भक्ति मार्ग में बाधक अपराध-

शास्त्र में बहुत सारे अपराध हैं जो कि भक्ति के लिए बाधक हैं । भक्तिरसामृत सिंधु ग्रंथ में से कुछ अपराध नीचे दिये जा रहे हैं भक्त जन कृपा करके ध्यान से पढ़ें और याद करें-

(1) मोटरकार या पालकी में सवार होकर या जूता पहन कर अर्चाविग्रह के मंदिर में प्रविष्ट नहीं होना चाहिये ।

(2) भगवान् की प्रसन्नता के लिए जनमाष्टमी तथा रथयात्रा जैसे उत्सवों को मनाने से चूकना नहीं चाहिए ।

(3) अर्चाविग्रह के सामने नटमस्तक होने में आनाकानी नहीं करनी चाहिए ।

(4) भोजन के बाद हाथ तथा पैर धोये बिना भगवान् की पूजा हेतु मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चहिए ।

(5) दूषित अवस्था में मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चहिए । ( वैदिक शास्त्रों के अनुसार यदि किसी परिवार में कोई मर जाता है तो सारा परिवार कुछ समय के लिए अपने पद के अनुसार दूषित हो जाता है ।  उदाहरणार्थ- ब्राह्मण परिवार में दूषण 12 दिन का है , क्षत्रियों तथा वैश्यों के परिवार में 15 दिन और शूद्रों में 30 दिन होता है ।)

(6) एक हाथ से नमस्कार नहीं करना चाहिये ।

(7) श्रीकृष्ण के समक्ष परिक्रमा नहीं करना चाहिए । ( मंदिर की परिक्रमा का नियम यह है कि अर्चाविग्रह के दाहिने हाथ से परिक्रमा प्रारम्भ करके मन्दिर के बाहर बाहर प्रतिदिन कम से कम तीन परिक्रमा की जाय ) ।

(8) अर्चाविग्रह के सामने अपने पांव नहीं फैलाने चाहिए ।

(9) अपने हांथों से टकने ,घुटने या कुहनी पकड़कर अर्चाविग्रह के समक्ष नहीं बैठना चाहिए ।

(10) कृष्ण के अर्चाविग्रह के समक्ष लेटना नहीं चाहिए ।

(11) अर्चाविग्रह के समक्ष प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिए ।

(12) अर्चाविग्रह के समक्ष कभी झूठ नहीं बोलना चहिए ।

(13) अर्चाविग्रह के समक्ष ऊँची अवाज में नहीं बोलना चाहिए ।

(14) अर्चाविग्रह के समक्ष अन्यों से बात नहीं करनी चाहिए ।

(15) अर्चाविग्रह के सामने रोना या चिल्लाना नहीं चहिए ।

(16) अर्चाविग्रह के सामने लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए ।

(17) अर्चाविग्रह के सामने किसी को डाँटना नहीं चाहिए ।

(18) अर्चाविग्रह के सामने भिखारियों को भिक्षा नहीं देनी चाहिए ।

(19) अर्चाविग्रह के समक्ष अन्यों से बहुत कटु वचन नहीं बोलना चाहिए ।

(20) अर्चाविग्रह के सामने रोंयेदार कम्बल नहीं ओढ़ना चाहिए ।

(21) अर्चाविग्रह के समक्ष किसी अन्य की स्तुति या बढ़ाई नहीं करनी चाहिए ।

(22) अर्चाविग्रह के समक्ष किसी को गाली नहीं बकना चाहिए ।

(23) अर्चाविग्रह के समक्ष अपान वायु का त्याग नहीं करना चाहिए ।

(24) अपने साधनों के अनुसार अर्चाविग्रह की पूजा करने से नहीं चूकना चाहिए ।(भगवद्गीता में कहा गया है कि यदि कोई भक्त पत्ति या थोड़ा जल भी अर्पित करे तो वे प्रसन्न हो जाते हैं । भगवान् द्वारा बताया गया यह सूत्र निर्धन से निर्धन व्यक्ति पर लागू होता है । किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि जिसके पास प्रयाप्त साधन हों वह भी इसी विधि को अपनाए और भगवान्  को जल तथा पत्ति अर्पित करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करे । यदि उसके पास प्रयाप्त साधन हों तो उसे अच्छे अच्छे अलंकरण ,उत्तम फूल तथा भोज्य सामगी अर्पित करनी चाहिए और सारे उत्सव मनाने चाहिए । ऐसा नहीं है कि वह अपनी इन्द्रिय तृप्ति के लिए अपना सारा धन व्यय कर दे और भगवान् को प्रसन्न करने के लिए थोड़ा जल तथा पत्ती अर्पित करे । )

(25)  कृष्ण को पहले अर्पित किये बिना कोई भी भोज्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए ।

(26) ऋतु के अनुसार कृष्ण को ताजे फल तथा अन्न अर्पित करने से चूकना नहीं चाहिए ।

(27) भोजन बन जाने के बाद , जब तक उसे अर्चाविग्रह को अर्पित न कर दिया जाय तब तक उसे किसी को नहीं देना चाहिए ।

(28) अर्चाविग्रह की ओर पीठ करके नहीं बैठना चाहिए ।

(29) गुरु को चुपके से नमस्कार नहीं करना चाहिए अर्थात् नमस्कार करते समय उच्च स्वर से गुरु की स्तुति करनी चाहिए ।

(30) गुरु के समक्ष उनकी कुछ प्रशंसा करना नहीं भूलना चाहिए ।

(31) गुरु के समक्ष अपनी बढ़ाई नहीं  करनी चाहिए ।

(32) अर्चाविग्रह के समक्ष देवताओं का उपहास नहीं करना चाहिए ।

      यह 32 अपराधों की सूची है । इनके अतिरिक्त , अपराधों की बहुत बड़ी संख्या है जिनका उल्लेख वराह पुराण में हुआ है । वे इस प्रकार है -

(1) अंधेरे कमरे में अर्चाविग्रह को नहीं छूना चाहिए ।

(2) अर्चाविग्रह के पूजन के विधि-विधानों का कढ़ाई से पालन करना चाहिए ।

(3) कुछ न कुछ ध्वनि किये बिना देव मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(4) कुत्तों या निम्न पशुओं द्वारा देखा गया भोज्य पदार्थ अर्चाविग्रह पर नहीं चढ़ाना चाहिए ।

(5) पूजा करते समय मौन भंग नहीं करना चाहिए ।

(6) पूजा करते समय पेसाब या टट्टी करने नहीं जाना चाहिए ।

(7) कुछ फ़ूल चढ़ाए बिना धूपदान नहीं करना चाहिए ।

(8) सुगन्धरहित व्यर्थ फूलों को अर्पित नहीं करना चाहिए ।

(9) प्रतिदिन दाँतों को सावधानी साफ करना नहीं भूलना चाहिए ।

(10) मैथुन के बाद सीधे मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(11) स्त्री को रजोदर्शन काल में स्पर्श नहीं करना चाहिए ।

(12) शव को छूकर मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(13) लाल नीले या बीना धूले वस्त्र पहन कर मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(14) शव देखने के पश्चात् मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(15) मन्दिर के भीतर अपान वायु नहीं त्यागना चाहिए ।

(16) मन्दिर के भीतर क्रुद्ध नहीं होना चाहिए ।

(17) श्मशान जाने के बाद मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(18) अर्चाविग्रह के सामने डकार नहीं लेना चाहिए । अतएव जब तक भोजन पूरी तरह न पच जाय तब तक मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।

(19) गाँजा नहीं पीना चाहिए ।

(20) अफिम या अन्य नशीली वस्तुओं को ग्रहण नहीं करना चाहिए ।

(21) शरीर में तेल लगाने के पश्चात् अर्चाविग्रह के कक्ष में प्रवेश नहीं करना चाहिए । अथवा अर्चाविग्रह को स्पर्श नहीं करना चाहिए ।

(22) भगवान् की श्रेष्ठता बतलाने वाले शास्त्रों का अनादर नहीं करना चाहिए ।

(23) किसी विरोधी शास्त्र का सूत्रपात नहीं करना चाहिए ।

(24) अर्चाविग्रह के समक्ष पान नहीं खाना चाहिए ।

(25) गन्दे पात्र में रखे फूल को नहीं चढ़ाना चाहिए ।

(26) बिना आसन के फर्श पर बैठकर भगवान् की पूजा नहीं करनी चाहिए । अपितु आसन या गलीचे पर बैठना चाहिए ।

(27) पूरी तरह स्नान किये बिना अर्चाविग्रह का स्पर्श नहीं करना चाहिये ।

(28) अपने मस्तक पर तीन रेखाओं का तिलक नहीं लगाना चाहिये ।

(29) हाथ तथा पांव धोये विना मन्दिर में प्रवेश नहीं करना चाहिये ।

    अन्य नियम इस प्रकार हैं--- अवैष्णव द्वारा पकाया गया भोजन अर्पित नहीं करना चाहिये:  अभक्तों के समक्ष अर्चाविग्रह की पूजा नहीं करना चाहिये, तथा जब कोई अभक्त दिखाई पड रहा हो तो भगवान् की पूजा में व्यस्त नहीं होना चाहिये । पहले गणपति देव की पूजा करनी चाहिये,  क्योंकि वे भक्ति के मार्ग में आनेवाले सारे अवरोधों को दूर करने वाले हैं । ब्रह्म-संहिता में कहा गया है कि गणपतिजी श्रीनृसिंहदेव भगवान् के चरणकमलों की पूजा करते हैं । इस तरह वे समस्त बाधाओं को दूर भगाने में भक्तों के लिये कल्याण्कारी बन चुके हैं । इसलिये सारे भक्तों को गणपति की पूजा करनी चाहिये । नाखूनों और अंगुलियों से स्पर्श किये हुए जल से अर्चाविग्रहों को स्नान नहीं कराना चाहिये । जब भक्त को पसीना आ रहा हो तो उसे अर्चाविग्रह की पूजा नहीं करनी चाहिये । इसी तरह अन्य अनेक निषेध (वर्जनायें) हैं । उदाहरणार्थ, न तो अर्चाविग्रह पर चढाये फूलों के ऊपर से कूदे, न ऊपर पांव रखे। न ही ईश्वर के नाम से कोई प्रतिज्ञा करे । ये विविथ प्रकार के अपराध भक्ति-साधना के विषय में है और मनुष्य को चाहिये कि इनसे बचने के लिये सचेत रहे ।

पद्मपुराण में कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति जिसका जीवन पूर्णतया पापमय है भगवान द्वारा पूर्णतः रक्षित हो जायेगा यदि वह केवल उनकी शरण ग्रहण कर ले । अतएव यह स्वयंसिद्ध है कि जो भी भगवान की शरण में जाता है वह सारे पापपूर्ण कर्मों के फलों से मुक्त हो जाता है । यदि वह भगवान के वहां अपराधी भी होता है तो भी भगवान् के पवित्र नामों का जप--- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन करने से उसका उद्धार हो जाता है दूसरे शब्दों में हरे कृष्ण कीर्तन समस्त पापों को विनष्ट करने के लिये लाभप्रद है,  क़िंतु यदि कोई भगवन्नाम का अपराधी होता है तो उसके उद्धार की कोई गुंजाइस नहीं रहती ।

पवित्र नाम जप के विरुद्ध अपराध इस प्रकार हैं---

(1) जिन भक्तों ने भगवन्नाम के प्रचार हेतु अपना जीवन अर्पित कर दिये हैं उनकी निन्दा करना ।

(2) शिव या ब्रह्मा जैसे देवताओं के नामों को भगवान विष्णु के नामों के तुल्य यअ उससे स्वतंत्र मानना ( कभी कभी नाअस्तिक लोग यह मानते हैं कि कोई भी देवता भगव्वन विष्णु के समान है । किंतु जो भक्त है वह भलीभांति जानता है कि कोई भी देवता कितना भी बड़ा क्यों न हो, भगव्वन के बराबर या उनसे स्वतंत्र नहीं हो सकता । अत एव यदि कोई यह सोचता है कि काली! काली! या दुर्गा! दुर्गा! का जाप हरे कृष्ण के तुल्य है तो यह सबसे बड़ा अपराध होगा) ।

(3) गुरु  की आज्ञा का उल्लघन करना ।

(4) वैदिक साहित्य या प्रमाणों की निन्दा करना ।

(5) हरे कृष्ण की कीर्तन  को काल्पनिक मानना ।

(6) भगवन्नाम पर मनमानी व्याख्या करना ।

(7) भगवान्नाम के बल पर पाप करना । ( मनुष्य को यह नहीं मान लेना चाहिए कि  चूँकि भगवन्नाम से सारे पापफल दूर हो जाते हैं , अतएव वह पाप कर्म करता चले और तत्पश्चात्हरे कृष्ण का जप करके अपने पाप कम कर ले । ऐसी घातक प्रवृत्ति अत्यंत अपराध पूर्ण और इससे बचना चाहिए । )

(8) हरे कृष्ण कीर्तन को वेदों में वर्णित शुभ अनुष्टानों में से एक कर्मकाण्ड मानना ।

(9) श्रद्धारहित व्यक्ति को पवित्र नाम की महिमा का उपदेश करना ( भगवन्नाम कीर्तन में कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है , किंतु प्रारंभ में भगवान् की दिव्य शक्ति का उपदेश नहीं दिया जाना चाहिए । जो लोग पापी हैं वे भगवान् की दिव्य महिमाओं का मूल्य नहीं समझ सकते , अतएव उन्हें इस विषय में उपदेश न देना ही श्रेयस्कर होगा ।)

(10) इस विषय में अनेक उपदेशों को समझ लेने के बाद भी पवित्रनाम कीर्तन में पूर्ण श्रद्धा न रख कर भौतिक आसक्ति बनाये रखना ।

    हर व्यक्ति को , जो अपने को वैष्णव कहता है इन अपराधों से बचना चाहिए जिससे शीघ्र ही वांछित सफलता प्राप्त हो सके ।

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