस प्रकार वृक्षों के द्वारा प्राणियों के जीवन में बहुत सहायता प्राप्त होती है | यदि वृक्ष न हों तो प्राणियों का जीवन दुर्लभ हो जाय | क्योंकि वृक्ष मात्र ही सब औषधि हैं | औषधियों में कुछ बुटियाँ ऐसी हैं जो कि तत्काल अपना प्रभाव दिखाती हैं | जहाँ गाँवों में वैद्य नहीं पहुँच पाते वहाँ जड़ी -बुटियों से ही रोगी का रोग ठीक किया जाता है | प्राचीन समय में मनुष्य अनेक जड़ी -बुटियों को पहचानते थे और उनके गुणों को जानते थे | इस कारण उन्हीं बुटयों के द्वारा रोगी को भलाचंगा कर देते थे | स्वर्ण आदि धातुओं को शोधने फूँकने का काम जड़ी -बुटियों से ही होता है | बुटियों के बिना रसायन की क्रिया सिद्ध नहीं होती | जड़ी और बुटी चिकित्सा का पूर्ण अंग है | यहाँ पर हम ऐसे ही जड़ी - बुटियों का पहचान करायेंगे | जो आपके आसपास ही प्रायः होते हैं | परंतु उनके गुण को प्रायः लोग नहीं जानते | हमारा यही उद्देश्य है कि किस प्रकार प्रकृति का सदुपयोग करें और माँसाहार जैसे पाप कर्म से और अन्य तमोगुण प्रकृति वाले पदार्थों से बचे रहें | यहाँ हम भक्तों के हितार्थ जड़ी -बुटियों का नाम और उसके पहचान तथा उसके गुण लिखे जाते हैं |


हर्रा नाम - हर्रा के अनेका नाम हैं - ये सब नाम सार्थक है | जैसे रोग भय को दूर करने के कारण अभया है | रोगों को हर लेती है  इसलिये हरितकी नाम है | पथ्य रूप होने से पथ्या है | काया को बुढ़ापे से रक्षा करती है इसलिए कायस्था है | हिमालय में उत्पन्न होने से हैमवती नाम है | अमृत के तुल्य गुण होने से अमृता नाम है | व्यथा को दूर करने  से अव्यथा  नाम है | कल्याणकारी होने से श्रेयसी  और शिवा नाम है | जीवंती ,विजया,रोहिणी  पुतना   नाम भी  गुणानुसार सार्थक है | इस प्रकार संस्कृत में हर्रा के पंद्रहों नाम सार्थक है | हिन्दी में - हर्रा , फारसी में - हलेला , अस्फर , अंग्रेजी में - टरमिनेलिया ,डाक्टरी नाम -चेबुकिल माईरो वेलान , हर्रा का  वृक्ष आम के समान बड़ा होता है | इसको सब कोई जानते हैं | हर्र फल है इसके वृक्ष के दो पत्ते आमने -सामने मोटे और अम्रूद के पत्तों  के समान लाल  रंग के  होते हैं | हर्र डेढ़ इंच  तक लम्बी होती है | इसको सुखाने से छाल सुखने से खड़ी पाँच रेखाएँ हो जाती हैं | बड़ी हर्र 2 तोला से पाँच तोला तक होती है | और जिसको हर्रा कहते हैं  वह आधे तोला से एक तोला तक होती है | त्रिफला में इसे मिलानी चाहिए | छोटा हर्र दस रत्ती से 7 मासे तक होती है | इसको सधारण जुलाब में लेनी चाहिए | हर्र जितनी नई हो उतना ही अच्छा होता है | हर्र की फल की छाल सब प्रयोगों में लेनी चाहिए | हर्र की 7 जाती है - विजया ,रोहिणी,पूतना ,अमृता ,अभया ,,जीवंती ,,चेतकी | इसमें विजया का अकार तोम्बी के अकार का होता है | यह विंध्याचल पर उपजती है | रोहिणी गोल होती है | यह सिंध देश में प्रकट होती है  | इसके बीज बड़े होते हैं| पूतना पतली रेखा वाली होती है | इसके बीज बड़े होते हैं | यह हिमालय पर्वत पर उपजती है | अमृता हर्र मोटी और रेखा वाली होती है | उसमें गुदा बहुत होती है | गुठली छोटी होती है | यह किष्किंधा के निकट पम्पासर में होती है | अभया हर्र भी पम्पासर में होती है | यह पाँच रेखा वाली होती है | जीवंती हर्र गुजरात में होती है | और स्वर्ण के समान पीली होती है | चेतकी हर्र हिमालय में होती है | और तीन रेखा वाली होती है | विजया हर्र सब  हर्रों से उत्तम होती है | और इसको सब रोगों में देना चाहिए | पूतना हर्र लेप के काम में आती है | रोहिणी हर्र घाव में लगानी चाहिए | अमृता हर्र जुलाब में लेना चाहिए | अभया हर्र नेत्र  के लिए हितकारी है |   जीवंती हर्र सब रोगों को हरती है | चेतकी हर्र चूर्ण में देनी चाहिए | चेतकी हर्र 2 प्रकार की है 1 सफेद 2काली | काली एक अँगुल लम्बी और सफेद छे अम्गुल लम्बी होती है | कोई हर्र खाने से कोई सूँघने से कोई देखने से या कोई छूने से दस्त लाती है | मनुष्य  , पशु , पक्षी ,कोई   भी चेतकी हर्र के पेड़ के नीचे छाया में जाकर खाड़ा हो जाय तो दस्त होने लगते हैं | चेतकी हर्र जब तक हाँथ में लिए रहेंगे तब तक दस्त होते रहेंगे | चेतकी हर्र के वृक्ष काबुल में सुने जाते हैं | चेतकी हर्र सुकुमार ,दुर्बल शरीर ,प्यासा ,और द्वेष करने वालों को सुख पूर्वक जुलाब लेने के निमित श्रेष्ठ होती है | पूर्वोक्त  सातों हर्रों से विजया श्रेष्ठ होती है | यह  सर्वत्र मिलती है | और सब रोगों को हितकारी है | हर्र की मज्जा में मधुरता ,स्नायु में अम्लता ,परदे में तिक्तता ,छिलके में कडुवापन और अस्थि में कसैलापन होता है | हर्र नई गोल ,चिकनी, भारी ,जल में डालने पर डूब जाने वाली अच्छी होती है | एक ही स्थान में उत्पन्न होने वाले भी हर्र अच्छी होती है | भुनी हुई हर्र त्रिदोष को दूर करती है | और बल -बुद्धी और इंद्रियों को प्रकाश करने वाली है | चबा कर खायी हुई हर्र अग्नी को बढ़ाती है | पिसी हुई हर्र खाने से मल शुद्धी होती है | तली हुई हर्र खाने से संग्रहणी दूर  होती है |  इसमें मिठा कड़वा,कसैला रस पित्त नाशक है | खट्टा रस वात नाशक है | और तिक्त कटु,असैला रस कफ नाशक है | गुड़ के  साथ सेवन करने से हर्र सर्व रोग नाशक है | घी के साथ सेवन करने से हर्र धातु नाशक है | लवण के साथ सेवन करने से हर्र कफ नाशक है | शहद के साथ  खाने से हर्र  पित्त नाशक है | बंसत ऋतु में शहद के साथ ,ग्रीष्म में गुड़ के साथ ,वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ , शरद ऋतु में मिश्री के साथ ,हेमंत ऋतु में सोठ के साथ ,शिशिर ऋतु में पीपर के साथ हर्र सेवन करनी चाहिए | औषध के प्रयोग में हर्र  की छाल ले | इसकी मात्रा 8 माशे की है | हर्र का अवगुण नीबू शाँत करता है | हर्र को शहद के साथ चाटने से हर्र का उपद्रव शाँत हो जाता है |  हर्र की एक तोला से अधिक भी ली जा सकती है | हर्र गरम ,खुश्क,अग्नी को प्रदिप्त करने वाली ,पवित्र ,मधुर, पाक वाली ,और रसायनी  तथा  हल्की होती है | वायु और मल को नीचे उतारती है | एक छोटी हर्र भून कर प्रतिदिन सबेरे नमक के साथ  खाने से उदर विकार नहीं होता | हर्र को वैद्य प्रायः सेवन करने के निमित्त स्वादिष्ट बनाते  हैं | वह इस प्रकार कि - हर्र अच्छी साफ  बड़ी और नवीन लेकर गाय के मेठा में अथवा गरम जल में भिगो कर तिसरे दिन निकाल कर उसमें गुठली को अलग कर सेंधा नमक ,काली मिर्च जीरा पीसकर अनुमान से भर देवे और कुछ देर  धूप में रख कर अमृतवान में रखे  इसके सेवन से पेट के विकार दूर होते हैं | तथा हर्र को आधा पाव लेकर गोमुत्र में 10 दिन तक भिगोये रखें !फिर उसमे काली मिर्च, जीरा,सोंठ आठ-आठ मासे सेंधा नमक चार मासे भर मिलाय घी में भूनें,वह हर्र सब प्रकार के उदर के रोगों को हरती है ! हर्र, बहेडा , आंवला, इनको त्रिफला कहते हैं ! त्रिफला को संध्या समय भिगो देवे ,सबेरे छानकर उससे नेत्र धोवे तो सब प्रकार के नेत्र रोग दूर हो जाते  हैं ,और संध्या  का भिगोया त्रिफला छानकर नमक मिलाकर पीने से खांसी , कफ दूर हो जाता है ! अकेली हर्र को जल के साथ घिस कर गरम कर उपर लेप करने से नेत्र रोग दूर हो जाता है ! जो मनुष्य मार्ग चलने पर थक गया हो धातु विकार हो,जिसका रुधिर निकल गया हो तथा गर्भिणी स्त्रि हो उसे हर्र नहीं खाना चाहिये ! जिसको ज्वर आता हो उसे पिली हर्र नहीं खाना चाहिए ! विशेषकर यह हर्र स्वास खांसी ,बवासिर ,शोथ, कोढ,कृमि रोग उदर विकार,अफरा,गुल्म,प्यास ,हिचकी ,कामला अर्जीण , आनाह , प्लिहा ,शूल ,पथरी ,यकृत, सूजाक,मूत्रघात ,इन सब रोगों को विधि पूर्वक सेवन करने से शांत करती है | हर्र और रसवत पानी में घिसकर मिलाकर लगाने से लडकों का चुन्ना रोग अच्छा हो जाता है | अंगुलियों का सडना भी हर्र के लगाने से दूर हो जाता है | हर्रे में अनेकानेक गुण हैं | यदि विस्तार से गुण लिखे जांय तो पृथक पुस्तक बन जाय ||उपर | घर  | आगे


इमली नाम - सं - तिंत्रीणी ,हिं - इमली , बं - तेंतुल ,म- चिंच ,गु- आवली ,अं - टाँमरिंड | विवरण - इमली का वृक्ष बडा होता है | पत्ती छोटी होती है | और फल की खटाई अच्छी होती है | इमली की मिंगी का आटा तोला भर गाय के दही में मिला कर खाने से काच का निकलना बन्द हो जाता है | यदि शिंगरफ खाने से फूट निकला हो तो इमली के पत्तों  का अर्क मूली के पत्तों का अर्क मिला कर फूले स्थान पर मालिश करे और मूली के पत्तों का रस छटाँक भर आठ दिन पिवे तो आराम हो जाय | एवं इमली के पत्तों का काढ़ा में सेंधा नमक मिलाकर पीने से खाँसी अच्छी हो जाती है | इमली की छाल का चूर्ण दही के साथ सुबह और शाम खाने से बवासीर अच्छी हो जाती है | इमली की राख गरम पानी के साथ फाँकने से शूल रोग नष्ट हो जाता है | भाँग का नशा इमली का पन्ना से दूर होता है | पकी इमली का पन्न बना कर उसमे चीनी ,इलायची ,लौंग ,मिर्च और कपूर का चूर्ण थोड़ा अन्दाज से मिला कर पीने से अरूचि प्यास और गरमी शाँत हो जाती है | इमली की छाल का चूर्ण तीन माशा दही के साथ सेवन करने से बालकों का रक्तातिसार दूर होता है | इमली की कोमल पत्तियों की चटनी भूख लगाती है | इमली की पत्तियों की काढ़े में भात पकाकर खाने से कामला ,और पाण्डुरोग अच्छा हो जाता है | इमली के आधा ,घर का धूँआ घी में मिला कर लगाने से मूसा का विष दूर हो जाता है | इमली की चिंआँ घी में तल कर बिच्छू के काटे हुए स्थान पर चिपका दे तो विष चूस कर चिआँ आपही गिर पड़ती है | इमली की पत्ती पीसकर मटर बराबर गोली बनाये | दिन भर में 5 गोली पानी से निगलने से अतिसार रोग अच्छा हो जाता है | उपर | घर  | आगे


 ब्रह्मदण्डी नाम - सं - ब्रह्मदण्डी ,हिं - ब्रह्मदण्डी अथवा उटकटारा ,बं- छागल दाँडा या वामन दाँडी ,म- ब्रह्मदण्डी ,गु- ब्रह्मदण्डी अथवा तलकंटो , अं - यिस्टल | विवरण - इसका क्षुप होता है | पत्ते और फलों पर काँटे होते हैं | यह प्रायः जँगलों में अधिकतर होता है | गुण - ब्रह्मदण्डी ,गरम ,कडुवी ,,कफनाशक, तथा वात रोग और सूजन विनाशक है | यह वीर्य को खूब बढ़ाता है |


रतनज्योती नाम - सं - वृहदंती ,हिं - मुगलाई अण्ड, म- थारदंती , गु- रतनजोता ,अं -दिफिझिक नट ,फा- सकारदुजुवा | विवरण - रतनज्योती बूटी छत्ता वाली होती है | इसका पत्ता लसदार फिका होता है | फूल बारीक रूई के समान पीला और छोटा होता है | उसकी शाखा लाल रंग की ओंगा के समान झकरीली होती है | यह गर्मियों में करील वृक्ष के नीचे कँकरीली भूमि पर मिलती है | वर्षा ऋतु में नहीं मिलती | इसके पत्तों की ठँढाई बनाकर पीने से तीली, ज्वर ,कमलवायु ,और लकवा रोग दूर होता है | और सूजाक ,स्वभाव गरम हो ,उसको बहुत हितकारी है | इसकी पत्ती का रस नाक में टपकाने से मृगी रोग दूर होता है | और पत्ती का हुलास बनाकर सूँघने से कीड़े मर जाते हैं | इसका काढ़ा पीने से स्त्री का रज खुल जाता है | रत्नज्योती की जड़ (पूहकरमूल ) और हल्दी पीसकर गाय के मूत्र में पकावे और पेट पर बाँधे तो पेट जो सूजन आ जाती है - वह इसके बाँधने से दूर हो जाती है | रतनज्योती बूटी तीन माह तक नहीं सूखती | रतनज्योती के रस में बार-बार बुझाई हुई सलाई आँखों की ज्योती को बढ़ाती है | उपर | घर  | आगे


चिरमिटी विवरण - फल सहित चिरमिटी देखने में अद्भुत होता है | इसे घुमची भी कहते हैं | इसके पत्ते छोटे और सुन्दर होते हैं | गरमी हो तो चिरमिटी के पत्तों को इलायची और मिश्री के साथ चबाय तो गरमी दूर हो जाती है | अथवा 1 छटाँक चिरमिटी के पत्ते ,सिंघाड़े 1 तोला ,सफेद कत्था छः माशा ,मिश्री डेड़ तोला ,इलायची डेड़ माशा ,कबाबचीनी 2 माशा इनको पीसकर गोलियाँ बना ले जो मुँह में सुरखी हो और मुँही हो गया हो तो गोली मुँह में रख कर लार टपकावे तो सुरखी जाती रहे | तथा यदि मुँह में छाले पड़े हों तो सफेद चिरमिटी के पत्ते चबाकर मुँह में से लार टपकावे तो छाले अच्छे हो जाँय | सफेद घुमची का छीलका उतार कर दूध में औटावे ,बाद में धोकर सुखाकर चूर्ण कर दाले , इसका 2 रत्ती चूर्ण घी चीनी के साथ खाय और औटा हुआ ऊपर से दूध पीवे तो शरीर में बल की वृद्धी होती है |


कपिकच्छनाम - सं - कपिकच्छू , हिं - कौंञ्च ,किंवाच ,म- शुथाशिम्बी ,गु- कउची , बं - कौहेज | विवरण - कौंच क ई बेल होती है | फूल सेम की तरह होती है | और फल्ली भी सेम तरह होती है | फल्लियों पर सूक्ष्म रूँआसे होते हैं | रूँआसे से शरीर में अत्यंत खुजली होती है | फल्लियों के भीतर से सेम के बीज की तरह बीज निकलता है | छोटी किंवाच का क्षुप होता है | गुण - कौंच स्वादु ,वीर्यवर्धक ,वातक्षय ,शीत पित्त ,रूधिर विकार ,और दुष्ट व्रण ,नाशक है | कौंच के बीज अत्यंत बलवर्धक पुष्टिकर्ता , रक्तपित्त विनाशक ,वातनिवारक ,कडुवे ,भारी वृँहण ,तथा बाजीकरण है | छोटी कौंच - शीतल ,वीर्यवर्धक तथा पित्त वात ,सिध्म और अतिसार को नष्ट करती है एवं बंध्या स्त्रियों को भी संतान उत्पन्न करने वाली है | यह कसैली ,कडुवी , तथा योनी दोष ,कुष्ठ ,व्रण और रक्तविकार नाशक है | किंवाच को दूने दूध में पका कर छिल्का उतार कर उसी दूध में पीसकर घी में गुलाब जामुन की तरह तलकर शहद में डुबो दे | बाद में एक-एक रोज खाकर उपर से दूध पीये तो शरीर पुष्ट होता है | और वीर्य की वृद्धि होती है |  उपर | घर  | आगे


श्रीवास नाम सं - श्रीवास ,हिं - सरल का गोंद (गंध बिरौजा ) बं - टार्पिन तेल , म- सरला डीक ,गु- गंधबेरिजो ,फा- सन्दरूस अं - सन्दरूस | गुण - कडुवा ,गरम ,कसैला ,दस्तावर ,तिक्त ,चरपरा और स्निग्ध है | वातपित्त और कफ सम्बंधी रोगो को दूर करने वाला है | शिरोरोग ,व्रणादि रोग , नेत्र रोग और खुजली को नष्ट करता है | शोथ रोग ,कुष्ठ रोग ,दाह और पसीने को दूर करता है | इसका लेप करने से कृमी रोग और वेदना की शाँती होती है | गंध बिरौजा का सत बराबर मिश्री मिलाकर खाय और ऊपर से दूध की लस्सी पिये तो सूजाक अच्छा हो जाती है | गंधबिरोजा 1 तोला ,गला कर उसमें तुतिया 1 माशा हल्दी का चूर्ण 3 माशा डाल चला ले इसकी पट्टी फोड़ा -फुँसी पर रखने से उसे अच्छा कर देती है |


गौजिह्वा (गौजिया ) नाम -सं - गोजिह्वा ,हिं - गोजिया या गोभी ,बं - दाडिशाक , म- पाथरी ,गु- भोपाथरी ,फा- कलमरूमी | विवरण - गोभी (गोजिया) का क्षुप होता है | पत्ती लम्बे और खरखरे होते हैं | फूल स्वर्ण के वर्ण के चक्राकार होते हैं | पत्तों के बीच से एक बाल निकलती है | गुण - गोजिया वात को उत्पन्न करने वाली है | कफ-पित्त को नष्ट करने वाली ,हृदय को हितकारी तथा प्रमेह ,कास ,रूधिर ,विकार व्रण और ज्वर को नष्ट करने वाली है | गोभी शीतल, हल्की , कोमल ,कडुवी ,पचने तथा रस में स्वादिष्ट है | वन गोभी का रस ,और काली मिर्च का चूर्ण जूड़ी -बुखार को दूर करती है | बनगोभी पीसकर पीने से आँव के दस्त बन्द हो जाते हैं |  उपर | घर  | आगे


अरणनाम सं - अग्नीमंथ ,अरणी,गणिकारिका ,क्षुद्राग्नीमंथ ,हिं अरणी ,अमंथुगणीवारी ,छाटी अरणी , गणिर,आगगंत,छोटी गणिरी ,म- थारएरण ,लघुएरण ,टहाकोली ,नरवेल्य,गु - अरणी ,एरण | विवरण - अरणी का वृक्ष होता है | पत्ते गोल और सूक्ष्माकार युक्त रूक्ष होते हैं | फूल सफेद होते हैं जो छोटे करौंदे की तरह होते हैं | यज्ञ में इसकी लकड़ी से आग उत्पन्न की जाती है | यह कई प्रकार का होता है | इसके भेद क्षुद्राग्निमंथ एवं तेजोमंथ दो और हैं | गुण - अरणी कटु ,तिक्त ,उष्ण , भारी ,सारक , मधुर , कषाय , तथा मलबंध नाशक है |


सातलनाम - सं - सातला ,हिं - सातला ,बं - सिजविशेष ,म- निवडंगाचा भेद ,गु- साथेर ,फा - एशन , अं - सातर | विवरण - सातले की बेल होती है | अधिकतर जङ्गल -वनों में होती है | पत्ते खैर के पत्तों के समान छोटे -छोटे होते हैं | फूल पीला होता है | उसमें पीला तथा चपटी फल्ली लगती है | उस फल्ली के अन्दर से काली बीज निकलते हैं | उसमें पीले रंग का दूध निकलता है | गुण - सातला पचने में कटु ,शीतल,तिक्त , हल्का , कषाय, तथा तीक्ष्ण है | यह उदावर्त ,रक्तदोष ,शोथ्, कफ,पित्त ,व्रण,उदर,मुखपाक,विसर्प रोग ,हृदयरोग,आमवात ,अनाह , कृमि ,कुष्ठ ,एवं गुल्मार्श , को नष्ट करता है | सातला अग्निवर्धक तथा वात जनक है | दस्त को लाने वाला और हृदय हितकारी है | उपर | घर  | आगे


तालीसपत्र नाम - सं - तालीस ,हिं - तालीसपत्र ,बं - तालीस पत्र ,म- लघुतालीसपत्र,गु- तालीसपत्र,फा- जरनव ,अं - तालीसफर | विवरण - यह वृक्ष अत्यंत बड़ा होता है | देखने में अधिकतर फाऊ मिल जाता है | इसके लट्ठे के तख्ते चीर कर चौकी तख्तों में लगाये जाते हैं | गुण - तालीसपत्र लघु तीक्ष्ण गरम है ,श्वास ,कास,कफ,वात अरूचि,आम,मन्दाग्नि,और क्षय रोग का नाश करता है | हिक्का वमन में अधिकतर गुण कारी है | रूधिर के दोष को हरने वाला तथा स्वर को सम्भालने वाला और पित्त नाशक है | अग्निवर्धक तथा हृदय को विशेष हितकर है | उपर | घर  | आगे


कङ्कोल नाम - सं - कङ्कोल , हिं - शीतल चीनी ,कबाब चीनी , काकला ,म- कंकाल ,कापुर चीनी , गु- चणक बाब ,फा- कबाबह,अं-कवास , अरबी - क्युवेब पीपर | गुण - शीतल चीनी हल्की ,तीक्ष्ण ,गरम ,चरपरी ,दीपन, पाचन,रूचिकारी ,तथा हृदय को हितकारी है | यह मुख की दुर्गंधि को नष्ट करने वाली है | इससे वात रोग ,हृदय रोग ,मन्दाग्नि ,कृमिरोग ,नेत्र रोग ,और अंधापन को दूर करता है | रात को सोते समय शीतल चीनी का चूर्ण फाँक कर उपर से जल पीवे तो स्वप्न दोष नही होता | शीतल चीनी ,कत्था ,छोटी इलायची ,हंसराज की पत्ती का चूर्ण लगाने से मुँह का निनवाँ दूर होता है | शीतल चीनी से प्यास दूर होती है | उपर | घर  | आगे


गजपीपल नाम - सं - गजपीपली ,हिं - गजपीपल ,बं - गजपिपुल, म- मोर बेलिला पिपल यतात ती , गु - गजपीपर | गुण - गजपीपल चरपरी ,गरम ,रूक्ष, तीक्ष्ण ,तथा मल शोषक है | यह अग्नि को बढ़ाने वाली ,वात विनाशक तथा अतिसार ,स्वास ,कण्ठ रोग और कृमि रोग नाशक | एवं मल का शोषण करने वाली है | उपर | घर  | आगे


नीम गिलोय विवरण - नीम वृक्ष पर चढ़ी हुई गुर्च में अनेक गुण हैं | गुर्च का सत शहद के साथ  चाटने से ज्वर उतर जाता है | थोड़ी गुर्च 5-7 काली मिर्च कुछ सेंधा नमक पीसकर थोड़े पानी में घोल कर आँच पर धरे ,जब फदकने लगे तो उतार कर छान कर गरमागरम पीवे तो ज्वर शाँत हो जाता है | तथा नीम पर के गुर्च के 6 माशा , बंशलोचन एक माशा ,इलायची चार रत्ती ,मिश्री तोला भर पीसकर उसको दस दिन तक खाय तो बादी ,खूनी ,बवासीर रोग दूर हो जाता है | गिलोय का सत्व (सत्त) जीर्णज्वर ,राजयाक्ष्मा ,प्रमेह ,वीर्य विकार ,दुर्बलता ,नपुंसकता ,मस्तिष्क दुर्बलता , भ्रम रोग ,वातरक्त ,,हाँथ पैरों का दाह  आदि की खास दवा है | गिलोय की शर्बत  प्रदर ,क्षय ,पाण्डु ,मूत्रकृछ्र , खाँसी और शिरपीड़ा में बहुत लाभकारी होता है | गिलोय की रस 2 तोला , मिश्री 1 तोला ,मिलाकर पीने से पित्त ज्वर ,दाह ,तृषा और अरूचि दूर होती है | वातरक्त में 6 माशे हर्रे का चूर्ण खाकर उप्र से गिलोय का क्वाथ पीने से बहुत लाभ होता है | प्रमेह पर - गिलोय को रात में पानी में भिगो दे ,बाद सुबह मल कर छान ले और तीन माशे हल्दी का चूर्ण मिलाकर पी जाय तो प्रमेह अच्छा हो जाता है | गिलोय का सत्व 1 माशा ,और बड़ी इलायची का चूर्ण 1 माशा शहद में चाटने से भी प्रमेह दूर होता है | गिलोय का रस और नीबू का रस ,दोनों को मिलाकर ,मुँह में मलकर बाद में साबुन से धो डाले तो मुख की कांती बढ़ती है | गिलोय का रस 1 तोला ,शहद 3 माशा ,सेंधा नमक 1 माशा ,मिलाकर आँख में आँजने से आँख के सभी रोग दूर होते हैं | और आँख की लाली दूर होती है | गिलोय का क्वाथ दूध मिलाकर पीने से सुजाक में विशेष लाभ होता है | गिलोय के क्वाथ से पेसाब में शक्कर जाती रहती है  ,तो वह बन्द हो जाती है | गिलोय का क्वाथ या रस मिश्री मिलाकर पीने से वमन दूर होता है | गिलोय और मिश्री चूसने से मुँह का सुखना बन्द हो जाता है | गिलोय के पत्तों का रस कुछ गरम कर कान में डालने से कर्ण स्राव , कर्ण शूल , और कर्ण नाद रोग दूर होता है | गिलोय का क्वाथ शहद मिलाकर पीने से कवल(पीलिया ) रोग होता है |  उपर | घर  | आगे

इस्कॉन आफ एरिझोना कम्युनिटी इस्कॉन का दर्शन   इस्कॉन की शाखाएँ चित्रप्रदर्शनी  इस्कॉन की गुरूपरंपरा  
 भगवान कृष्ण के भक्त बने ब्रजविवाह वृँदावन्अयात्रा यूएसए वृन्दावन 2004-5 मुल्ला2005 नारायण कवच
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